पापमोचनी एकादशी 2021
तिथि- 07 अप्रैल 2021
सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक माह के पंचाग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी या ग्यारस का व्रत किया जाता है। जो मनुष्य के सभी पापों को नष्ट करने के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। पापमोचनी एकादशी का व्रत अनजाने में किये हुए पापों का प्राश्चित करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते है और उसके पुण्य कर्मो का फल भी उसे सुख के रुप में मिल जाता है।
पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त
तिथि- 07 अप्रैल
समय- 08 अप्रैल को प्रातः 13:39:14 से 16:10:59 तक
समयावधि- 2 घंटे 31 मिनट
पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त
समय- 08 अप्रैल को प्रातः 08:42:30 पर
पापमोचनी एकादशी पूजा विधि
इन उल्लेखित विधियों का पूर्ण रूप से पालन कर पापमोचनी एकादशी का व्रत करना चाहिए-
चरण- 1 एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भक्तजन पूजा पाठ करते है ।
चरण- 2 इसके बाद वे मंदिर जाकर भगवान विष्णु की कथा तथा उनके अवतारों की कथा पढ़ते और सुनते हैं।
चरण- 3 जो लोग इस व्रत को रखते है उन्हें इस दिन ब्राहम्णों को उचित दान दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए।
चरण- 2 मुख से गलती से किसी व्यक्ति के लिए बुरे शब्द निकल जाते है तो इसके लिए सूर्यनारायण भगवान के आगे दीपक जलाकर उनसे माफी मांग लेनी चाहिए। ।
चरण- 4 ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
एकादशी का व्रत करते समय कुछ विशेष कार्य होते है जो इस व्रत में वर्जित होते है। या जिन्हें करने से एकादशी का व्रत भंग हो जाता है। वे कौन-कौन से कार्य है उनका वर्णन निम्नवत तरीके से किया गया है-
दैनिक दिनचर्या में हम प्रात: काल उठकर झाडू और पौछा लगाते है लेकिन इस व्रत में झाडू, पौछा करना वर्जित माना जाता है।
इस व्रत में खान पान का विशेष ध्यान रखना होता है जैसे मांस मछली, शहद, लहसुन, प्याज इत्यादि के सेवन से अपने आपको दूर रखना होता है।
किसी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बुरा क्यों न हो उसकी निंदा करना आपके लिए वर्जित होता है। इस व्रत में किसी की निंदा करने से आपका व्रत निष्फल हो जाता है।
एकादशी के दिन बाल कटवाना इसके नियमों के खिलाफ है। इसलिए इस दिन बाल कटवाने से बचना चाहिए।
व्यसन की चीजों से दूर रहे तथा भोग विलास की चीजों के बारे में न सोचें।
पापमोचनी एकदशी का महत्व
पापमोचनी एकादशी के व्रत की बड़ी महत्ता है। इस व्रत को महिमा का गुणगान करते हुए पद्म पुराण में स्वयं महादेव नारद जी से कहते है कि एकादशी व्रत महान पुण्य देने वाला है। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति इस व्रत को करता है तो उसके पुर्वज तक बुरी योनि से किसी अच्छी योनि में चले जाते है। जो उनके लिए सुखदायी होती है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक शोध के अनुसार इस एकादशी व्रत को करने से कैंसर जैसी बिमारियों से मुक्ति मिल जाती है। क्योंकि यह व्रत निर्जल भी किया जाता है। जिससे आपके शरीर में अन्न, जल न जाने के कारण बिमारियों के सभी किटाणु एक दूसरे को खाने लगते है। जिससे आपको गम्भीर बिमारियों के होने की संभावनाएं अत्यधिक कम हो जाती है।
पौराणिक कथा
एक बार की बात है कुंती पुत्र अर्जुन को श्री कृष्ण ने बताया कि एक बार महर्षि लोमेश ने राजा मानधाता को इंसान से अनजाने में हुई भूल की क्षमा प्रार्थना के लिए पापमोचनी एकादशी व्रत की गरिमा बताते हुए उन्हें एक पौराणिक कथा सुनाई जो इस प्रकार है-
एक समय च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी चैत्ररथ नामक एक सुन्दर वन में तपस्या कर रहे थे। जब उन्हें तपस्या करते हुए बहुत दिन हो गए तो एक दिन स्वर्ग की अत्यंत सुंदर अप्सरा जिसका नाम मंजुघोषा था, वह वहाँ से जा रही थी। तभी उसकी दृष्टि मेधावी पर पड़ी और वह उनपर मोहित हो गई। इसी कारण वस मेधावी को अपनी ओर आकृषित करने का प्रयास करने लगी। लेकिन वह इसमें असफल रही। तभी एक दिन सुन्दरता के देवता कामदेव वहाँ से गुजर रहे थे, उन्होने मंजुघोषा के ह्दय की व्यथा को समझ लिया और मेधावी मंजुघोषा की ओर आकृषित हो जाए इसके लिए उसकी मदद करने लगे। परिणाम स्वरुप महर्षि मेधावी मंजुघोषा की ओर आसक्त हो गए। मंजूघोषा की कामवासना में वे इतने लीन हो गए कि ये तक भूल गए कि वे भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे। मेधावी को कामवासना में आसक्त हुए कई वर्ष कब निकल गए उन्हें पता ही नहीं चला। कई वर्षो बाद जब मेधावी को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उन्होनें मंजुघोषा को श्राप दे डाला कि ‘जा तू इसी वक्त पिशाचिनि बन जा’ ऋषि के श्राप के कारण मंजूघोषा उसी क्षण पिशाचिनी बन गई। इसपर मंजूघोषा को अपनी भूल का पछतावा हुआ और उसने ऋषि से अपने द्वारा किये गए इस कृत्य के लिए क्षमा मांगी। तब ऋषि ने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। और स्वयं भी वह व्रत किया क्योंकि कामवासना में जाने के बाद उनका तपस्या से कमाया हुआ तेज नष्ट हो गया था। पापमोचनी एकादशी का व्रत करने के पश्चात मंजूघोषा को श्राप से मुक्ति मिल गई और वह फिर से स्वर्ग की सुन्दर अप्सरा बन गई तथा मेधावी के द्वारा अनजाने में किये हुए सारे पाप नष्ट हो गए और उनका तेज फिर से उन्हें वापस मिल गया।
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