मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021
रविवार, 19 दिसम्बर 2021
सभी कालों में सतयुग को सबसे पवित्र युग माना जाता है। सतयुग में से बेहतर कोई युग न हुआ न होगा। ठीक वैसे ही मार्गशीर्ष माह को सबसे पवित्र माह माना जाता है। सतयुग काल का प्रारंभ भी मार्गशीर्ष माह से हुआ था। मार्गशीर्ष माह में आने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णमा कहा जाता है। इसको खुद श्रीकृष्ण जी ने सबसे पवित्र माह माना है। मार्गशीर्ष के दिन सबसे ज्यादा दान और अराधना करनी चाहिए। ऐसे करने से जीवन में समृद्धि का आगमन होता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा आरम्भ - 18 दिसम्बर को 07:26:35 से
पूर्णिमा समाप्त- 19 दिसम्बर को 10:07:20 तक
मार्गशीर्ष पूर्णिमा विधि
सबसे पवित्र माह में आने वाली मार्गशीर्ष पूर्णिमा में सभी सुखों की प्राप्ति के लिए व्रत को पूर्ण विधि विधान के साथ रखना चाहिए। किसी भी व्रत को विधि विधान से ही करना चाहिए तभी उस व्रत से होने वाला लाभा प्राप्त किया जा सकता है। कई हिन्दू ग्रंथों में विधि के महत्व को बताया गया है। ऐसे में सही विधि का उपयोग कर अपने सभी धार्मिक कार्यों को सार्थक बनाया जा सकता है। यह विधि है-
चरण- 1 प्रातः काल में नारायण जी का ध्यान लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
चरण- 2 व्रत का संकल्प लेने के पश्चात किसी कुंड या जलाश्य में स्नान करना चाहिए।
चरण- 3 “ऊँ नमोः नारायण” का जाप करते रहे तथा पुष्प, गंध और आसन से भगवान की अराधना करना चाहिए।
चरण- 4 इस दिन हवन करना महत्वपूर्ण होना चाहिए। हवन से पहले पूजा स्थल पर बेदी बनाना चाहिए। हवन में अग्नि जलाकर उसमें तेल, घी और बूरे की आहूति देना चाहिए।
चरण- 5 हवन के पश्चात भगवान को ध्यान कर उन्हें आस्थापूर्ण तरीके से अपना वर्त अर्पण करना चाहिए।
चरण- 6 रात्रि में अपने सोने के स्थान के पास भगवान नारायण की मूर्ति रखें या जहां पर उनकी मूर्ति स्थापित हैं वहीं पर सोना चाहिए।
चरण- 7 व्रत के पश्चात अगले दिन जरुरतमंद या ब्राह्मण को भोजना कराकर उन्हें दान देना चाहिए।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
मार्गशीर्ष का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में भी इसके महत्व का वर्णन किया है। मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा विशेष कृपा पाने के लिए भक्तों को स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी का प्रयोग करना चाहिए। इस पूर्णिमा का महत्व अन्य पूर्णिमा की तुलना में अधिक है क्योंकि इस दिन किए गए दान से जो फल प्राप्त होता है वह अन्य 32 पूर्णिमा के फल के बराबर है। यही कारण है कि इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह दिन भगवान सत्यनारायण का है इसलिए इस दिन सत्यनारायण की कथा सुननी और सुनानी चाहिए। वहीं विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए दान देना लाभकारी होगा है।
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