अश्विन पूर्णिमा 2021
बुधवार, 20 अक्टूबर 2021
अश्विन पूर्णिमा का अपना ही महत्व है। वर्ष भर में सिर्फ अश्विन पूर्णिमा की ही रात्रि को चंद्रमा सोलह ककलाओं का होता है। यही कारण है कि इस रात्रि के चंद्रमा को सबसे ज्यादा शुद्ध माना जाता है तथा इसकी किरणों को अमृत माना जाता है। शुक्ल पक्ष की इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है। यह पूर्णमा अश्विन माह में आता है। कुछ स्थानों पर इसे कौमुदी व्रत तो कुछ स्थानों पर कोजागर व्रत भी माना जाता है। इस दिन दूध से बनी हुई खीर को चंद्रमा के रौशनी के सामने रखा जाता है ताकि चंद्रमा की किरणें सीध खीर पर पड़ सके तथा खीर को अमृत बना सकें। इस अमृत समान खीर को बहुत ही गुणकारी और लाभकारी माना जाता है।
अश्विन पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा आरम्भ - 19 अक्टूबर को 19:05:43 से
पूर्णिमा समाप्त- 20 अक्टूबर को 20:28:57 तक
अश्विन पूर्णिमा विधि
अश्विन पूर्णिमा पर जगह जगह विशेष तौर पर मंदिर में बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रत की सही विधि का पालन कर अच्छे फलों की प्राप्ति की जा सकती है। यह विधि है-
चरण- 1 सूर्योदय से पूर्व उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
चरण- 2 जलाश्य, कुंड या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।
चरण- 3 नए वस्त्र और आभूषण आराध्य देवता को धारण कराना चाहिए।
चरण- 4 अराध्य देवता को धूप, दीप जलाकर पूजा करनी चाहिए। पूजा में नैवेद्य, लांबूल, सुपारी और दक्षिणा अर्पित करनी चाहिए।
चरण- 5 गाय का दूध, चीनी और गाय के घी से बनी खीर का भोग भगवान को मध्यरात्रि में लगाना चाहिए।
चरण- 6 चंद्र उदय के पश्चात चंद्रमा की अराधना करनी चाहिए तथा खीर का नेवैद्य अर्पण करना चाहिए।
चरण- 7 रात्रि में खीर इस तरह रखे कि पूरी रात उसपर चंद्रमा की किरणें पड़े।
चरण- 8 सुबह खीर को प्रसाद के रुप में वितरित करें तथा परिवार में सभी उसे प्रसाद के रुप में ग्रहण करें।
चरण- 9 एक लोटे में जल और ग्लास में गेहूं, दोने में रोली और चावल रखकर अश्विन के दिन अश्विन पूर्णिमा की कथा सुननी और सुनानी चाहिए।
चरण- 10 इस दिन शिव-पार्वती के साथ साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा करनी चाहिए।
अश्विन पूर्णिमा का महत्व
इस दिन पृथ्वी के समीप चंद्रमा का आगमन होता है। अश्विन पूर्णिमा पर मौसम में बहुत अच्छा और स्वच्छ होता है। इसलिए इस दिन इतने नजदीक से चंद्रमा की रौशनी शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभकारी होता है। स्नान शरद पूर्णिमा से ही शुरु हो जाता है और इसी समय से व्रत भी रखना चाहिए। महिलाएं अपनी संतान के लिए विशेष तौर पर इस व्रत को रखती है और उनकी मंगल कामना के लिए पूजा करती है। लक्ष्मी माता का अवतरण अश्विन पूर्णिमा के दिन ही हुआ था इसलिए धन और वैभव प्राप्त करने के लिए लक्ष्मी माता की पूजा महत्वपूर्ण है। कुंडली में अगर चंद्र दोष है तो उसे दूर करने के लिए इस दिन के खी का ग्रहण करना बहुत ही महत्वूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके ग्रहण से चंद्र दोष समाप्त हो जाते है।
अश्विन पूर्णिमा की कथा
अश्विन पूर्णिमा पर दो बहनों की कथा प्रचलित है। प्राचीन समय में दो बहने थी जिसमें से एक अश्विन पूर्णिमा का व्रत पूर्ण विधि विधान के साथ करती थी तो दूसरी अधूरे में ही इस व्रत को तोड़ देती थी। समय बीतता गया। दोनों की शादी हो गई। दोनों बच्चों को जब भी जन्म देती तो बड़ी का बच्चा स्वस्थ जन्म लेता और छोटी का जन्म लेने के बाद मर जाता। कई बार ऐसा होने पर एक महर्षि ने उन्हें अश्विन ने का व्रत रखने को कहा। व्रत बाद भी जिस बच्चे ने जन्म लिया वह भी मर गया। तब उसने उसे एक कपड़े में गठरी की तरह बांध दिया और उसे एक कोने में रख दिया। जब उसकी बड़ी बहन उससे मिलने आयी तो उसने उसी गठरी पर बैठने को बोला। बड़ी बहन का स्पर्श होते ही वह बच्चा जीवित हो उठा और रोने लगा। यह उसके अश्विन पूर्णिमा के निरंतर विधि पूर्वक व्रत रखने के कारण ही हुआ।
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