शरद नवरात्रि
मां जगदम्बा के लिए लोग नवरात्रि के पावन दिनों पर व्रत रखते हैं। नौ दिन तक भक्ति भाव से मां दुर्गे को पूजा जाता है। बता दें कि साल में 4 बार नवरात्र आते हैं। जिसमें दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं। जिनका कम लोग ही व्रत रखते हैं यानि कि इन नवरात्र को सार्वजनिक तौर पर नहीं मनाया जाता है। गुप्त नवरात्र माघ और आषाढ़ के माह में मनाए जाते है जबकि चैत्र और अश्र्विन मास के नवरात्र का ज्यादातर लोग व्रत रखते हैं। अश्र्विन मास के नवरात्र सबसे महत्वपूर्ण और सबसे लोकप्रिय माने जाते हैं, जिन्हें शरद नवरात्रि कहा जाता है। इन नवरात्रों में बंगाल में सबसे ज्यादा पूजा की जाती है। यहां पर दुर्गा पूजा के रूप में नौ दिन तक बड़े-बड़े पंडाल लगाकर मां दुर्गा को मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि नवरात्रि कब हैं और इन्हें किस प्रकार से मनाया जाता है।
शरद नवरात्र, 7 अक्टूबर 2021
सभी नवरात्रों में शरद नवरात्रि सबसे ज्यादा खास होते हैं क्योंकि इन नवरात्र पर मां दुर्गा को अपने घर पर लाया जाता है। 9 दिन तक उनकी पूजा करके दसवें दिन विसर्जन किया जाता है। जिसके बाद दशहरा और दीपावली का त्यौहार आता है। इन नवरात्रों पर लोग बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां दुर्गा का पंडाल लगाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। बंगाल में इसे दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है।
नवरात्र पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
पहले दिन मां शैलपुत्री
दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी
तीसरे दिन मां चंद्रघंटा
चौथे दिन मां कुष्मांडा
पांचवे दिन मा स्कंदमाता
छठे दिन मां कात्यायनी
सातवें दिन मां कालरात्रि
आठवें दिन मां महागौरी
नौवे दिन मां सिद्धिदात्री
कैसे करते हैं शरद नवरात्र पर मां दुर्गा की पूजा
सबसे पहले अमावस्या के दिन घर की साफ सफाई की जाती है और मां दुर्गा की माटी की प्रतिमा बनाकर या फिर बाजार से खरीद कर उसे गाय के गोबर से दीवार पर चिपकाया जाता है। कई जगह बड़े-बड़े पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है।
नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को नए वस्त्र पहनाकर उन्हें आभूषणों से सजाया जाता है।
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
पूजा के स्थान पर एक कलश भर कर रखा जाता है। जिसमें आम के पत्ते और एक नारियल रखते हैं। कलश में ₹1 का सिक्का डालते हैं और कलश को रेत की छोटी सी डेरी के ऊपर रखते हैं। बाद में रेत में जो बोए जाते हैं।
उसके बाद माता की अखंड ज्योत जलाई जाती है। जो पूरे 9 दिन तक जलती है और इस ज्योत को देसी घी से जलाना चाहिए।
पूजन के लिए रोली, चंदन, लौंग, सुपारी, पान, बतासे,देसी घी और पंचमेवा रखते हैं।
पहले माता का तिलक करके उसके बाद थाली में कपूर को जलाया और कपूर में पान के ऊपर 2 लोगों के जोड़े एक सुपारी रखकर माता को अर्पित करते हैं और व्रत की शुरुआत की जाती है।
उसके बाद माता की आरती उतारी जाती है और बाद में पंचमेवा का भोग लगाया जाता है। माता को पांच फलों का भी भोग लगाया जाता है।
लोग नौ दिन तक फलाहार खाकर व्रत रखते हैं और 9 दिन तक मां के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं। सुबह और शाम पूरे विधि विधान से माता का पूजन और कीर्तन किया जाता है।
अष्टमी या नवमी के दिन माता के व्रत को पूरा कर कन्या पूजन किया जाता है। कन्याओं को गिफ्ट आदि देकर उन्हें माता की चुन्नरी पहनकर हलवा पूरी का भोग खिलाते हैं और खुद भी खाना खा लेते हैं।
शरद नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का व्रत रखने से मां दुर्गा को प्रसन्न किया जाता है। जिससे मां दुर्गा प्रसन्न होकर हर एक मनोकामना की पूर्ति करती हैं। यदि माता का जागरण भी कराया जाए तो जल्द ही माता प्रसन्न होकर मनवांछित वर देती हैं। नवरात्र का व्रत रखने से घर में सुख शांति बनी रहती है और माता की कृपा से व्यवसाय में तरक्की मिलती है।
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