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ऋषि पंचमी


Saturday, 20 March 2021
ऋषि पंचमी

ऋषि पंचमी

 

पौराणिक समय में ऋषि मुनियों ने बड़े-बड़े यज्ञ तप करके भगवान को प्रसन्न किया और मनुष्य के कल्याण के लिए अनेक नेक कार्य किए इसलिए ऋषि-मुनियों को विशेष रूप से सम्मान दिया जाता है। लोग इन्हें भगवान की तरह मानते हैं। इनके सम्मान में व्रत भी रखा जाता है।  बता दें कि हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। जिसमें भारत के महान ऋषियों के सम्मान में व्रत रखा जाता है।

 

यह व्रत 2021 में भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन यानी पंचमी को 11 सितंबर को शनिवार के दिन है।

 

ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त -  सुबह 11:04 बजे से दोपहर 1.32 तक

 

क्यों मनाते हैं ऋषि पंचमी

महान सप्त ऋषि वशिष्ठ, कश्यप, जमदग्नि, गौतम, भारद्वाज, अट्री और गौतम के लिए यह श्री पंचमी का व्रत रखा जाता है। दरअसल,ऋषि पंचमी का त्यौहार सप्त ऋषियों से जुड़ा हुआ है। सप्त ऋषियों ने पृथ्वी की भलाई के लिए काम किया। उन्होंने अपने जीवन का त्याग करके मानव जाति का कल्याण करने का पुण्य काम किया।यहीं कारण है कि सप्तर्षियों को सम्मान और उनको आदर देने के लिए उनके लिए लोग श्रद्धा के साथ और भक्ति पूर्वक व्रत रखते हैं।

 

ऋषि पंचमी पर व्रत रखने की विधि

यह व्रत बाकि व्रतों से थोड़ा-सा अलग और कठिन है।

 

इस व्रत में सबसे पहले उपमर्गा जड़ी बूटी के साथ दांतो की सफाई की जाती है। उसके बाद में डाटावार्न जड़ी-बूटी के साथ स्नान करते हैं ताकि शरीर पवित्र और शुद्ध हो जाएं।

 

आंतरिक शुद्धि के लिए मक्खन, तुलसी, दूध और दही का मिश्रण पिया जाता है।

 

इस दिन सप्त ऋषियों की पंडितों द्वारा बड़े अनुष्ठानों के साथ पूजा करें और पूरे विधि विधान से पूजन करने के बाद ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनाएं।

 

 

सप्त ऋषि के पूजन में शुद्ध फूल, खाद्य पदार्थ, धूप, दीप, कपूर आदि का इस्तेमाल करें।

 

 

पूजन के बाद सप्तऋषियों की आरती उतारें और बाद में उन्हें दही और दूध आदि देसी व शुद्ध चीजों का भोग लगाएँ।

 

 

इस व्रत में केवल एक समय ही भोजन करते हैं और नमक का इस्तेमाल नहीं करते। इस दिन दही और साठी का चावल खाया जाता है।

 

यह व्रत ज्यादातर महिलाओं द्वारा किया जाता है।

 

ऋषि पंचमी व्रत कथा

कहा जाता है कि उत्तरा नाम का एक ब्राह्मण था जिसकी पत्नी का नाम सुशीला था। उन्होंने अपनी बेटी के बड़े चाव से शादी की लेकिन उनकी बेटी विधवा हो गई। जिसके कारण वो उनके साथ ही रहती थी। एक बार उनकी बेटी के संपूर्ण शरीर को चीटियां लग गई। माता-पिता चिंता में डूब गए। उन्होंने उसका उपाय सोचा और एक ऋषि से बात की। ऋषि ने कहा कि तुम्हारी बेटी के साथ जो भी कुछ हो रहा है। वो उसके पूर्व जन्म के कर्मों का भोग है। ऋषि ने कहा कि आपकी बेटी ने पूर्व जन्म में राजस्वला काल में पाप किया था। जिसका दंड उसे मिल रहा है तब उत्तरा ब्राह्मण ने ऋषि से इसका उपाय पूछा तो ऋषि ने कहा की भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। यदि आपकी बेटी भी इस व्रत को करें तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। इस प्रकार ब्राह्मण ने अपनी बेटी से उसे व्रत को करने को कहा तब उसकी बेटी ने पूरी लगन और निष्ठा के साथ सप्त ऋषि का पूजन किया और व्रत रखा। जिससे उसको पूर्व जन्म के सभी पापों से मुक्ति मिल गई।

 

 

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व

ऋषि पंचमी का विशेष महत्व माना जाता है कि दोषों से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत सबसे उत्तम है। यदि किसी से बड़ी भूल हो जाए तो उसे ऋषि पंचमी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत के करने से मनुष्य पापों का प्रायश्चित कर सकता है।

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