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छठ पूजा का त्योहार


Saturday, 20 March 2021
छठ पूजा का त्योहार

छठ पूजा का त्योहार

 

छठ पूजा का त्योहार श्रृद्धा और भक्ति- भाव से भरा हुआ त्योहार है। जिसका हम सालभर इंतजार करते है और दिवाली के छठे दिन मां छठी और देव सूर्य की पूजा करते है। आइए जानते है साल 2021 में कब है छठ पर्व और क्यों मनाया जाता है छठी मइया का ये त्योहार

 

छठ पूजा 2021: 10 नंवबर, बुधवार

 

सूर्यास्त का समय: 17:30 (10 नंवबर)

 

सूर्यादय का समय: 06:40 (11 नंवबर)

 

 

 

छठ पूजा मन्नतें मांगने का दिन, धन्यवाद करने का दिन और भगवान सूर्य को ना केवल उगते समय बल्कि ढलते समय भी अर्घ्य देने का दिन है। मां पष्ठी और देव सूर्य की पूजा- अर्चना करने का ये इकलौता त्योहार है। छठ पर्व जो कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक श्रृद्धा, भक्ति और भाव से भरा हुआ त्योहार है।

 

 

 

क्यो मनाते हैं छठ पर्व

 

                                             

 

माना जाता है कि सबसे भगवान राम-सीता ये त्योहार मनाया थ और श्रीराम और सीता ने सूर्य उपासना की थी। जब भगवान राम लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे तो राम-सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा-अर्चना की थी।

 

 छठ पूजा का महत्व

 

कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है। शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को इस पूजा का विशेष विधान है। कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होते हैं इसलिए सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है। षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से होता है इसलिए सूर्यदेव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और रक्षा होती है।

 

कैसे करें छठ पूजा

 

छठ पर्व की शुरूआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है। इस पर्व को चार दिन तक बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। छठ पर सूर्य देवता की आराधना की जाती है। कहा जाता है कि छठी मइया सूर्य देव के रथ पर बैठकर आती हैं और व्रती के साथ पूरा परिवार उनकी पूजा करता है। पारंपरिक तौर पर छठी मइया की कोई भी प्रतिमा नहीं होती है। सूर्य और प्रकृति उपासना का सबसे बड़ा पर्व अपने आप में बेहद अद्भुत है। इस पर्व की खास बात ये है कि इसमें हम जिस भगवान की पूजा करते है वो साक्षात रूप में हमारे सामने होते है।चार दिन चलने वाले इस पर्व की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। यही कारण है कि इस पर्व को छठ पर्व कहा जाता है। छठी मइया की महिमा को गाते हुए चार दिन तक पूरे हर्षोल्लास के साथ छठ का पर्व मनाया जाता है।

 

 

 

1.       ‘नहाय-खाए’

 

छठ के पहले दिन को ‘नहाय-खाए’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान कर नए कपड़े पहनते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन करते हैं। भूरे भक्ति भाव में डूबकर व्रती महिला सूर्य पष्ठी के पहले दिन साफ-सफाई करके दूसरे दिन की तैयारी करती है।

 

2.      खरना

 

दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। खरना के दिन यानि कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रत रखा जाता है। व्रती इस दिन शाम के समय एक बार भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को चावल-गुड़ की खीर बनाकर खायी जाती है। चावल का पिठ्ठा और घी लगी हुई रोटी ग्रहण करने के साथ ही प्रसाद रूप में भी बांटा जाता है। भक्ति में डूब कर छठ के दोनों दिनों को मनाया जाता है। इस व्रत को बाकि व्रतों को सबसे ज्यादा कठोर माना जाता है। साथ ही व्रती से कोई गलती ना हो इस बात का भी खास ध्यान रखा जाता है।

 

3.      संध्या अर्घ्य

 

छठ पर्व का तीसरा दिन यानि संध्या अर्घ्य का दिन। इस दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारियां करते हैं।  छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाए जाते हैं। छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई टोकरी में पूजा के प्रसाद, फल रखकर देवकारी में रख दिया जाता है और वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल और पूजा का बाकी सामान लेकर घर का पुरुष अपने सर पर रखकर छठ घाट पर ले जाता है। ये अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है। नदी के किनारे जाकर महिलाएं चबूतरे में बैठती है और नदी से मिट्टी निकाल कर छठी मइया के जो चौरे पर पूजा का सामान रखकर नारियल चढ़ाते है और दीप जलाते है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है।इन पांचो परिक्रमा के दौरान सूर्यदेव को दूध से अर्घ्य दिया जाता है।

 

 

 

4.      पारण

 

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा के लिए पहुंचते हैं। संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है मगर कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैं। सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य की तरह ही होते हैं। सिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं और सूर्योपासना करते हैं। पूजा-अर्चना समाप्त होने के बाद घाट का पूजन होता है। वहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके घर आ जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार को प्रसाद बांटते हैं। व्रती घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं। पूजा के बाद व्रती गर्म पानी और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करते हैं जिसे पारण कहते हैं।

 

 

 

 छठ पूजा का महत्व

 

छठ पूजा सूर्य और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है।छठ में कोई मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। त्योहार के अनुष्ठान कठिन हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, प्रसाद और अर्घ्य देना शामिल है। सूर्य उपासना का ये अनुपम लोकपर्व पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है.वैसे तो इस त्योहार को ज्यादातर हिंदु ही मनाते है लेकिन अब इस्लाम समेत कई और भी धर्म छठ पूजा करते हैं।छठी मइया की पूजा भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध है।

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