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Holashtak - होलाष्टक - क्या करें क्या न करें


Wednesday, 03 March 2021
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होलाष्टक | Holashtak

होलाष्टक का उत्सव होली के त्योहार से जुड़ा हुआ है। यह होली के उत्सव से ठीक पहले आता है। होलाष्टक की अवधि भारत के उत्तरी भागों में अधिकांश हिंदू समुदायों द्वारा अशुभ मानी जाती है। उत्तर भारत में अपनाई जाने वाली पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार, होलाष्टक 'फाल्गुन' महीने की 'शुक्ल पक्ष' के 'अष्टमी' से शुरू होता है और 'पूर्णिमा' तक जारी रहता है।

होलाष्टक का अंतिम दिन, अर्थात फाल्गुन पूर्णिमा को अधिकांश क्षेत्रों में होलिका दहन किया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में, होलाष्टक फरवरी मध्य से मार्च मध्य तक आती हैं। होलाष्टक हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जबकि 2021 में होलाष्टक 22 मार्च, सोमवार से शुरू होकर 28 मार्च, रविवार को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा।

होलाष्टक के दौरान अनुष्ठान

होलाष्टक की शुरुआत के साथ, लोग कपड़े के रंगीन टुकड़ों का उपयोग करके एक पेड़ की शाखा को सजाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति शाखा पर कपड़े का एक टुकड़ा रखता है और उसे अंत में जमीन में गाड़ दिया जाता है। कुछ समुदायों द्वारा होलिका दहन के दौरान कपड़े के इन टुकड़ों को जला भी दिया।

इसके अलावा होलाष्टक के शुरुआती दिन, फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी, और होलिका दहन के लिए एक स्थान चुना जाता है। प्रत्येक दिन होलिका दहन के स्थान पर छोटी छोटी लकड़ियाँ इकट्ठी की जाती हैं।

होली का 9-दिवसीय त्योहार आखिरकार 'धुलेटी' के दिन समाप्त हो जाता है।

होलाष्टक के दिन 'दान' करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उदारतापूर्वक कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए।

होलाष्टक का महत्व

होलाष्टक दो अलग-अलग शब्दों, होली और अष्टक से बना शब्द है, जो होली के आठ दिनों को दर्शाता है। हिंदू समुदाय में होलाष्टक की अवधि को प्रतिकूल माना जाता है।

इसलिए इस अवधि के दौरान विवाह, बाल नामकरण संस्कार, गृहनिर्माण और अन्य 16 हिंदू संस्कारों या अनुष्ठानों जैसे शुभ समारोहों से बचा जाता है। कुछ समुदायों में, लोग होलाष्टक अवधि के दौरान नया व्यापार शुरू करना भी शुभ नहीं मानते हैं।

ऐसा इसलिए है क्योंकि होलाष्टक की अवधि के दौरान, सूर्य, चंद्रमा, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनि, राहु और शुक्र जैसे हिंदू ग्रह परिवर्तन से गुजरते हैं।

होलाष्टक की अवधि तांत्रिकों के लिए बहुत अनुकूल मानी जाती है क्योंकि वे आसानी से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। होली का उत्सव होलाष्टक की शुरुआत के साथ शुरू होता है और फाल्गुन पूर्णिमा के अगले दिन 'धुलेटी' पर समाप्त होता है। इस प्रकार 2021 में होलाष्टक 22 मार्च, सोमवार को शुरू होगा जो 28 मार्च, रविवार को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा।

होलाष्टक में इसलिए नहीं किये जाते हैं शुभ कार्य

होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लगते हैं और इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है जैसे कि गृह प्रवेश, शादी विवाह की बातें, कोई भी नया काम इस समय शुरू नहीं किया जाता है। इस समय को शुभ दृष्टि से नहीं देखा जाता है इसीलिए बोला गया है कि होलाष्टक में किए गए काम का सकारात्मक प्रभाव जातक के ऊपर नहीं पड़ता है और उस काम में हानि उठानी पड़ती है. तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों होलाष्टक के समय शुभ कार्यों पर बैन किया गया है-

1. ऐसा बोला जाता है कि हरिण्यकशिपु ने अपने बच्चे को मारने के लिए होली से 8 दिन पूर्व ही सारे प्रयास शुरू कर दिए थे। भक्त प्रहलाद ईश्वर की भक्ति करता था और यह बात उसके पिता हरिण्यकशिपु को पसंद नहीं आ रही थी इसीलिए प्रह्लाद को मारने के लिए 8 दिन पूर्व कार्य किए गए थे और भगवान लगातार अपने भक्तों की रक्षा कर रहे थे। तभी से इन 8 दिनों को शुभ दृष्टि से नहीं देखा जाता है और होलाष्टक यानी कि होली और अष्टक इस का सामान्य अर्थ बताया गया है। आज भी होलाष्टक के 8 दिन शुभ नहीं बोले गए हैं इसलिए इस समय में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

2. दूसरी तरफ वहीं एस्ट्रोलॉजी में ऐसा बोला गया है कि होली से 8 दिन पूर्व ग्रह की स्थिति काफी नकारात्मक रहती है और दुष्ट ग्रह अपने परिणाम देते हुए नजर आते हैं। इसलिए भी एस्ट्रोलॉजी यानी ज्योतिष में भी होली से पूर्व के यह 8 दिन अच्छे नहीं बताए गए हैं। राहु और शनि जैसे ग्रहों की स्थिति होली से 8 दिन पूर्व काफी हावी होती है और नकारात्मक शक्ति चारों तरफ व्याप्त होती हैं. इसलिए भी होली से पूर्व जोक यह 8 दिन होते हैं जिनको की होलाष्टक बोलते हैं उनमें शुभ कार्य करने की मनाही बोली गई है।

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