षटतिला एकादशी 2021
तिथि- 07 फरवरी 2021
षटतिला एकादशी मास माह के कृष्ण पक्ष को कहते है। संसार की सास्वत सच्चाई यही हैं कि यहां जो आया है वह समय सीमित है। मनुष्य का जीवन सफल तभी है जब वह मोक्ष की प्राप्ति कर लें और इस मोक्ष की प्राप्ति इतना आसान नहीं है। ऋषि मुनियों को मोक्ष की प्राप्ति के सभी संसारिक सुखो को त्याग कर एकांत में तपस्या करना पड़ता था। लेकिन अगर मनुष्य सच्ची श्रद्धा से षटतिला एकादशी का व्रत रखता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होगी और उसके सभी पाप भी धुल जाएंगे। षटतिला एकादशी के दिन विधि विधान से उपवास रखने, तपस्या करने तथा दान देने से मनुष्य के सभी पापों का अंत हो जाता है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है। इस दिन तिल का उपयोग छः प्रकार से किया जाता है इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है।
षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 07 फरवरी
समय- 08 जनवरी को प्रातः 07:05:20 से 09:17:25 तक
समयावधि- 2 घंटे 12 मिनट
षटतिला एकादशी पूजा विधि
षटतिला एकादशी के दिन तिल का छः प्रकार से उपयोग किया जाता है। सबसे पहले तिल से स्नान किया जाता है। इसके साथ ही तिल का उबटन लगाने, हवन करने, तिल से तर्पण करने के साथ-साथ तिल का भोजन किया जाता है। इसकी विधि को इसी क्रमानुसार पालन करें-
चरण- 1 प्रातः जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
चरण- 2 विष्णु भगवान की पूजा करना तथा पूजा के पश्चात धूप और पुष्प अर्पित करना चाहिए।
चरण- 3 रात्रि जागरण और हवन करना चाहिए।
चरण- 4 द्वादशी पर प्रातः स्नान के पश्चात भगवान विष्णु को भोग लगाना।
चरण- 5 भोग के बाद सर्वप्रथम ब्रह्मणों को भोजन कराने के पश्चात ही खुद भोजन ग्रहण करें।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
भोजन न करें। निराहार रहना सर्वश्रेष्ठ है। अगर जरूरत हो तो फलाहार का सेवन कर सकते है।
कांसे के बर्तन का उपयोग भोजन के लिए न करें।
मांस, मसूर की दाल तथा शहद का सेवन न करें।
नमक और तेल का उपयोग वर्जित होता है।
षटतिला एकदशी का महत्व
कुल 24 एकादशी है जिसमें से षटतिला एकादशी भी एक है। षटतिला एकादशी का विशेष महत्व है। इस महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस एकादशी का एक व्रत रखने पर मनुष्य को उतना ही लाभ मिलेगा जितना कन्यादान करने, हजारों साल तपस्या करने तथा स्वर्ण दान देने से मिलता है। यह व्रत घर में सुख-शांति के लिए भी रखा जाता है।
पौराणिक कथा
षटतिला एकादशी का व्रत रखना कितना जरुरी है इसका पौराणिक कथाओं में जिक्र है। पौराणिक मान्यताएं इसके महत्व को और बढ़ा देती है। षटतिला एकादशी के बारे में भगवान विष्णु ने नारद मुनि के आग्रह पर उन्हें एक पौराणिक कथा सुनाई। भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि पृथ्वी पर एक ब्राह्मण महिला रहती थी जो बहुत ज्यादा तपस्वी थी। पति के देह त्याग देने के पश्चात भी उसकी तपस्या कम नहीं हुई तथा उसने एक बार तो एक माह के लिए व्रत रखा। भगवान विष्णु उसकी तपस्या के प्रभावित थे लेकिन वह महिला ब्राह्मणों तथा भगवान को अन्न दान नहीं करती थी। एक बार तो विष्णु भगवान खुद साधु का रुप धारण कर उसके पास अन्न के लिए गए लेकिन उन्हें महिला ने सिर्फ मिट्टी का पिंड दिया। महिला के देह त्यागने के पश्चात जब वह स्वर्ग लोक में पहुंची तो उसे वहां सिर्फ एक खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला जिसके बाद उसने विष्णु भगवान के कहा कि मैं तो आपकी इतनी श्रद्धाभाव से सेवा की और मुझे खाली कुटिया क्यों... तब विष्णु जी ने उन्हें सारी बात बताई और कहा कि इस बार षटतिला एकादशी पर तुम देव कन्याओं से व्रत का तरीका सिखना फिर व्रत रखना। महिला ने ऐसा ही किया और उसे इस व्रत के रखने से सभी सुखों की प्राप्ति हो गई।
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