पापांकुशा एकादशी व्रत
अश्वनी मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। इस एकादशी के व्रत को करने का बड़ा महत्व माना जाता है। आइए जानते हैं कि इस एकादशी का व्रत कैसे करते हैं और एकादशी साल 2021 में किस तारीख को है।
पापांकुशा एकादशी 16 अक्टूबर 2021, शनिवार
एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 8:00 (15 अक्टूबर, 2021)
एकादशी तिथि समाप्त: 17:35 (16 अक्टूबर, 2021)
पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से कि जन्म-जन्म के पापों का नाश हो जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पदनाम रूप की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु पापांकुशा एकादशी के व्रत के प्रभाव से खुश होकर पाप का नाश करके अंत में बैकुंठ धाम प्रदान करते हैं।
पापांकुशा एकादशी व्रत विधि
एकादशी के नियमों का पालन दसवीं के दिन से ही प्रारंभ कर देना चाहिए। दसवीं पर, गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए।
एकादशी के दिन सवेरे जल्दी उठकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहने और व्रत करने का संकल्प लें।
पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करके उसके सामने कलश रखें।
पूजन के लिए धूप, दीप, तुलसी, पुष्प और चंद्र आदि थाली में सजाएं।
सबसे पहले भगवान विष्णु का तिलक करने के बाद उन्हें तुलसी और पुष्प अर्पित करें और भगवान से कहें कि हम एकादशी का व्रत कर रहे हैं कि भगवान हमारे पापों का नाश करके हमारा उद्धार करो।
लोटे में जलकर भरकर पापांकुशा एकादशी का कथा सुनें।
उसके बाद भगवान विष्णु की धूप, दीप से आरती करें और बाद में आपने जो भी प्रसाद बनाया है, उसका भोग लगाकर घर में प्रसाद बांट दें।
पापांकुशा एकादशी के दिन गाय माता को भोजन कराएँ और जरूरतमंद लोगों की सेवा करें।
पापांकुशा एकादशी के दिन नमक ना खाएं आप फल खा सकते हैं और दूध आदि का सेवन भी कर सकते हैं
इस एकादशी का व्रत पूरा करने के बाद अगले दिन द्वादशी को फिर से सवेरे जल्दी उठें और भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद गाय माता को रोटी खिलाएं और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
द्वादशी के दिन गरीबों में अन्नदान करने से घर में धन-धान्य में वृद्धि होती है।
पापांकुशा एकादशी का महत्व
इस एकादशी का व्रत करने से जन्मों-जन्मों के पाप का नष्ट हो जाते हैं। पापांकुशा एकादशी को बड़ा ही महत्व दिया गया है क्योंकि कलयुग में मनुष्य द्वारा बड़े ही पाप होते हैं जिनका पश्चाताप करने के लिए पापांकुशा एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए।
एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में विद्यांचल पर्वत पर क्रोधन नाम का एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा ही क्रूर और पाप कर्म करने वाला था। उसने सारा जीवन लूटपाट. हिंसा और गलत काम करने में बिता दिया। अंतिम समय आया तो यमराज के दूत बहेलिया को ले जाने आए और उन्होंने बहेलिया से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है। यह सुनकर बहेलिया बहुत डर गया, जिसके वह महाऋषि अंगिरा के आश्रम पहुंचा और उसने कहा की हे! मुनिश्वर मेरा अंतिम समय आ गया है और मैंने अपने जीवन में पाप कर्म ही किए हैं। आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे सारे पाप मिट जाए और मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो। तब ऋषि अंगिरा ने कहा कि तुम अश्वनी शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। इससे तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा। इस प्रकार बहेलिया ने विधिपूर्वक पापांकुशा एकादशी का व्रत किया है और उसके समस्त पाप नष्ट हो गए।
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