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भाद्रपद अमावस्या


Saturday, 20 March 2021
भाद्रपद अमावस्या

भाद्रपद अमावस्या

 

हिंदू धर्म में महीने का हर एक दिन किसी न किसी कारण महत्वपूर्ण होता है और ज्यादातर दिनों में कोई त्यौहार व्रत या मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदू कैलेंडर को दो भागों मैं 15-15 दिन के हिसाब से बांटा गया है। जिसमें हर 15 दिन अमावस्या अवश्य होती है और हर महीने के आखिरी दिन पूर्णिमा मनाई जाती है। आज हम आपको भाद्रपद मास में आने वाली अमावस्या के बारे में बताने जा रहे हैं। यह अमावस्या कई मायनों में महत्वपूर्ण है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या और पिठौरी या कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि कृष्ण पक्ष में होने के कारण कई जगह इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा भी की जाती है। लेकिन ज्यादातर मां दुर्गा देवी और श्रीशनिदेव की पूजा करने का ही महत्व है। आइए जानते हैं कि इस अमावस्या को किस प्रकार से मनाया जाता है...

 

मान्यता है कि मां पार्वती ने सबसे पहले पिठौरी अमावस्या का व्रत रखकर उसका महत्व बताया इस दिन पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है।

 

भाद्रपद अमावस्या

 

इस साल 7  सितंबर को मंगलवार के दिन भाद्रपद अमावस्या मनाई जाएगी।

 

 

 

शुभ मुहूर्त

 

अमावस्या प्रारम्भ: 7:40 बजे से (6 सिंतबर)

 

अमावस्या समाप्त: 6:23 बजे तक (सिंतबर )

 

भाद्रपद अमावस्या का महत्व

इस अमावस्या तिथि को स्नान, दान, तर्पण आदि के लिए बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। इस दिन कुछ लोग व्रत रखते हैं और गंगा स्नान के लिए भी जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, माना जाता है कि इस अमावस्या को पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है।

 

भाद्रपद अमावस्या कैसे मनाएं

इस दिन प्रात काल उठकर नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करना चाहिए और सूर्य देव को अर्ध्य  देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करने परंपरा है।

 

हो सके तो गंगा नदी पर ही जाएं वरना किसी भी नदी पर पितरों की शांति के लिए तर्पण करें और गरीब व्यक्ति या ब्राह्मणों को अन्न दान करें।

 

कुछ राशि पर कालसर्प दोष होता है। जिससे मुक्ति पाने के लिए ये अमावस्या बहुत ही उत्तम मानी जाती है। इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा अर्चना पंडित से कराएं।

 

अमावस्या को शनिदेव का दिन भी माना जाता है इसलिए शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों का तेल का दीपक जलाएं और अपने पितरों का स्मरण करें।

 

क्यों कहते हैं पिठौरी अमावस्या

 

भाद्रपद अमावस्या को पिठौरी अमावस्या भी कहा जाता है इसलिए इस दिन देवी की पूजा अर्चना की भी जाती है। खास तौर पर देवी दुर्गा के लिए व्रत स्त्रियां रखती हैं। निसंतान स्त्री इस व्रत को रखती है तो मां दुर्गा देवी की कृपा से उसे संतान की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए मन में व्रत का संकल्प लें और मनोकामना पूर्ण होने के बाद पूरी विधि विधान से अमावस्या के दिन मां दुर्गा देवी के लिए व्रत को रखें। परंतु याद रहें कि मनोकामना पूर्ण होने के बाद व्रत करना ना भूल जाएं।

 

 

 

क्यों कहा जाता है कुशग्रहणी अमावस्या

 

कुश घास को कहा जाता है और अमावस्या के दिन पितरों के तर्पण के लिए घास या कुश का उपयोग किया जाता है। यहीं कारण है कि इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है।

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