नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा विधि की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माता की पूजा करने से व्यक्ति को उसके हर पाप से मुक्ति मिल जाती हैं। तो वही साथ-साथ उनके शत्रुओं का नाश हो जाता है। माता को कालरात्रि इसलिए भी कहा जाता है। क्योंकि इनका रंग काला और इनके 3 नेत्र है। मां के हाथ में खड्ग और कांटा है। मां का वाहन गधा है। माता का स्वरूप देखने में बहुत ही आक्रमण प्रभावित करने वाला है। तो चलिए जानते हैं। नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा विधि कैसे की जाती है।
नवरात्रि के सातवें दिन श्रद्धालु भक्तों को इस दिन सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए और अपने सभी नित्य कर्मों से फ्री होकर स्नान आदि करके फिर माता की पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना करें और फिर सभी कलश के देवताओं की विधिवत पूजा करें इसके बाद माता को अक्षत, धूप, रातरानी के पुष्प, गंध, रोली, चंदन अर्पित करें। और फिर पान सुपारी मां को चढ़ाएं दीया कपूर जलाकर माता की आरती आरंभ करें और माता की कथा सुने।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब कैलाश पर्वत पर मां पार्वती अनुपस्थिति उस समय दुर्गासुर नाम का राक्षस कैलाश पर्वत पर हमला करने की कोशिश कर रहा था उस समय उस राक्षस का वध करने के लिए माता पार्वती ने अपने कालरात्रि स्वरूप को भेजा उस समय ही मां कालरात्रि का उत्पन्न हुआ था। उस युद्ध के दरमियान राक्षस का कद बहुत विशाल काय होता जा रहा था तब माता देवी ने खुद को बहुत ही शक्तिशाली बनाया और वस्त्रों सुसज्जित हुईं और फिर उन्होंने दुर्गासुर को मार गिराया इसी कारण दुर्गा भी कहा जाता है।
काल के मुंह से बचाने वाली
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा
महा चंडी तेरा अवतारा
पृथ्वी और आकाश पर सारा
महाकाली है तेरा पसारा
खंडा खप्पर रखने वाली
दुष्टों का लहू चखने वाली
कलकत्ता स्थान तुम्हारा
सब जगह देखूं तेरा नजारा
सभी देवता सब नर नारी
गावे स्तुति सभी तुम्हारी
रक्तदंता और अन्नपूर्णा
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी
ना कोई गम ना संकट भारी
उस पर कभी कष्ट ना आवे
महाकाली मां जिसे बचावे
तू भी ‘भक्त’ प्रेम से कह
कालरात्रि मां तेरी जय
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः’
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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