Lingaraj mandir bhubaneswar odisha- भारत लोकतांत्रिक देश होने के साथ-साथ धार्मिक देश भी है। यहां पर लाखों की संख्या में मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे बने हुए हैं। हर मंदिर की अपनी अलग महिमा है और सभी जगह विशेष रूप से भगवानों की पूजा अर्चना की जाती है। यहां पर भगवान शिव को समर्पित बहुत से मंदिर हैं और उन्हीं मंदिर में शामिल लिंगराज मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।
लिंगराज मंदिर (Lingaraj mandir) भुवनेश्वर में स्थित है। भुनेश्वर ओडिशा की राजधानी है। लिंगराज मंदिर बेहद प्राचीन और विशाल है। जो शिव को समर्पित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां केवल हिंदू धर्म के अनुयायी ही प्रवेश कर सकते हैं।
लिंगराज मंदिर का इतिहास | Lingaraj mandir History in Hindi
सबसे पहले हम आपको बता दें कि लिंगराज का अर्थ है लिंगम के राजा और लिंगम के राजा भगवान शिव को कहा जाता है। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि 11वीं शताब्दी को सोमवंशी राजा ययाति केशरी ने लिंगराज मंदिर को बनवाया था। वहीं एक और तथ्य के बारे में कहा जाता है कि लिंगराज मंदिर का निर्माण छठीं शताब्दी में किया था।
मंदिर की वास्तुकला
लिंगराज मंदिर की भव्यता के कारण यह विश्व भर में प्रसिद्ध है। मंदिर की संरचना गहरे बलुआ पत्थर से निर्मित है। ये कलिंग शैली के साथ ओडिशा शैली का भी एक शानदार उदाहरण है। लिंगराज मंदिर विशाल बिंदुसागर झील के आसपास किलो की दीवारों से घिरा हुआ है। मंदिर का प्रागंण 150 वर्गाकार का है। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 180 फुट और कलश की ऊंचाई 40 मीटर के लगभग है। किले की दिवारी मूर्तियों के साथ खूबसूरती से बनाई गई है। पूरे मंदिर परिसर में 150 से भी ज्यादा छोटे-छोटे मंदिर बने हैं। जिसमें गणेश, कार्तिकय और मां गौरी का मंदिर भी शामिल है। मां गौरी की यहां पर काले पत्थर की मूर्ति बनी है। लिंगराज मंदिर में भगवान शिव आंतरिक गर्भ ग्रह में स्थित लिंगम रूप में स्थित है। स्वयंभू लिंग आठ फीट मोटा और करीब एक फीट ऊंचा है जो ग्रेनाइट पत्थर का बना हुआ है। यहां पर स्थित बिंदुसागर सरोवर मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। सरोवर का पानी सारे संकट और मानसिक बीमारियों को दूर करता है। इस सरोवर में स्नान करने की परंपरा है।
लिंगराज मंदिर की पौराणिक कथा | Lingaraj Mandir Puranik kahani
लिंगराज मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव को भुनेश्वर शहर इतना पसंद क्यों हैं ये जानने के लिए देवी पार्वती सामान्य मवेशी के रूप में भुनेश्वर पहुंची और जब देवी भुनेश्वर आ रही थी तो उनका पीछा करते हुए क्रिति और वासा नाम के दो राक्षस भी आ गए। मां पार्वती ने दोनों राक्षसों को कई बार मना किया मगर वो लगातार माता का पीछा करते रहें। जिसके बाद माता पार्वती और दोनों राक्षसों के बीच युद्ध हुआ और राक्षकों का माता पार्वती ने वध कर दिया। भयानक युद्ध के पश्चात् माता को भयानक प्यास लगी। प्यास को बुझाने के लिए भगवान शिव ने सभी पवित्र नदियों का योगदान मांगा और एक सरोवर बनाने को कहा। नदियों ने योगदान देकर यहां पर बिंदुसागर सरोवर का निर्माण किया और मां पार्वती ने सरोवर के जल से अपनी प्यास बुझाई।
चंदन यात्रा समारोह
लिंगराज मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर चंदन यात्रा समारोह भी बनाया जाता है जो विशेष त्योहारों में शामिल है। ये समारोह मंदिर के सेवकों के बिंदूसागर सरोवर में विस्थापित होने के बाद मनाया जाता है। इस समारोह में देवताओं और भक्तों को चंदन लगाया जाता है और बड़े ही हर्षोल्लास के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है।
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