शुभ मुहूर्त
तिथि : 19 दिसंबर, सोमवार
एकादशी आरंभ : 19 दिसंबर, सुबह 3 बजकर 15 मिनट से
एकादशी समाप्ति : 20 दिसंबर, सुबह 2 बजकर 40 मिनट तक
परायन समय : 20 दिसंबर, सुबह 8 बजकर 10 मिनट से 9 बजे तक
Saphala Ekadashi 2022 : सफला अर्थात सफलता। सफलता की चाह रखने वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सफला एकादशी पौष माह के कृष्ण पक्षकी एकादशी को ही कहा जाता है। सफला एकादशी को लेकर मान्यता है कि अपनी सफलता की कामना के साथ जो भी इस एकादशी का व्रत रखता है उसके सभी काम सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाते है। इस दिन भगवान अच्युत की अराधना का विशेष महत्व है।
तिथि : 19 दिसंबर, सोमवार
एकादशी आरंभ : 19 दिसंबर, सुबह 3 बजकर 15 मिनट से
एकादशी समाप्ति : 20 दिसंबर, सुबह 2 बजकर 40 मिनट तक
परायन समय : 20 दिसंबर, सुबह 8 बजकर 10 मिनट से 9 बजे तक
सफला एकादशी में भगवान अच्युत की अराधना के साथ-साथ सफला एकादशी के वर्त की विधियों का सही तरकी से पालन करना चाहिए। इसकी विधि को क्रमानुसार दिया गया है जिसे इसी के अनुसार पालन करें-
चरण- 1 सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लेना।
चरण- 2 भगवान को तथा मंदिर में धूप, दीप, फल और पंचामृत अर्पित करना।
चरण- 3 भगवान अच्युत की नारियल, लौंग, आंवला, सुपारी और अनार सहित पूजा सामग्री से पूजन करना।
चरण- 4 ‘श्री हरि’ का भजन रात्रि में करना महत्वपूर्ण है लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
चरण- 5 अगले दिन व्रत का पारण करना महत्वपूर्ण है। व्रत के पारण में किसी ब्राह्मण या जरुरतमंद को भोजन कराया या दान दिया जा सकता है।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
बिस्तर पर सोने से बचना चाहिए। जमीन पर सोना उचित होगा।
किसी ऐसे भोजन से दूर रहें जिसकी व्रत में सेवन से मनाही होती है। जैसे मांस-मदिरा, प्याज, लहसुन इत्यादि।
एकादशी के व्रत के बाद दांतों की सफाई के लिए किसी भी प्रकार का दातुन का उपयोग वर्जित है।
व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के फूल-पत्ती को तोड़ने से बचना चाहिए। यह व्रत के अशुभ कार्यों की सूची में शामिल है।
वर्ष 2022 के अंत में सफला एकादशी के साथ हो रही है। यह एकादशी इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसका उल्लेख भगवना श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था। भगवान कृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर के संवाद के रुप में धार्मिक ग्रंथों में यह एकादशी उल्लेखित है। इस दिन व्रत रखने वालों के सभी दुखों को भगवान समाप्त कर उनके भाग्य को खोल देता है। मान्यताओं के अनुसार अपनी इच्छाओं और सपनों को पूर्ण करने के लिए सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। किसी तप्सयवी को जिस फल की प्राप्ति के लिए 5 हजार वर्षों तक तपस्या करना पड़ती है उस फल को आप इस व्रत को रखकर कर प्राप्त कर सकते है।
सफला एकादशी को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। यह सभी कथाएं प्राचीन काल के चंपावती नगर से जुड़ी है जहां के राजा का नाम महिष्मत था जिसके चार पुत्र थे। राजा का सबसे बड़ा पुत्र ल्युक कुकर्म और पाप करने में डूबा हुआ था। जब उसके पाप की अति हो गई तो उसे देश निकाला दे दिया गया जिसके बाद उसे जंगल में जाकर रहना पड़ा और फलों-पत्तियों का सेवन कर संतुष्टी करनी पड़ी। इसके बाद दो तरह धारणा है।
पहली धारणा के अनुसार जंगल में वह कई दिनों से भूखा था तथा अन्न की तलाश में वह एक साधू के पास जा पहुंचा जहां साधु ने उसे भोजन कराया। इस बात के प्रभावित होकर उसने अपने पापों का प्रश्चाताप किया और साधु का शिष्य बन गया। जिसके बाद उसके चरित्र में बदलाव आ गया।
दूसरी धारणा के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष पर ल्युक काफी ज्यादा ठंड होने की वजह से सो रही पाया और वह काफी समय से भूखा भी था। इतने कष्टों को देखकर वह भगवान के अपने पापों पर क्षमा मांगने लगा। भूखे होने तथा रात भर बिना किसी मन में छल या लाभ की कामने के उसने अनजाने में ही सफला का व्रत रख लिया। भगवान उससे प्रभावित हुए और उनकी कृपा से ल्यूक के पिता ने उसे अपने महल में वापस बुला लिया और सारा कार्यभार सौप कर पिता महिष्मत खुद तपस्या के लिए जंगल में चले गए।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि Astroonly. com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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