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रक्षाबंधन | कब है रक्षा बंधन और क्या है रक्षा बंधन का मुहूर्त


Friday, 16 July 2021
रक्षाबंधन 2021

Raksha Bandhan | रक्षाबंधन 2021 | Raksha Bandhan 2021

(Raksha bandhan date 2021) साल 2021 में रक्षाबंधन 22 अगस्त को रविवार के दिन है। ये त्योहार हमेशा श्रावण मास की पूर्णिमा पर बनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई-बहन का बड़ा ही पावन त्यौहार है, जो प्यार और स्नेह से भरा हुआ होता है। रक्षाबंधन पर एक बहन अपने भाई की कलाई पर पवित्र धागा बांधती है और भाई बहन की रक्षा का वचन निभाता है। क्या आप जानते हैं कि वह पहली बहन कौन सी थी। जिसने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी। इस लेख के माध्यम से रक्षाबंधन के बारे में विस्तार से बताएंगे कि रक्षाबंधन के पीछे का इतिहास क्या है और रक्षाबंधन की शुरुआत कैसे हुई।

रक्षा बंधन 2021 शुभ मुहूर्त | Kb hai Raksha Bandhan | 2021 raksha bandhan ki date | raksha bandhan 2021 me kab hai

साल 2021 में रक्षा बंधन का त्यौहार 22 अगस्त के दिन आ रहा है. 22 अगस्त को दिन धूमधाम से मनाया जाएगा. करोना के चलते जरूर यह त्यौहार थोड़ा फीका रहने वाला है.  

 

Raksha Bandhan Muhurat | Rakhi ka Muhurat | राखी का मुहूर्त

रक्षा बंधन 2021

22 अगस्त

रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय- 06:15 से 17:31

अपराह्न मुहूर्त- 13:40 से 16:15

पूर्णिमा तिथि आरंभ – 18:59 (21 अगस्त)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 17:31 (22 अगस्त)

भद्रा समाप्त: 06:15

 

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त सुबह 9:28 बजे से रात के 9:14 बजे तक रहेगा। रक्षाबंधन का पावन त्यौहार सतयुग के समय से चलता आ रहा है जिसके बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं. कुछ कथा का जिक्र हम यहाँ नीचे कर रहे हैं.

 

महाभारत में द्रोपदी ने कृष्ण को बांधी राखी

महाभारत के समय में भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन मानते थे। कृष्ण ने उनसे राखी बंधवाई थी। कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर यज्ञ कराया जिसमें श्री कृष्ण के साथ-साथ शिशुपाल भी मौजूद था। उस दौरान शिशुपाल ने भगवान कृष्ण का अपमान किया तो भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। जब भगवान ने वध किया तो भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लग गई।  यह देखते ही द्रोपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। उस समय भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया। जिस दिन द्रोपदी ने भगवान कृष्ण की उंगली पर उल्लू की पट्टी बांधी उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी और तब से ही इसी दिन रक्षाबंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाने लगा।

 

मां लक्ष्मी ने राजा बलि को बांधी राखी

माना जाता है कि सबसे पहले माता लक्ष्मी ने ही इस त्यौहार की शुरुआत राजा बलि को राखी बांधकर की। जिसके संबंध में कथा इस प्रकार है कि राजा बलि बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। एक बार उन्होंने बड़ा यज्ञ कराया। भक्त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने वामनावतार धारण किया। वामनावतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने दो पग भूमि में ही पूरी पृथ्वी और आकाश को नाप लिया तब राजा बलि समझ गए कि यह भगवान विष्णु ही है। राजा ने भगवान का तीसरा पग अपने सर पर रख लिया। राजा बलि से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वरदान मांगने को कहा तो राजा बलि ने कहा कि आप बैकुंठ को छोड़कर मेरे पास पाताल लोक में चलिए। भगवान ने राजा की बात मान ली और बैकुंठ को छोड़कर पाताल लोक चले गए। इस बात को सुनकर माता लक्ष्मी परेशान हो गई और भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ में लाने के लिए उन्होंने उपाय सोचा। माता लक्ष्मी वेश बदलकर पाताल लोक गई और उन्होंने राजा बलि को अपना भाई मानते हुए उसे राखी बांधी।  राजा बलि ने कहा कि मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है तब माता लक्ष्मी बोली कि आपके पास तो साक्षात भगवान है। मुझे वही चाहिए मैं उन्हें लेने आई हूं। इस तरह से राजा बलि ने राखी का वचन निभाते हुए लक्ष्मी जी के साथ विष्णु जी को बैकुंठ धाम जाने दिया।

जिस तरह से माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी और राजा बलि ने लक्ष्मी जी की इच्छा की पूर्ति की। उसी तरह से ही रक्षाबंधन के दिन भाई भी अपनी बहन को प्यार भरे तोहफे देकर उनकी रक्षा का वचन निभाते हैं।

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