शनिवार के व्रत विधि, महत्व और कथा
शनिदेव यानी शनिवार के अधिपति। शनिवार का दिन शनिदेव का माना जाता है और शनि देव को काली चीजों से तेल से काफी ज्यादा लगाव था अर्थात माना जाता है कि काली चीजों में तिल और तेल में शनिदेव का वास है। इसलिए इस दिन शनि देव की पूजा करने से शनि की महादशा उत्तम स्थान पर होती है। शनिवार के दिन शनिदेव का व्रत रखते हैं जिससे उनकी जीवन में शनि सही ग्रह में स्थापित रहता है।
शनिवार के व्रत की विधि
पूजा में उपयोग होने वाली चीजों को एक दिन पहले ही खरीदना चाहिए। लोहा, तेल, और तिल में शनि देव का वास माना जाता है। ऐसी स्थिति में इस दिन इन चीजों को खरीदने से बचना ही उचित होगा। इस दिन व्रत की सही विधि का पालन कर अच्छे फलों की प्राप्ति की जा सकती है। यह विधि है-
चरण- 1 प्रातः सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए।
चरण- 2 स्नान के पश्चात शनि देव को स्मरण कर पर का संकल्प लेना चाहिए।
चरण- 3 नए वस्त्र और आभूषण आराध्य देवता को धारण कराना चाहिए।
चरण- 4 सनी देव की कथा सुनने और सुनाने चाहिए।
चरण- 5 शनि देव का जाप दिन में लगातार करते रहना चाहिए।
चरण- 6 इस दिन चीटियों को आटा डालना भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
शनिवार के व्रत का महत्व
शनिदेव के व्रत का अपना विशेष महत्व है। भूल में किए गए अपने पापों का प्राश्चित करने के लिए इस दिन का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए भी या व्रत रखना चाहिए। बहुत सारे लोगों में शनि ग्रह की स्थिति सही नहीं मानी जाती। ऐसी स्थिति में इस दिन का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन के व्रत रखने से शनि की स्थिति अपने सबसे बेहतर स्थान पर होती है। मनुष्य के कष्ट स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।
शनिवार के व्रत की कथा
प्राचीन समय में एक समय ऐसा आया जब सभी ग्रह आपस में लड़ने लगे कि उनमें सबसे शक्तिशाली कौन है। इस लड़ाई को लेकर जब सभी ग्रह जब इंद्र देव के पास पहुंचे तो उन्होंने इसका समाधान करने के लिए उन्हें धरती पर राजा विक्रमादित्य के पास जाने की सलाह दी। राजा विक्रमादित्य बहुत ही न्याय मिले राजा थे। उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए सोने, चांदी, तांबे, पीतल, सहित लोहे के सिंहासन का निर्माण करवाया और सभी ग्रहों से उस पर एक-एक करके स्थान प्राप्त करने को कहा। साथ में यह भी कहा कि जिनके हिस्से में जैसा सिंहासन होगा वह उसी अनुसार शक्तिशाली कहलाएगा। चुकी शनिवार आखरी में आता है इसलिए शनिदेव के हिस्से में लोहे का सिंहासन आया।
शनिदेव लोहे का सिंहासन पाने के बाद क्रोधित हो उठे। उन्होंने राजा से कहा कि तुमने यह जानबूझकर किया है इसलिए तुम्हें मेरे महत्व का एहसास जल्दी ही होगा। राजा का साढ़ेसाती आया तब शनि देव घोड़े के व्यापारी के रूप में राज्य में आते हैं और व्यापार करते है। बहुत ही बेहतर सुंदर घोड़ा राजा अपने लिए चुन लेता है। जैसे ही राजा उस घोड़े पर सवार होता है, वह घोड़ा उसे जंगल की ओर ले कर भाग जाता है और घने जंगल में उसे फेंक देता है। राजा काफी ज्यादा परेशान रहता है। उसे कई सारी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। एक बार तो उसे अपने साढ़ेसाती के दौरान ही अपने हाथ पैर भी चोरी के इल्जाम में कटवाने पड़ते हैं। जब राजा का साढ़ेसाती समाप्त होता है, तब एक तेली को उसपर दया आ जाती है और वह उसे अपने साथ बैठा लेता है लेकिन राजा अपने पुराने दिनों को याद कर गीत गुनगुनाने लगता है जिसकी आवाज से प्रभावित होकर उस राज्य की राजकुमारी उससे प्रभावित हो जाता है और हाथ पैर कटे होने के बावजदू उससे जबरदस्ती शादी करती है। विवाह के पश्चात राजा को स्वप्न में इंद्रदेव दिखाई देते हैं जो उसे अपने महत्व का एहसास कराते हैं। राजा उनसे माफी मांगता है प्रर्थना करता है कि किसी पर भी ऐसी मुसिबत न दें। तब इंद्र देव कहते हैं कि जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन व्रत रखेगा और तेल चलाएगा उसे शनि के प्रकोप नहीं भोगना पड़ेगा।
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