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भादो मास अजा एकादशी


Saturday, 20 March 2021
भादो मास अजा एकादशी

भादो मास अजा एकादशी

 

एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे उत्तम कहा गया है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और जो इस व्रत करता है, वह कभी भी दुखों को नहीं भोगता है। उसके परिवार में सुख शांति का माहौल रहता है और हर एक मनोकामना पूर्ण होती है। चलिए आज हम आपको अजा एकादशी के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं आइए जानते हैं

 

अजा एकादशी यह कौन से साल में 2 बार आती है हम आपको भादो मास के अजा एकादशी के बारे में बता रहे हैं। भादो मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी 3 सितंबर को शुक्रवार के दिन है। हर एक एकादशी अलग-अलग प्रकार के फल देते हैं। जिसके हिसाब से लोग व्रत करके फल पाते हैं। अजा एकादशी बड़ी ही महत्वपूर्ण एकादशी है। इसे जया एकादशी भी कहा जाता है।

 

 

अजा एकादशी व्रत की विधि-

 

सबसे पहले स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु का पूजन की तैयारी करें।

 

पूजन के लिए धूप दीप जलाएं और माटी का कलश स्थापित करें। भगवान को फूल, पान, सुपारी, नारियल, लौंग आदि अर्पण करें और स्वयं पीले आसन पर बैठ जाएं।

 

कृष्ण भगवान का रोली और चंदन से तिलक करके आरती उतारें और व्रत का संकल्प लेते हुए व्रत प्रारंभ करें।

 

विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए ओम नमो नारायण भगवते वासुदेवाय नम: और ओम अच्युताय मंत्र का जाप 108 बार करें।

 

भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्यारी होती है इसलिए भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करें।

 

इस दिन पूरी रात जगराता भी किया जाता है। लोग पूरी रात जागकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं।

 

इस दिन गाय माता को भोजन जरूर खिलाएं और गरीबों की मदद करें।

 

एकादशी का व्रत पूरा करने के पश्चात अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को अन्न का दान करें।

 

अजा एकादशी व्रत कथा

 

पौराणिक काल में चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र हुआ करते थे। राजा बहुत ईमानदार और सत्यवादी थे। एक बार देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी और राजा ने स्वप्न देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। सुबह विश्वामित्र वास्तव में उनके द्वार पर आकर कहने लगी कि तुमने सपने में मुझे अपना राज्य दान कर दिया था। राजा ने सत्य, निष्ठा व्रत का पालन करते हुए। संपूर्ण राज्य विश्वामित्र को सौंप दिया। दान के लिए दक्षिण चुकाने हेतु राजा हरिश्चंद्र को पूर्व जन्म के कर्म फल के कारण पत्नी बेटा और खुद को बेचना पड़ा। जिसके बाद हरीश्चंद्र को एक डोम में खरीदकर शमशान भूमि में लोगों की दाह संस्कार का काम करने को दिया। वहां उन्होंने चांडाल के यहां कफन लेने का काम किया। जब हरिश्चंद्र पर विपत्ति का समय आया तो उन्होंने सोचा कि नीच कर्म से बचने के लिए कोई उपाय सोचना होगा। चिंता में रहने लगे कि कैसे यहां से बाहर निकलें। एक बार वह इसी चिंता में बैठे थे कि गौतम ऋषि आ गए। हरिश्चंद्र ने गौतम ऋषि को प्रणाम करके अपनी चिंता का कारण बताया। गौतम ऋषि ने हरिश्चंद्र से कहा कि राजन भादो माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। जिसका का व्रत करने बड़े पाप से मुक्ति पाई जा सकती है। तुम अजा एकादशी का विधि विधान से व्रत करो और रात्रि को जागरण भी करना। तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।

 

राजा ने जया एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करके रात्रि को जागरण किया। एकादशी के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गए और उन्हें फिर से अपने राज्य की प्राप्ति हुई।

 

जया या अजा एकादशी का महत्व-

 

एकादशी के प्रभाव के बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।

 

इसकी कथा को सुनने का भी बड़ा महत्व माना जाता है।

 

इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हैं।

 

कहा जाता है कि हर मनुष्य को जीवन में एक बार जरूर अजा एकादशी का व्रत करना चाहिए।

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