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माँ चंद्रघंटा - नवरात्र का तीसरा दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा विधि - Astroonly.com


Sunday, 11 April 2021
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नवरात्रों में तीसरे दिन में माता रानी के तीसरे रूप के रूप में चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती है। नवरात्रि की पूजा में तीसरे दिन का विशेष महत्व बताया गया है। यह दिन काफी खास दिन होता है और तंत्र मंत्र की साधना के लिए भी यह दिन का भी विशेष महत्व रखता है। इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता हुआ नजर आता है और इस चक्र को जगाने के लिए साधक प्रयास करता हुआ नजर आता है। 

मां चंद्रघंटा की पूजा से जातक और साधक द्वारा किए सभी पाप और बाधाएं खत्म होती हुई नजर आती हैं। इनकी आराधना सभी तरीके के फल प्रदान करने वाली होती हैं। मां भक्तों के कष्ट का निवारण करती हुई नजर आती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह निर्भीक हो जाता है और वह संसार में बड़े से बड़ा कठिन कार्य करता हुआ नजर आ जाता है। इनके घंटे की शक्ति सदा अपने भक्तों को प्रेत बाधा से भी दूर रखती हुई नजर आती है। 

इनके माथे पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा बना हुआ है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा माता बोला जाता है। इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्जवल और इनके दस हाथ होते हैं। 10 हाथों में खड़क, बाण, शस्त्र होते हुए नजर आते हैं। इनका वाहन शेर है। 

 

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मां चंद्रघंटा की पूजा विधि 

 

पूजा विधि की बात की जाए तो सबसे पहले जल्दी उठे और स्नानादि से जल्दी पूरी तरह से फ्री हो जाए तो आपको माता की चौकी पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा और तस्वीर को स्थापित करना चाहिए। इसके बाद गंगाजल या गोमूत्र से शुद्धीकरण करना चाहिए। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उसके ऊपर नारियल रखकर कलश को स्थापित करना चाहिए। 

इसके बाद पूजा का संकल्प प्रारंभ करना चाहिए। वैदिक एवं मंत्रों के द्वारा चंद्रघंटा माता को आसन ग्रहण के लिए आग्रह पूर्वक बुलाना चाहिए। इसके बाद रोली, हल्दी, सिंदूर, आभूषण, पुष्प, हार, सुगंधित, द्रव्य, धूप आदि चीजों से माता रानी की पूजा की जानी चाहिए। आखिर में पांच फल, मिठाई आदि का माता रानी को भोग लगाना चाहिए। अंत में आरती करनी चाहिए और इसके बाद खास मंत्रों से माता रानी का ध्यान करना चाहिए। पूजा के अंत में मंत्र एवं स्रोत के द्वारा माता रानी से विनम्र विनती, या अपनी प्रार्थना उनके सामने रखनी चाहिए।

 

ध्यान

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

 

स्तोत्र पाठ 

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

 

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माँ शैलपुत्री | माँ ब्रह्मचारिणी

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