जया एकादशी 2021
तिथि- 23 फरवरी 2021
जया एकादशी माघ महीने की शुल्क पक्ष को माना जाता है। अपने पापों के प्राश्चित के लिए इस एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत रखना पुण्यदायी होता है। इस व्रत को रखने से मनुष्य को अगले जन्म में किसी पिशाच या भूत-प्रेत के योनि में जन्म नहीं लेता। श्रीकृष्ण भगवान ने भी इस इसके महत्व को बताया है।
जया एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 23 फरवरी
समय- 24 फरवरी को प्रातः 6:51:55 से 09:09:00 तक
समयावधि- 2 घंटे 17 मिनट
जया एकादशी पूजा विधि
जया एकादशी में भगवान विष्णु की अराधना किया जाता है। इसकी विधि को उल्लेखित कर रहे हैं जिसका पालन करना अनिवार्य हो जाता है-
चरण- 1 जया एकादशी से पूर्व दशमी पर सिर्फ एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए।
चरण- 2 पवित्रा, संयम तथा बह्मचार्य का पालन करना महत्वपूर्ण है।
चरण- 3 सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना उचित है। सच्ची श्रद्धा से मन में इसका विचार कर भी व्रत रखा जा सकता है।
चरण- 2 भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार की अराधना धूप, दीप, फल और पंचामृत अर्पित करना चाहिए।
चरण- 4 रात्रि में ‘श्री हरि’ का भजन तथा जागरण करना चाहिए।
चरण- 5 अगले दिन व्रत का पारण ब्राह्मणों तथा जरुरतमंदों को भोजन कराकर या दान दान देकर करना चाहिए।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
चावल का सेवन करना वर्जित है। चावल का उपयोग बिल्कुल न करें।
खाने को त्यागना उचित है। सात्विक जीवन जीना चाहिए। पति पत्नि भोग विसालिता से दूर रहे। शारीरिक संबंधों को बनाने से बचें।
वाणी पर संयम रखना उचित है। कठोर और असंयमित वाणी हानिकारक है।
सूर्यास्त के समय सोने से बचें।
व्रत के दिन द्वेष, छलकपट, काम और वासना से दूर रहें।
जया एकदशी का महत्व
जया एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। यह व्रत आपके अगले जन्म को तय करता है। अगर किसी से सच्ची श्रद्धा से यह व्रत रखा तो वह अगले जन्म में कभी किसी दुखदायी योनि में जन्म नहीं लेगा। भूत-पिशाच जैसी योनि में मनुष्य का जन्म भगवान का श्राप माना जाता है। ऐसे में इस जन्म से बचने के लिए यह व्रत रखना चाहिए। इसका महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह व्रत अपने पूर्वजों के लिए भी रखा जाता है। मनुष्य के व्रत रखने के कारण उनके पूर्वजों को स्वर्ग में जगह प्राप्त होता है और उनके पाप का अंत कर दिया जाता है। विष्णु भगवान और लक्ष्मी जी को इस प्रसन्न रखने के लिए भी यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं को अगर हम माने जया एकादशी के व्रत के पीछे एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार भगवान इंद्र की सभा में उत्सव का आयोजन किया गया। उत्सव में गीत संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी तथा उसी सभा में एक ऐसा गंधर्व पुरुष भी था जो बहुत ही सुरीली आवाज में गा रहा था। इंद्र इस पूरे उत्सव का आनंद ले रहे थे। इसी दौरान गंधर्व कन्या और पुरुष के आपस में नैन मिले और और वह दोनों अपने लय से भटक गए। भगवान इंद्र के आनन्द में खलल पैदा होगी। ऐसी स्थिति में भगवान इंद्र को क्रोध आ गया और उन्होंने दोनों ही गंधर्व को मृत्युलोक में पिशाच का जीवन निर्वाह करने का श्राप दे दिया।
दोनों ही गंधर्व काफी समय तक पिशाच की योनि में बहुत ही कष्टदायक जीवन व्यतीत करते रहे। एक दिन उन्होंने कुछ नहीं खाया और अपनी गलती की क्षमा भगवान से मानते रहे। वह दिन संयोगवस जया एकादशी का व्रत का दिन था और इस व्रत के कारण उन दोनों को इस नर्क से मुक्ति मिल गई और वापिस वह स्वर्ग लोक में आ गए।
यह सब कुछ संयोगवश हुआ लेकिन उसके बाद से ही जया एकादशी के व्रत रखने की परंपरा बन गई और आज भी अगले जन्म में कष्टदायक जन्म से बचने के लिए इस व्रत का अनुपालन मनुष्य करता है।
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