परिवर्तिनी एकादशी 2021
तिथि- 17 सितम्बर 2021
भादो की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का नाम परिवर्तिनी एकादशी इसलिए पड़ा क्योंकि अपने शयनकाल के समय श्री हरि विष्णु ने करवट बदली थी। इस एकादशी को जयंती एकादशी व पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी में भगवान नारायण के वामन अवतार का पूजन किया जाता है। वामन अवतार भगवान नारायण का पांचवा अवतार माना जाता है। इस व्रत को करने से वाजपेई यग के समान फल प्राप्त होता है और मनुष्य के सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी के दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है।
परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 17 सितम्बर
समय- 18 सितम्बर को प्रातः 06:07:10 से 08:33:22 तक
समयावधि- 2 घंटे 27 मिनट
परिवर्तिनी एकादशी पूजा विधि
परिवर्तिनी एकादशी में नारायण भगवान अराधना करने तथा व्रत रखने के लिए इस विधि को का पालन करना अनिवार्य है-
चरण- 1 जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उनको दसवीं में सूर्य अस्त होने से पहले भोजन कर लेना चाहिए। व्रत से पहले हरि नारायण का नाम स्मरण करना चाहिए।
चरण- 2 एकादशी के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठना चाहिए। अपने सभी कार्यों को खत्म करके स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
चरण- 3 घी का दीप प्रज्वलित करें।
चरण- 4 तुलसी ऋतु फल व तिल से भगवान की पूजा करें।
चरण- 5 इस व्रत में फलाहार ही ले अन्न ग्रहण ना करें।
चरण- 6 व्रत के दौरान किसी अन्य की निंदा, बुराई व झूठ बोलने से बचें।
चरण- 7 किस व्रत में दही व तांबे का दान अवश्य करें।
चरण- 8 अगले दिन सुबह उठकर ब्राह्मण को भोजन कराएं।
परिवर्तिनी एकदशी का महत्व
मोक्ष की प्राप्त के लिए यह परिवर्तिनी एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण है। इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु अधिक प्रशन्न होते हैं और वह अपने भक्त पर कृपा की बारिश करते है। जीवन में धन की प्राप्ती के लिए इस व्रत को भी रखा जाता है। सुखों की कामना के साथ रखने पर जीवन सुखमयी होता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में एक दानव था लेकिन बलि नाम यह दानव ब्राह्मणों की सेवा तो करता ही था, साथ ही वह बहुत ही दानी और सत्यवादी भी था। वह खुद को इतना योग्य सिद्ध किया कि उसे सवर्ग में देवराज इंद्र का स्थान प्राप्त हुआ। इंद्र देव खुद इससे काफी प्रभावित हुए और अपनी सत्ता छिन जाने की बात को सहन नहीं कर पाए। दानव की शक्ति और पराक्रम से स्वर्ग के सभी देवता परेशान थे। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवनाओं ने विष्णु भगवान की सभी में उपस्थित हुए। देवताओं ने विष्णु भगवान के आदेशानुसार नारायण जी की अराधना शुरु कर दी। देवताओं को दानव से मुक्त दिलाने हेतु नारायण भगवान ने वामन का रुप धारण किया। एक ब्राह्मण बालक रुप में नारायण भगवान ने दानव को परास्त कर उसपर विजय प्राप्त किया और देवाताओं को उससे मुक्ति दिलाई।
अपने वामन अवतार में श्री नारायण ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान देने का आग्रह किया और कहा कि अगर वो ऐसा करेंगे तो ब्राह्मण बालक उन्हें 3 लोको के दान का फल प्राप्त होगा। बालक की इस बात को तुरंत ही दानव ने स्वीकार किया और उसे तीन पग भूमि देने को तैयार हो गया। जैसे ही दानव भूमि क लिए तैयार हुआ एक छोटे से बालक रुपी भगवान से अपना विराट रूप धारण किया और पहला और दूसरा पग क्रमशः धरती और स्वर्ग पर रख दिया। अब तीसरे पग को रखने के लिए कुछ भी नहीं बचा तो बलि ने अपने सर को भगवान के आगे रख दिया। नारायण भगवान उसकी इस श्रद्धा और सच्चे भाव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे पाताल लोक भेजकर उसका स्वामी बना दिया।
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