बृहस्पति व्रत की विधि, महत्व और कथा
विष्णु भगवान को समर्पित गुरुवार का व्रत मनुष्य के लिए पालनहार सिद्ध होता है। इस दिन का व्रत रखने से मनुष्य की कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। गुरुवार के व्रत के अनेक फायदे हैं इसलिए इस व्रत को अवश्य ही रखना चाहिए। लड़कियों को अपनी मनपसंद का वर प्राप्त करने के लिए, निसंतान दंपत्ति को पुत्र प्राप्त करने के लिए तथा बेरोजगारों को नौकरी प्राप्त करने के लिए इस दिन का व्रत अवश्य रखना चाहिए।
बृहस्पति पूर्णिमा विधि
बृहस्पति में इस व्रत विधि का पालन कर अच्छे फलों की प्राप्ति की जा सकती है। यह विधि है-
चरण- 1 सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करना चाहिए तथा स्वच्छ कपड़े धारण करनी चाहिए।
चरण- 2 स्नान के पश्चात बृहस्पति देव के रूप में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
चरण- 3 पीली मिठाई, पीले चावल, हल्दी, पीले फुल इत्यादि पीली चीजों का उपयोग पूजा में करना चाहिए।
चरण- 4 अपनी मनोकामना को ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
चरण- 5 केले के पेड़ की पूजा अनिवार्य माना जाता है। इसलिए इस दिन केले के पेड़ की पूजा अवश्य करना चाहिए।
चरण- 6 केले के पेड़ की पूजा के बाद दीपक से उसकी आरती करना चाहिए।
चरण- 7 अन्य व्रत की तरह इस व्रत में भी सिर्फ दिन में एक बार ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
चरण- 8 गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति की कथा सुननी और सुनानी चाहिए।
बृहस्पति के व्रत का महत्व
बृहस्पतिवार का व्रत खास महत्व रखता है। वैसे तो व्रत अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भी रखा जाता है। मनुष्य अपने विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिन व्रत रख सकता है। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य की एक साथ कई इच्छाओं की पूर्ति होती है। बुधवार का व्रत स्वास्थ्य अर्थ परिवार जरूरी जैसे जरूरी आवश्यकताओं के रखना चाहिए। कष्टों को दूर करने के लिए इस दिन विशेष तौर पर व्रत रखा जाता है।
गुरुवार के दिन क्या करें
गंदे वस्त्र को घर से बाहर नहीं धुलाना चाहिए।
केले का उपयोग खाने में नहीं करना चाहिए। इस दिन केले की पूजा की जाती है।
नाखून काटने और दाढ़ी बनाने से बचना चाहिए।
स्नान में साबुन का उपयोग तथा केश धोने से बचना चाहिए।
सूर्योदय के तुरंत बाद ही पूजा करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
बृहस्पति के व्रत की कथा
गुरुवार के व्रत पर एक कथा प्रचलित है। इस कथा अनुसार प्राचीन काल में एक बहुत ही दानवीर राजा था। राजा अधिक दान करता और जरूरतमंदों की मदद करता। लेकिन इसके विपरित राजा की पत्नी दान दक्षिणा करने से परेशान रहती। उसे दान देना कष्टदायक लगता। एक दिन राजा जब शिकार करने गया तब भगवान बृहस्पतिदेव एक साधु के रूप धारण कर राजा की पत्नी के पास पहुंचे और उसे दान देने का आग्रह किया। राजा की पत्नी ने साधु को दो बार तो टाल दिया। फिर जब साधु तीसरी बार दान मांगने पहुंचा तो राजा की पत्नी नाराज होकर साधु का तिरस्कार करने लगी। राजा की पत्नी का व्यवहार देख भगवान पतिदेव ने बृहस्पति देव ने उसे प्रति बुधवार को मांस मदिरा का सेवन करने, केले को खाने और स्नान करते समय केश को धोने, कपड़ों को धोबी से धुलवाने जैसे सात कार्य बताए जो गुरुवार के दिन करने पर प्रतिबंध होता है।
राजा की पत्नी ने ऐसा ही किया। ऐसा करने से सिर्फ तीन बुधवार में उसके घर में अन्न का एक दाना भी नहीं बचा। सभी उसको छोड़ कर चले गए और वह अपनी दासी के साथ अकेले रह गई। एक दिन जब उसके पास अन्न का एक दाना भी नहीं था तो उसने अपनी दासी को अपनी बहन के पास सहायता के लिए भेजा। बड़ी बहन उस दिन गुरुवार का व्रत रखी हुई थी इसलिए उसने उस समय कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी और अपनी आराधना में व्यस्त रही। अगले दिन छोटी बहन के घर पहुंच कर उसने सारी स्थिति जानने के बाद उसने बुधवार का व्रत सही विधि विधान के साथ रखने के लिए कहा। साहूकार की पत्नी ने ऐसा ही किया और फिर से कुछ दिनों में उसका परिवार खुशहाल हो गया।
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