अजा एकादशी 2021
तिथि- 03 सितम्बर 2021
भारतवर्ष त्यौहारों का पिटारा है क्योंकि यहाँ अत्यधिक धार्मिक स्वभाव के लोग निवास करते है। इसलिए हमारे देश में साल के 365 दिन किसी न किसी त्यौहार का आयोजन होता है तथा उससे संबंधित देवता का पूजन भी किया जाता है। उन्ही में से एक एकादशी का भी पर्व है, जो कि साल में 24 तथा माह में दो बार मनाया आता है। लेकिन इस 24 एकादशी में से भगवान विष्णु की सबसे ज्यादा प्रिय एकादशी अजा एकादशी है जो भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में आती है।
अजा एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 03 सितम्बर
समय- 04 सितम्बर को प्रातः 06:00:16 से 08:32:11 तक
समयावधि- 2 घंटे 31 मिनट
अजा एकादशी पूजा विधि
अजा एकादशी को सबसे मुश्किल एकादशी के श्रेणी में रखा जाता है। इस एकादशी पर अपनी इच्छापूर्ती के लिए सही विधि से व्रत रखना अनिवार्य हो जाता है। इसकी विधि है-
चरण- 1 पवित्रा, संयम तथा बह्मचार्य का पालन करना महत्वपूर्ण है।
चरण- 2 सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना उचित है। सच्ची श्रद्धा से मन में इसका विचार कर भी व्रत रखा जा सकता है।
चरण- 3 तुलसी प्रिय भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों को भगवान जी के चरणों में अर्पित करना चाहिए।
चरण- 4 एकादशी के दिन निराहार रहना पड़ता है तथा निर्जल रहना महत्वपूर्ण होता है। अधिक आवश्यकता होने पर ही सिर्फ एक समय ही फलों का सेवन किया जा सकता है।
चरण- 5 रात्रि में ‘श्री हरि’ ध्यान लगाकर जागरण करना चाहिए।
चरण- 6 एकादशी पर ब्राह्मणों को दान देना महत्वपूर्ण है।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
तुलसी के पत्तों को एकादशी के दिन नहीं तोड़ना चाहिए। पूजा के लिए एक दिन पहले ही तुलसी के पत्तों को तोड़ना उचित है।
किसी भी प्रकार के छल की भावना या लालच मन में नहीं रखना चाहिए।
जीवनसाथी के साथ शारीरिक संबंधों को बनाने से बचना चाहिए।
अजा एकदशी का महत्व
मोक्ष की प्राप्ति तथा पुण्यों को पाने के लिए अजा एकादशी का महत्व बहुत अधिक है। ऐसा माना जाता हैं कि विष्णु भगवान की सबसे प्रिय एकादशी का व्रत रखने से विष्णु जी इतने प्रश्न होते है कि वह अपने भक्त के सभी पापों का अंत कर देते हैं तथा स्वर्ग में उसके लिए स्थान निश्चित कर देते है। इच्छानुसार अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए मनुष्य इस एकादशी का व्रत रखता है। यह व्रत इतना महत्वपूर्ण है कि इस एक व्रत को रखने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ के बराबर पूण्यों के प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन समय में हरिशचंद राजा बहुत ही सुसंगठित तरीके से अपने राज्य का कार्यभार को संभाल रहा था। प्रजा को वह अपने बच्चों की तरह रखता लेकिन उसके पिछले जन्म के पाप उसको इस जन्म में भोगने का वक्त आ गया था। यही कारण था की उसके सामने एक के बाद एक बहुत सी समस्याएं आने लगी। स्थिति इतनी भयावह हुई की उसे राजमहज और नगर छोड़कर जंगल में जाकर बसना पड़ा। राजा जंगल में रहता तथा एक चांडाल के पास कार्य करता। चांडाल जो धन उसे देते उसी से उसको गुजारा करना पड़ता। स्थिति इतनी दरिद्र हो गई कि वह दो वक्त भी खाना खाने में सक्षम नहीं था। एक बार उस जंगल से ऋषि गौतम गुजर रहे थे। राजा की नजर जब ऋषि पर पड़ी तो उन्होंने अपनी सारी समस्या ऋषि गौतम को बता दिया और उनके अपने कष्ट को समाप्त करने का उपाय पूछलने लगा। ऋषि ने उनकी दुविधा और स्थिति पर दया दिखाकर उन्हें इसके उपाय के रूप में अजा एकादशी को रखने को कहा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर राजा ने अजा एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान के साथ रखा को उसके सारे कष्ट दूर हो गए। इसके बाद राजा ने स्वर्गवास होने तक अपने राज्य में खुशहाल स्थिति में राज किया।
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