आमलकी एकादशी 2021
तिथि- 25 मार्च 2021
आमलकी अर्थात आंवला। भगवान विष्णु का आंवला सबसे ज्यादा पसंदीदा वृक्ष है। यह विष्णु जी को इतना प्रिय है कि वह इस वृक्ष में वास करते है। यही कारण हैं कि इस वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना की जाती है ताकि भगवान विष्णु प्रशन्न हो सके। इस महत्व के कारण आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है। आंवले के वृक्ष में श्री हरि तथा लक्ष्मी जी भी वास करते है। आमलकी एकादशी के दिन आमले से बनी चीजों जैसे उबटन और जल का उपयोग किया जाता है।
आमलकी एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 25 मार्च
समय- 26 मार्च को प्रातः 6:18:53 से 08:46:12 तक
समयावधि- 2 घंटे 27 मिनट
आमलकी एकादशी पूजा विधि
आमलकी एकादशी में भगवान विष्णु की अराधना किया जाता है। इसकी विधि को उल्लेखित कर रहे हैं जिसका पालन करना अनिवार्य हो जाता है-
चरण- 1 प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
चरण- 2 भगवान विष्णु की पूजा करें तथा देशी घी का दीपल जलाएं।
चरण- 3 नवरत्न युक्त कलश की स्थापना आंवले के वृक्ष के नीचे करना चाहिए। जन घरों में आंवला का वृक्ष नहीं है तो उसके स्थान पर भगावन विष्णु को आंवला अर्पित करें।
चरण- 4 अगर आंवला का वृक्ष है तो उसके नीचे घूप, दीप, चंदन, रोली आदि से अराधना करें और अगर वृक्ष नहीं है तो गरीबों की अन्न दान करें।
चरण- 5 द्वादशी पर स्नान के बाद विष्णु भगवान की अराधना कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
आमलकी एकदशी का महत्व
इसके साथी ही आंवला को दान देने की भी प्रथा है। यह एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष को माना जाता है। इसका व्रत करने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है तथा उसे एक हजार गौ दान के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है। आंवला हिन्दु धर्म में बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। सृष्टि की रजना के साथ ही आंवला के वृक्ष की रचना हुई है। ब्रह्म की रचना की जगह के साथी ही आंवला की रचना भी विष्णु भगवान ने की। मोक्ष की प्राप्ति के लिए तथा स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने के लिए आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है। आंवले के वृक्ष में विष्णु भगवान का वास होता है तथा इस के हर हिस्से में ईश्वर का स्थान माना जाता है इसलिए आंवले के वृक्ष के नीचे ईश्वर की अराधान आज के दिन करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं में आमलकी एकादशी के बारे में जो कथा प्रचलित हैं उसके अनुसार प्राचीन में एक ऐसा राज्य था जहां के राजा सहित प्रजा भी बहुत ही आस्थावान थी। वहां सभी जातियों के लोग निवास करते थे और धार्मिक रीति रिवाजों को पूर्ण रुप से पालन करते और भगवान विष्णु की भक्ति में डूबे रहते। वहां चन्द्रवंशी राजा चित्रसेन राज करता था जो खुद भी आमलकी एकादशी के प्रति श्रद्धाभाव रखता और व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ रखता था। उस नगर में एक भी दुष्ट, पापी, अत्याचारी जैसे लोग नहीं रहते थे।
कुछ कथाओं के अनुसार एक बार राजा दैवयोग से मार्ग भूल गया और एक आंमले के पेड़ के नीचे आराम करने लगा। थके होने की वजह से उन्हें नींद आ गई। तभी कुछ दुष्ट लोग उन जगह आ गए। दुष्टों ने राजा को अकेला देख उनपर हमला करने लगे। वहीं कथानुसार राजा जब शिकार करने गए तो कुछ दुष्ट लूटेरों ने राजा को घेर लिया और अचानक हमला करने लगे। उन दुष्टों की संख्या इतनी थी कि राजा मूर्छित होकर वहीं आंमला के पेड़ के नीचे गिर गए।
राजा जब आंमले के पेड़ के नीचे थे तब जो भी दुष्ट उनपर हमला करता वो सभी हथियार पुष्प का रुप लेकर राजा के पास गिर जाता। इसके बाद वहां एक दैव्य शक्ति प्रकट हुई और उन्होंने उन दुष्टों क सर्वनाश कर दिया। राजा की जब आंख खुली तो सब दुष्ट पापी का सर्वनाश हो चुका था। यह देख राजा अचंभित हो गए की उनकी मदद यहां कौन कर सकता है तब आकाशवाणी हुई कि तुम्हारी सहायता तुम्हारे आमलकी एकादशी के कारण स्वयं भगवान विष्णु ने की है।
राजा काफी प्रश्न हुआ और अपने राज्य आकर सुखमय जीवन व्यतीत करने लगा और सभी को यह व्रत रखने के लिए प्रेरित करने लगा।
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