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रमा एकादशी


Saturday, 20 March 2021
रमा एकादशी

रमा एकादशी

 

हिंदू मान्यता के अनुसार, माना जाता है कि एकादशी का व्रत बड़े-बड़े पापों का नाश कर देता है। जो भी मनुष्य इस व्रत को करते हैं। वह भगवान विष्णु के बिल्कुल निकट होते हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु की आराधना करने और उन्हें पाने के लिए सबसे अच्छा मार्ग है कि एकादशी का व्रत किया जाए। एकादशी का व्रत सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। आज हम आपको कार्तिक मास की रमा एकादशी के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं कि 2021 में यह क्या एकादशी कब है और इस एकादशी को किस प्रकार से व्रत किया जाता है।

 

रमा एकादशी 2021: 1 नवंबर, सोमवार

इस बार रमा एकादशी का व्रत सोमवार के दिन पड़ रहा है जो बहुत शुभ है और रमा एकादशी दीपावली के 4 दिन पहले आती है। इस बार महीने की शुरुआत से ही त्यौहार आने शुरू हो रहे हैं और यदि महीने का पहला दिन ही एकादशी का हो तो समझिए कि सभी काम अच्छी प्रकार से पूरे होंगे। रमा एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ-साथ माता महालक्ष्मी जी की पूजा करने से हर एक मनोकामना पूर्ण होती है।

 

रमा एकादशी पूजा विधि

रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के लिए सवेरे जल्दी उठे और स्नान आदि करके पीले वस्त्र धारण करें।

 

भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए रोली, चंदन, तुलसी, गंगाजल, फूल और फल रखें।

 

भगवान विष्णु जी और महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करके गंगाजल छिड़के और चंदन का तिलक करें।

 

जिसके बाद भगवान को तुलसी, फल, फूल अर्पित कर उनकी आराधना करें।

 

इस दिन तुलसी की माला से 108 बार ओम नमो नारायण भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें।

 

पूजन करने के बाद विष्णु जी की आरती करके उन्हें भोग लगाएं।

 

रमा एकादशी के दिन फलाहार लें और नमक का सेवन ना करें।

 

इस दिन रात्रि को जागरण करने का भी विशेष महत्व है। रात्रि में जागरण कीर्तन करके व्रत के अगले यानि द्वादशी के दिन गरीबों को दान दक्षिणआ दें।

 

एकादशी व्रत की कथा

 

प्राचीन काल में मुचुकुंडा नाम का एक राजा था। जो बड़ा ही धर्मात्मा और विष्णु भक्त था। उस राजा के नगर में हर नगरवासी रमा एकादशी का व्रत पूरी सख्ती के साथ रखता था। राजा मुचुकुंडा की एक पुत्री थी। जिसका नाम चंद्रभागा था। मुचुकुंडा ने चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से कर दिया। एक बार रमा एकादशी पर चंद्रभागा अपने पिता के घर आई और उस वक्त उसका पति शोभन बहुत ज्यादा बीमार था। उसने अपने पति से कहा कि आज रमा एकादशी पर आपको भी व्रत रखना पड़ेगा इसलिए कहीं ओर चले जाइए। इस बात पर शोभन कहने लगा कि मैं रमा एकादशी व्रत जरूर रहूंगा। शोभन अत्यधिक बीमार था जिससे भूख प्यास के कारण आधी रात को ही उसकी मृत्यु हो गई। अपने अच्छे कर्मों के कारण शोभन को स्वर्ग में जगह मिली और उसे वहां पर अद्वितीय महान साम्राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंडा साम्राज्य के एक ब्राह्मण ने शोभन और उसके साम्राज्य को देखा। तब शोभन ने ब्राह्मण को सारा वृतांत सुनाया और चंद्रभागा से बताने को कहा। तब उस ब्राह्मण ने वापस लौटकर चंद्रभागा से सारी बात कही। चूंकि चंद्रभागा ने बहुत बार रमा एकादशी का व्रत किया था तो उसने अपने पुण्य से शोभन के साम्राज्य को वास्तविकता में बदल दिया। इस प्रकार रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन और चंद्रभागा सुखपूर्वक रहने लगे।

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