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अजरबैजान का दुर्गा मंदिर


Friday, 19 March 2021
अजरबैजान का दुर्गा मंदिर

अजरबैजान का दुर्गा मंदिर

 

कहते हैं कि भगवान कण-कण में हैं। वो हर जगह निवास करते हैं। दुनिया के हर कोने में भगवान को पाया जा सकता है। बस शर्त इतनी है कि सच्चे दिल से भगवान की भक्ति की जाएं। जी हां, जो लोग भगवान को सच्चे दिल से बुलाते तो उनकी पुकार सुनकर भगवान जरूर आते हैं। भगवान की भक्ति के एक ऐसे ही करिश्मे के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल, आज हम आपको माता दुर्गा के ऐसे मंदिर की बारे में बताएंगे जो भारत में नहीं बल्कि एक ऐसे देश में है जिसका नाम भी कम ही लोग जानते हैं और सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि वो देश मुस्लिम देश है। जहां पर मां दुर्गा का चमत्कारी और सबका हितकारी मंदिर है तो आइए जानते हैं...

 

टेंपल ऑफ फायर

 

हम बात कर रहे है अजरबैजान देश की जो एक मुस्लिम देश है। इसी मुस्लिम देश में माता दुर्गा का बड़ा ही अनोखा मंदिर है। जिसमें हर समय ज्योति जलती रहती है। वैसे तो भारत में माता दुर्गा के हजारों मंदिर है लेकिन मुस्लिम देश में मंदिर होना अपने आप में ही बड़ी बात है। ये दुर्गा मंदिर को टेंपल ऑफ फायर के नाम से जाना जाता है। जो अजरबैजान के सुराखानी इलाके में बना है।

 

मंदिर का निर्माण

 

माना जाता है कि इस मुस्लिम देश में भारतीय व्यापारियों ने मंदिर का निर्माण कराया था। दरअसल, हिंदु व्यापारी यहां पर व्यापार के कारण आया करते है। जिसके बाद उनमें से एक हरियाणा के नामी सेठ ने मंदिर को बनवाया और मुस्लिम देश में एक नई मिसाल पेश की। उस व्यापारी का नाम बुद्धदेव था जो हरियाणा के मादजा गांव में रहता था। मंदिर निर्माण में बुद्धदेव के साथ-साथ दो और व्यापारी उत्तमचंद और शोभराज का भी योगदान था। मंदिर में कुछ शिलालेख पर इस बात का साक्ष्य भी मिलता है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण संवत् 1783 में कराया गया था।

 

मंदिर का अद्भुत चमत्कार

 

इस दुर्गा मंदिर की इमारत प्राचीन किले के जैसी दिखती है। लेकिन आकार में ये बिल्कुल हिंदू मंदिर के जैसा ही है। मंदिर की छत पर माता दुर्गा का शस्त्र त्रिशूल स्थित है। मंदिर के अंदर हमेशा के ज्योति जलती रहती है। जिसका बारे में किसी को नहीं पता कि आखिर के ज्योति कब से जल रही है। ये माता की चमत्कारी ज्योति है जो कभी नहीं बुझती।

 

हिंदू पुजारी ने किया पलायन

 

इस मंदिर में हिंदु पुजारी पूजा किया करते थे। लेकिन उन्होंने 1860 के बाद अजरबैजान से पलायन कर लिया था। तब से यहां पर इस दुर्गा मंदिर में पूजा अर्चना नहीं की जाती है। कहा ये भी जाता है कि पहले यहां पर स्थानीय लोग भी पूजा करत थे। जिनमें हिंदू के साथ और भी धर्म लोग शामिल थे। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए जाते थे और मां दुर्गा के इस मंदिर में मन की हर मुराद पूरी होती थी। आज भी यदि यहां पर पूजा की जाएं तो मां दुर्गा अपने भक्तों के हर कष्ट को दूर कर देंगी।  

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