बहुला चतुर्थी या सकट चौथ
आपने जरूर सुना होगा कि पूत कपूत हो सकता है परंतु माता कुमाता नहीं हो सकती। मां अपनी संतान के लिए न जाने कितने व्रत और तप करती है ताकि उसकी संतान हमेशा खुश रहे। हालांकि बच्चे मां का कर्ज कभी भी नहीं चुका सकते है। एक मां ही ऐसी होती है जो अपने बच्चों के लिए हर एक दुख को अपने ऊपर लेकर उसे सुखद जीवन प्रदान करती हैं। अपने बच्चों के लिए व्रत रखकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती है। सकट चौथ भी उन्हीं व्रतों में से एक है जिन्हें माता अपनी संतान के लिए रखती है। आइए जानते हैं कि सकट चौथ का व्रत 2021 में कब रखा जाएगा और साथ ही हम आपको इस व्रत के बारे में विस्तार से समझाएंगे।
सकट चौथ व्रत को बहुला चतुर्थी व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत 2021 में 25 अगस्त को बुधवार के दिन रखा जाएगा। इस व्रत को स्त्रियां संतान की रक्षा के लिए रखती हैं। इस व्रत में गाय माता का पूजन होता है। जिस कारण इस व्रत को गौ व्रत भी कहा जाता है। बहुला चतुर्थी के दिन गाय माता का पूरा दूध उसके बछड़े को ही पिला दिया जाता है। आइए जानते हैं कि इस व्रत को करने की विधि क्या है
बहुला चतुर्थी व्रत को करने की विधि
प्रात काल उठे और स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
इस व्रत में भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। साथ ही गाय माता की पूजा अर्चना करने का भी विशेष महत्व है।
इस व्रत में शाम के समय में पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन के लिए दीप, धूप, गंगाजल, फूल, रोली लेकर भगवान गणेश की माटी की मूर्ति बनाएं और भगवान गणेश का तिलक करके उनकी आरती करके उन्हें लड्डू का भोग लगाएं।
शाम को भोग के लिए कई तरह के पकवान बनाएं जाते हैं।
संध्या समय में मुख्य पूजन के दौरान गाय माता और उसके बछड़े का पूजन विशेष तौर पर किया जाता है। गाय माता का तिलक आदि करने के बाद आरती उतारी जाती है।
गौ माता को पकवान का भोग लगाया जाता है। कई जगहों पर जौ और सत्तू के आटे का भी गाय माता को भोग लगाया जाता है।
विधि विधान से व्रत करने के बाद रात्रि में चंद्रमा के उदय होने पर अर्ध्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।
इस दिन माता का दूध नहीं निकालते हैं और पूरा दूध उसके बछड़े को ही पिला देते हैं।
इस दिन व्रती स्त्री को दूध से बनी कोई भी वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि जो व्रत संतान के लिए क्या जाता है उसमें दूध और सेब का सेवन नहीं करते हैं।
बहुला चतुर्थी व्रत का महत्व
इस व्रत को करने से संतान का जीवन सुखमय होता है और निसंतान स्त्री इस व्रत को रखती है तो उनकी गोद हरी-भरी हो जाती हैं।
इस व्रत को करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रोगों से भी छुटकारा मिलता है।
परिवार में सुख शांति का माहौल रहता है और माता लक्ष्मी की कृपा की बनी रहती है।
इस व्रत को करने से संतान को जल्द से जल्द नौकरी मिलती है।
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