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Thursday, 18 March 2021
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श्रावण पूर्णिमा 2021

रविवार, 22 अगस्त 2021

 

श्रावण माह में आने वाले पूर्णिमा को ही श्रावण पूर्णिमा कहते है। हिंदू पंचांग में पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। ज्यादतर त्योहार पूर्णिमा पर ही आधारित होते है। श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। कजरी पूर्णिमा के रुप में इसी दिन को मध्य और उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन स्नान, तप और दान करने से चंद्रदोष से मुक्ति प्राप्त होती है। यज्ञोपवीत पूजन और उपनयन संस्कार भी इसी दिन किया जाता है।

 

श्रावण पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा आरम्भ - 21 अगस्त को 19:02:22 से

पूर्णिमा समाप्त- 22 अगस्त को 17:33:39 तक

 

श्रावण  पूर्णिमा विधि

श्रावण  पूर्णिमा में स्नान, दान और व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसे में सही विधि का उपयोग कर अपने सभी धार्मिक कार्यों को सार्थक बनाया जा सकता है। यह विधि है-

चरण- 1  सुबह जल्दी उठकर पहले स्नान करें तथा उसके पश्चात ईश्वर की अराधना करना चाहिए।

चरण- 2  भाई को रखा सूत्र बांधना चाहिए।

चरण- 3  रक्षा सूत्र बांधने से पहले कुछ भी भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।

चरण- 4  पितरों का तर्पण करें।

चरण- 5  गाय, चीटी तथा मछलियों को भोजन करना चाहिए।

चरण- 6  भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की अराधना करना चाहिए।

 

श्रावण  पूर्णिमा का महत्व

श्रावण पूर्णिमा का महत्व अलग अलग स्थानों पर भिन्न भिन्न है। कहीं पर इसे रक्षाबंधन के तौर पर मनाया जाता है तो कहीं पर अवनी अवित्तम के रुप में। कुछ स्थानों पर इसे कजरी पूनम तो कुछ स्थानों पर पवित्रोपना के के रुप में माना जाता है। इसका महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों रुपों में है। इस दिन व्रत भी रखा जाता है।

 

श्रावण  पूर्णिमा पर आयोजन

आषाढ़ में शुरु होने वाले अमरनाथ यात्रा का अंत इसी दिन होता है। इतना ही नहीं कांवड़ यात्रा श्रावण पूर्णिमा के दिन शिवलिंग पर जल अर्पित कर समाप्त हो जाता है। रक्षाबंधन के तौर पर इस दिन देशभर में बड़ा आयोजन होता है। इस दिन बहनें अपनी रक्षा के लिए भाई के कलाई पर राखी बंधती है और आशीर्वाद प्राप्त करती है। भाई बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है। 

 

कजरी  पूर्णिमा

मध्य भारत और उत्तर भारत में श्रावण पूर्णिमा को कजरी पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है। यह वर्ष विशेष तौर पर पुत्र के लिए रखा जाता है। इस दिन व्रत रखकर पुत्र के लिए की गई कामना जल्दी स्वीकार होती है। माएं अपने पुत्र की लम्बी आयु तथा सुखों के लिए इस व्रत को करती है। नवमी के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन पेड़ के पत्तों से बने पात्र में पहले मिट्टी डाला जाता है फिर उसमें जौ को बोया जाता है। पूर्णिमा पर पात्रों को जिनमें जौ बोया गया था, को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

 

श्रावण  पूर्णिमा की कथा

 श्रावण पूर्णिमा पर कई कथाएं प्रचलित है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कथा एक राजा तुंगध्वज की है जो प्राचीन समय में एक राज्य पर राज करता था। लम्बे समय से कुशल राज करने के कारण राजा को खुद पर अभिमान हो गया। वह पूजा पाठ को ज्यादा महत्व नहीं देता था। इस दिन तो उसने भागवान की अराधना का अपमान कर दिया। अन्य राजाओं की तरह तुंगध्वज को भी शिकार का बहुत शौक था। एक दिन वह शिकर पर गया। ज्यादा समय तक जंगल में शिकार करने के कारण वह काफी थक गया था। थककर राजा वहीं जगल के समीप बरगद के वृक्ष के नीचे आराम करने लगे। जब उनकी आंख खुली तो देखा कुछ लोग भगवान सत्यनारायण की अराधना में लीन है। राजा ने इसके बावजूद भी सत्यनारायण को प्रणाम नहीं किया और प्रसाद भी ग्रहण करने से मना कर दिया। जब राजा वापस अपने राज्य पहुंचा तो उसने देखा कि पड़ोसी राजाओं ने उनपर हमला कर दिया है। राजा को तुरंत समझ आ गया कि भगवान का निरादर करने का यह परिणाम है। राजा वापस उसी स्थान पर गया और उसने अपनी गलती की क्षमा मांगी। सच्चे दिल से क्षमा मांगने पर भगवान ने उन्हें मांफ कर दिया और राजा के राज्य वापस पहले की तरह हो गया।

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