केदारनाथ मंदिर की महिमा
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रूदप्रयाग जिले में स्थित है। इस मंदिर की महिमा अपरम्पार और सदियों पुरानी है। केदारनाथ बाहर ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ ही चार धाम यात्रा में भी शामिल है। हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि जिसने चार धामों की यात्रा कर ली वो जीवन मरण और पूर्नजन्म के कालचक्र से मुक्त हो जाता है यानि उसे बैकुण्ठ में स्थान मिल जाता है। चार धामों में शामिल केदारनाथ मंदिर के इतिहास और इसकी महिमा जानने मात्र से ही मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो जाता है। आज हम आपको केदारनाथ मंदिर के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास
भगवान शिव की केदारनाथ नगरी पंचकेदार में से एक है। मंदिर के इतिहास के बारे में कई बातें प्रचलित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पाण्डव वंश के राजा जनमेजय ने कराया था। वैसे तो इस मंदिर की उम्र का कोई भी ऐताहासिक प्रमाण नहीं है। लेकिन माना जाता है कि मंदिर हजारों वर्षों पुराना है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन के मुताबिक मंदिर 12-13 वीं शताब्दी का है। साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि ये केदारनाथ का मंदिर आदि शंकराचार्य जी द्वारा 7वीं शताब्दी में बनवाया गया था।
केदारनाथ मंदिर की संरचना
भगवान शिव का केदारनाथ मंदिर गिरिराज हिमालय की केदार नाम की चोटी पर स्थित है। जो तीन तरफ पहाड़े से घिरा है। जिसके एक तरफ 22 हजार फुट के करीब ऊंचा केदारनाथ तो दूसरी ओर 21 हजार 600 फुट खर्चकुंड और तीसरे छोर पर 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड है। केदारनाथ मंदिर के आसपास परम पवित्र पांच नदी मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का भी संगम था। हालांकि अब यहां पर मंदाकिनी नदी ही मौजूद है।
केदारनाथ मंदिर 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। मंदिर का गर्भग्रह बहुत प्राचीन और शक्तिशाली है। मंदिर 85 फुट ऊंचा, 80 फुट चौड़ा और 187 फुट लंबा है। मंदिर की संरचना आश्चर्य में डाल देती है। वाकई इतना सुंदर मंदिर पहाड़ों पर कैसा बनाया गया है। ये सोच में डाल देता है। मंदिर में भगवान शिव की पिण्डी को स्नान कराकर घी लेपन किया जाता है। मंदिर के मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ और प्रांगण में नंदी विराजमान है।
मंदिर में दर्शन का समय
केदारनाथ उत्तराखंड की जलवायु के कारण अप्रैल से नवंबर के बीच ही दर्शन के लिए खोला जाता है। मंदिर के खुलने की तिथि हिंदू पंचांग की गणना के बाद ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारी तय करते हैं। मंदिर के उद्घाटन तिथि अक्षय तृतीया के शुभ दिन और महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर हर साल घोषित की जाती है और द्वार बंद करने की तिथि दिवाली के बाद भाई दूज पर घोषित की जाती है।
मंदिर श्रृद्धालुओं के लिए सुबह 6 बजे खुलता है और पंचमुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का श्रृंगार और विशेष पूजा करने के बाद पांच बजे सांध्या के समय फिर दर्शन के लिए मंदिर को खोल दिया जाता है। 7.30 से 8.30 बजे नियमित आरती होती है और उसके बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है।
केदारनाथ मंदिर की प्रचलित कथा
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की एक कथा यह है कि हिमालय के केदार चोटी पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि कड़ी तपस्या किया करते थे। उन्होंने अपने आपको भगवान विष्णु को अर्पित कर दिया था। उनकी कठिन तपस्या और अराधना से खुश होकर भगवान शंकर से उन्हें दर्शन दिए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब उन्होंने शिव का ज्योतिर्लिंग रूप को उसी चोटी पर सदा निवास करने का वरदान मांगा। भगवान भोलेनाथ ने खुश होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं निवास किया और केदारनाथ कहलाए।
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