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आरती: श्री शिव | Aarti: Shri Shiv Shankar


Friday, 05 March 2021
Aarti: Shri Shiv Shankar

आरती: श्री शिव | Aarti Shri Shiv Shankar

 

सनातन धर्म के अंदर 5 देवो को प्रमुख देव बोला गया है जिनमें भगवान श्री गणेश, विष्णु जी, मां दुर्गा, सूर्य देव और देवों के देव महादेव हैं। कलयुग के अंदर इन पांचों में से केवल सूर्य देव को ही दृश्य यानी कि देखने योग्य देव बोला गया है बाकी सभी देवों को कलयुग में अदृश्य माना गया है। अदृश्य का मतलब यह है कि ऐसे देव जो कि दिखते नहीं हैं। लेकिन इनका अस्तित्व ब्रह्मांड में मौजूद है। सूर्य देव के दर्शन हम कर सकते हैं और सूर्य की आराधना से बड़े से बड़े दुख दूर होते हुए नजर आते हैं। भगवान शिव की बात करें तो शिव जी को संहार का देवता बताया गया है। भगवान शिव को भोलेनाथ का नाम भी दिया गया है क्योंकि यह बहुत जल्दी प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान प्रदान करते हुए नजर आते हैं इसलिए उनको भोलेनाथ भी बोला गया है।

पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार एक लकड़हारा किसी कारण से बेल के पेड़ पर चढ़ा हुआ था तो गलती से कुछ पत्तियां शिवलिंग के ऊपर गिर गई। साथ ही साथ उसके पास जो पानी था वह भी शिवलिंग के ऊपर गिर गया था जिससे कि भगवान शिव प्रसन्न हो गए थे और उस लकड़हारे के सारे दुख दूर कर दिए थे। भोलेनाथ की कृपा सिर्फ मनुष्य और उनके भक्तों पर नहीं रहती है बल्कि सृष्टि के प्रत्येक जीव पर भगवान शिव की कृपा होती है। इनके गले में नाग देवता हैं और जटा में गंगा होती है। सिर पर चंद्रमा और हाथ में त्रिशूल डमरू बताया गया है।

भगवान शिव बहुत जल्दी भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं और थोड़ी पूजा से ही हमारे दुख दूर करते हुए नजर आ सकते हैं इसलिए भगवान शिव की यह आरती बेहद ही महत्वपूर्ण आरती है। यदि जातक निश्चित रूप से प्रतिदिन इस आरती का जाप करता है तो इससे उसके दुख कलेश दूर होते हुए नजर आ सकते हैं। एस्ट्रो ओनली आपके लिए भगवान शिव जी की आरती लेकर आया है जिसके जाप से आप अपने दुख दूर कर सकते हैं- 

आरती: श्री शिव | Aarti: Shri Shiv Shankar

जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
॥ जय शिव ओंकारा...॥

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