बद्रीनाथ मंदिर
भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकानंदा नदी के तट पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर चार धामों में से एक है जो प्राचीन मंदिर है कहा जाता है कि इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। भगवान विष्णु का मंदिर बहुत ही सुंदर और विशाल है। इसकी ऊंचाई करीब 15 मीटर है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर ने बद्री नारायण जी की छवि के रंग के शालिग्राम पत्थर के ऊपर अलकानंदा नदी में खोजी थी।
बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण
भगवान विष्णु के बद्रीनाथ मंदिर के निर्माण के बारे में कई तथ्य बताए गए हैं। 16वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठाकर बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना कराई थी। साथ ही यह भी कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर तीन भागों में विभाजित है। गर्भग्रह, दर्शनमंडप और सभामंडप। जिसके अंदर 15 मूर्तियां स्थापित है, इनमें भगवान विष्णु की 1 मीटर ऊंची काली पत्थर की मूर्ति स्थापित है। आपको बता दें कि भगवान विष्णु बैकुंठ में निवास करते हैं और बैकुंठ को विष्णु जी की निवास नगरी माना जाता है और इस मंदिर को धरती का बैकुंठ कहते हैं। इसलिए भगवान को यह मंदिर प्रिय है और वे साक्षात यहां पर निवास करते हैं।
माता लक्ष्मी ने दिया बद्रीनाथ नाम
भगवान विष्णु को बद्रीनाथ माता लक्ष्मी ने दिया दरअसल एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से रूठकर अपने मायके चली गई। इसके बाद भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या की और माता लक्ष्मी ने उन्हें एक बद्री के वन में तपस्या करते हुए देखा तबसे माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दे दिया।
बद्रीनाथ का धार्मिक उत्सव
मंदिर में माता मूर्ति का मेला लगाया जाता है। जो मां पृथ्वी पर गंगा नदी के आगमन की खुशी में उत्सव मनाया जाता है। इस त्यौहार में बद्रीनाथ की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मंदिर में उत्सव के दिन सुबह को महाअभिषेक, गीता पाठ, भगवत पूजा की जाती है और शाम के समय गीतगोविंद और आरती होती है।
बद्रीनाथ मंदिर खुलने का समय
मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के अवसर पर अप्रैल-मई के आसपास खोलें जाते हैं और अक्टूबर-नवंबर के आसपास सर्दियों के दौरान बंद रहते हैं। जिस वक्त मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं, उस वक्त एक दिव्य ज्योति जलाई जाती है जो 6 महीने तक लगातार चलती रहती है। कपाट खोलने के दिन बड़ी संख्या में तीर्थयात्री अखंड ज्योति को देखने के लिए उत्सुक रहता हैं।
बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता
· बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता है कि इस जगह भगवान विष्णु ने अपना स्थान बनाया और बद्रीनाथ के रूप में पूजे जाने लगे।
· इसकी गुफा में वेद व्यास ने महाभारत कथा लिखी और पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले उनका अंतिम पड़ाव भी यही था।
· बद्रीनाथ की मान्यता के बारे में कहा जाता है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी वहीं स्थान ब्रह्मकपाल के नाम से जाना जाता है।
· कहा जाता है कि यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने भगवान विष्णु के लिए घोर तपस्या की थी जिसके बाद में अगले जन्म में नर अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण के रूप में जन्में थे।
· बद्रीनाथ के बारे में यह एक कहावत है कि ‘जो जाए बद्री वह ना आए ओदरी यानी कि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जाता है। वह कभी भी माता के उदर यानि गर्भ में नहीं आता। मनुष्य को जीवन में एक बार जरूर बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जाना चाहिए।
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