मोहिनी एकादशी 2021
तिथि- 23 मई 2021
मोहिनी एकादशी अर्थात बैसाख माह के शुल्क पक्ष की एकादशी। इसे बहुत ही पावन एकादशी माना जात है। साल की अन्य एकादशी की तुलना में यह सबसे ज्यादा फलदायी एकादशी होती है। मोह माया से दूर होने के लिए मनुष्य इस व्रत का अनुपालन पूर्ण विधि विधान के साथ करता है। इस व्रत को रखने से मनुष्य का कल्याण होता है तथा उसके सभी दुखों का अंत हो जाता है।
मोहिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 23 मई
समय- 24 मई को प्रातः 05:26:08 से 08:10:52 तक
समयावधि- 2 घंटे 44 मिनट
मोहिनी एकादशी पूजा विधि
मोहिनी एकादशी में भगवान विष्णु की अराधना किया जाता है। इसकी विधि को उल्लेखित कर रहे हैं जिसका पालन करना अनिवार्य हो जाता है-
चरण- 1 सुबह जल्दी उठकर स्नान करना और स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए।
चरण- 2 एकादशी पर कलश की स्थापना करना चहिए।
चरण- 3 स्नान और कलश की स्थापना के बाद विष्णु भगवान की अराधना करना चाहिए।
चरण- 4 व्रत की कथा को घर में सुनना और सुनाना चहिए ताकि धार्मिक माहौल घर में हमेशा ही बना रहे।
चरण- 5 रात्रि में ‘श्री हरि’ का भजन तथा जागरण करना चाहिए।
चरण- 6 द्वादशी पर व्रत का पारण करना चहिए। पारण के लिए ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए तथा दान देना चाहिए।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
दशमी के सूर्यास्थ के बाद से ही अन्य ग्रहण न करें।
दूसरे के प्रति व्रत के दौरान मन में किसी भी प्रकार का द्वेशभाव न रखें।
असत्य बोलने से दूर रहना आवश्यक है।
मोहिनी एकदशी का महत्व
मोहिनी एकादशी असुरों पर देवाताओं के विजय का प्रतीक है। अपनी बुरे कार्यों पर विजयी होने के लिए इस व्रत का रखना महत्वपूर्ण हो जाता है। इसकी महत्व को रखने से मोक्ष की प्राप्ति के साथ ही दुखों का नाश होता है। मनुष्य को निरोगी बानाने के लिए इस व्रत का अनुसरण किया जाता है। इस व्रत की महिमा से मनुष्य अपने पापों का प्राश्चित कर पाता है। निर्मल मन और सच्ची श्रद्धा से इस व्रत को करने से विष्णु भगवान प्रशन्न होते हैं।
पौराणिक कथा
मोहिनी एकादशी के बारे में कई पौराणिक मान्यता है। एक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपनी धर्मपत्नी सीता का पता लगाने के लिए यह व्रत रखा था। वहीं जब समुद्र मंथन हुआ तो असुरों तथा देवाताओं के बीच बहुत उथल-पुथल था। देवाओं को डर था कि वह ताकत के मामले में असुरों को हरा नहीं सकते। इसका कोई रास्ता नहीं मिला तो विष्णु भगवान ने मोहिनी का रुप धारण किया और असुरों को अपने मोह में फांस लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि असुरों ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया और देवता अमर हो गए।
एक अन्य कथा के अनुसार प्राचीनकाल में भद्रावति नगर था। इस नगर के सबसे धनी व्यक्ति के पांच पुत्र थे जिसमें से एक पुत्र धृष्टबुद्धि जो सभी भाईयों में सबसे छोटा था, वह बहुत ही दुष्ट था और बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। जब उसके बुरे कर्मों की अति हो गई तो पिता ने उसे घर निकाला दे दिया। घर से निकाले जाने के बाद वह बहुत दुखी हुआ और अपने कर्मों का पराश्चित करना चाहता था। प्राश्चित करने के लिए वह इधर उधर भटकता रहा। एक बार उन्हें कॉटिल्य ऋषि मिले जिन्होंने उसे प्राश्चाताप के उपाय के रूप में मोहनी व्रत रखने क सुझाव दिया। जब धृष्टबुद्धि से यह व्रत रखा तो उसके सारे पापों का अंत हो गया और उसने दिव्य देव धारण किया।
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