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Om Jai Jagdish Hare Aarti | ओम जय जगदीश हरे आरती


Friday, 05 March 2021
Om Jai Jagdish Hare Aarti | ओम जय जगदीश हरे आरती

Om Jai Jagdish Hare Aarti | ओम जय जगदीश हरे आरती

 

ओम जय जगदीश हरे, यह आरती आपने निश्चित रूप से अपने घर में सुनी होगी। जब भी घर में कोई बड़ा आयोजन होता है, पूजा की जाती है तब यह आरती निश्चित रूप से की जाती है। आप नया घर ले रहे हैं, आपने नई गाड़ी ली है, आपके घर में बच्चे का जन्म हुआ है, आपके घर में जब भी नारायण जी की कथा होती है तब यह आरती निश्चित रूप से की जाती है। ओम जय जगदीश हरे आरती का इतिहास कुछ 150 साल पुराना रहा है। इस आरती की शुरुआत 1870 ईसवी में बताई गई है। इसके गायक और इस आरती को लिखने वाले विद्वान का नाम पंडित श्रद्धा राम शर्मा इतिहास में बताया गया है। पंडित श्रद्धा राम जी का जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौरी गांव में हुआ था। 1881 में इनकी मृत्यु हुई। पंडित श्रद्धा राम जी एक ज्योतिषाचार्य थे और साथ में यह है कथा भी किया करते थे अतः इनको कथावाचक भी बोला गया है।

ओम जय जगदीश हरे आरती का संबंध हर हिन्दू व्यक्ति के जीवन से हैं और खासकर सनातन व्यक्ति के घर में असंख्य बार यह आरती की जाती है। उत्तर भारत में ओम जय जगदीश हरे की आरती काफी विख्यात रही है। दक्षिण भारत की तुलना में यह आरती उत्तर भारत में अधिक की जाती रही है।

एस्ट्रो ओनली भक्तों के लिए ओम जय जगदीश हरे की आरती इंग्लिश और हिंदी दोनों भाषा में लेकर आया है। आप इस आरती को प्रतिदिन अपने घर में कर सकते हैं और इसके करने से आपके घर में दुख परेशानियां खत्म होती हुई नजर आएंगी।

 

Om Jai Jagdish Hare Aarti | ओम जय जगदीश हरे आरती

 

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे।। ओम जय...

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।।  ओम जय...

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आश करूं किसकी।।  ओम जय...

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
स्वामी तुम अंतरयामी
परम ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।।  ओम जय...

तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता।
स्वामी तुम पालन करता
दीन दयालु कृपालु, कृपा करो भरता।। ओम जय...

तुम हो एक अगोचर सबके प्राण पति।
स्वामी सबके प्राण पति
किस विधि मिलूं दयामी, तुमको मैं कुमति।। ओम जय...

दीन बंधु दुख हरता, तुम रक्षक मेरे।
स्वामी तुम रक्षक मेरे
करुणा हस्त बढ़ाओ, शरण पड़ूं मैं तेरे।।  ओम जय...

विषय विकार मिटावो पाप हरो देवा।
स्वामी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा।। ओम जय...

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