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भाद्रपद पूर्णिमा


Thursday, 18 March 2021
भाद्रपद पूर्णिमा

भाद्रपद पूर्णिमा 2021

सोमवार, 20 सितम्बर 2021

 

वैसे तो सभी पूर्णिमा का अपना महत्व है लेकिन भाद्रपद व्रत अपना विशेष महत्व रखती है। यह व्रत इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि पितृ पक्ष का प्रारंभ इसी दिन से होता है। इस दिन शुरु होने वाले श्राद्ध की समाप्ति आश्विन अमावस्या पर होती है। इस पूर्णिमा को भाद्रपद पूर्णिमा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह पूर्णिमा भाद्र माह में आता है। इस दिन सत्यनारायण की पूजा की जाती है जो भगवान विष्णु का ही रुप है। उमा-महेश्वर व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। महिलाओं को विशेष तौर पर इस व्रत को करना चाहिए।

 

भाद्रपद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा आरम्भ - 20 सितम्बर को 05:30:29 से

पूर्णिमा समाप्त- 21 सितम्बर को 05:26:40 तक

 

भाद्रपद  पूर्णिमा विधि

भाद्रपद पूर्णिमा की सही विधि जिसका उपयोग कर अपनी अराधना का सार्थक बनाया जा सकता है। यह विधि है-

चरण- 1  प्रातःकाल में जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें।

चरण- 2  व्रत का संकल्प लेने के पश्चात किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करना चाहिए।

चरण- 3  इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा का विशेष महत्व है इसलिए विधिपूर्ण भगवान विष्णु के सत्यनारायण अवतार की पूजा करना चहिए तथा उन्हें नैवेद्य के साथ साथ पुष्प भी अर्पण करना चाहिए।

चरण- 4  इस दिन घर में सत्यनारायण की कथा का आयोजन करना चाहिए जिसे खुद भी सुनना और दूसरों को भी सुनाना चाहिए।

चरण- 5  पंचामृत और चूरमें का प्रसाद कथा सुनने और सुनाने वाले को बांटना चाहिए।

चरण- 6  किसी असहाय या ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

 

भाद्रपद  पूर्णिमा का महत्व

भाद्रपद का महत्व बहुत ज्यादा है। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के कष्ट दूर हो जाते है और उसके जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है। अपने दुखों का निवारण करने के लिए प्रातःकाल में किसी बैकुंठ में स्नान करना महत्वपूर्ण होता है। वहीं दान पुण्य करने से ईश्वर की कृपा होती है और शुभफलों की प्राप्ति होती है। जाने अनजाने में हुए दूसरे के अपमानों का प्राश्चित करने के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है।

 

उमा-महेश्वर व्रत

भाद्रपद पूर्णिमा प उमा-महेश्वर व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत महिलाओं को लिए विशेष महत्व रखता है। भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को इस व्रत को करने के बारे में बताया गया है लेकिन नारदपुराण में इस व्रत को भाद्रपद की पूर्णिमा में रखने के लिए कहा गया है। ऐसे में दोनों ही दिनों में इसे रखना चाहिए। यह व्रत स्त्री अपने संतान के बुद्धिमान और सौभाग्यशाली होने की कामने के साथ रखती है। इस व्रत को करने वालों को भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमा की स्थापना करना चाहिए। पूजा करते समय भगवान शिव और माता पार्वती के अर्धभगवती रुप का ध्यान करना चाहिए।   

 

भाद्रपद  पूर्णिमा की कथा

मत्स्य पूराण के अनुसार प्राचीन काल में एक महर्षि दुर्वासा थे। दुर्वासा एक बार शंकर भगवान के दर्शन के बाद घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे कि अचानक उनकी भेंट विष्णु भगवान से हो गई। विष्णु भगवान के आदर में दुर्वासा के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं था तो उन्होंने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला ही उन्हें सादर स्वरुप भेंट की। विष्णु भगवान ने उस भेंट को स्वीकार तो किया पर उसे गरुड़ के गले में डाल दिया। जिससे दुर्वासा को अहसास हुआ कि विष्णु भगवान ने शंकर भगवान का अपमान किया है। ऐसी स्थिति में उन्होंने विष्णु भगवान को श्राप दिया कि उनकी सभी चीजें उनसे छीन जाए और वह लक्ष्मी विहिन हो जाए। इतना ही नहीं शेषनाग और क्षीर सागर भी उनके पास न रहे। अनजाने में हुई इस भूल के लिए विष्णु भगवान ने दुर्वासा से मांफी मांगी और इस श्राप से मुक्ति का मार्ग पूछा तब दुर्वासा ने उन्हें भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत रखने की सलाह दी। इस व्रत को रखने के बाद विष्णु भगवान की सभी शक्तियां तथा लक्ष्मी जी उन्हें पुनः प्राप्त हो गई।

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