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Phulera Dooj 2022 : फुलेरा दूज का महत्व और पौराणिक कथा


Thursday, 03 March 2022
Phulera Dooj 2022

(Phulera Dooj 2022)फुलेरा दूज का त्यौहार जीवन में रंग लेकर आता है. ऐसा हम इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि इसी फुलेरा दूज से ही होली के त्यौहार का प्रारंभ होता हुआ नजर आता है. मथुरा वृंदावन धाम में होली के पर्व की शुरुआत फुलेरा दूज (Phulera Dooj 2022) से ही होती है. फुलेरा दूज को बहुत ही शुभ दिन माना गया है. ऐसा बोलते हैं कि इस दिन के हर क्षण में भगवान श्रीकृष्ण का वास होता है. फुलेरा दूज पर राधा कृष्ण की पूजा अर्चना की जाती है. इससे जीवन में प्रेम-सौभाग्य की प्राप्ति होती हुई नजर आती है. एस्ट्रो ओनली आपको बताने वाला है कि फुलेरा दूज के शुभ मुहूर्त, पौराणिक महत्व और उपायों के बारे में -

 

फुलेरा दूज 2022 तिथि व शुभ मुहूर्त

 

फुलेरा दूज हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीयतिथि को आता हुआ नजर आता है. इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तारीख 4 मार्च को पड़ रही है. दिनांक 4 मार्च 2022 के दिन शुक्रवार को द्वितीय तिथि आरंभ होगी। यह रात 21:36 से यानी कि 3 मार्च की रात्रि से शुरू होगी और द्वितीय तिथि समाप्त होगी रात 20:45 पर यानी कि 4 मार्च 2022 को.

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दिनांक 4 मार्च 2022, दिन शुक्रवार:

द्वितीया तिथि आरंभ - रात 21 बजकर 36 मिनट से (03 मार्च 2022)

द्वितीया तिथि समाप्त - रात 20 बजकर 45 मिनट तक (04 मार्च 2022)

 

फुलेरा दूज से जुड़ी पौराणिक कथा:

 

तो आइए जानते हैं कि फुलेरा दूज की क्या पौराणिक कथा

फुलेरा दूज को कृष्ण लीला के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है. एक बार ऐसा बताया गया है कि राधा जी कृष्ण से मिलने के लिए काफी बेचैन हो जाती हैं. श्रीकृष्ण काफी समय से बरसाना नहीं आये थे वह काफी व्यस्त रहा करते थे. इसी कारण राधारानी और गोपियाँ निराश रहने लगती हैं. इसका असर प्रकृति के ऊपर भी नजर आने लगता है. धीरे-धीरे यह होता है कि इसी उदासी के कारण राधा रानी जी और गोपियां और जल त्याग देती है जैसे ही राधा रानी और गोपियां भूखी प्यासी रहने लगती हैं. तभी प्रकृति में भी एक तरीके की उदासी छाई हुई नजर आने लगती है. राधा रानी की यह उदासी प्रकृति पर साफ-साफ दिखने लगती है. प्रकृति में खिले हुए फूल और वृक्ष मुरझाने लगते हैं. हरे वन खत्म होने लगते हैं. वृक्ष एक तरीके से मृत समान नजर आने लगते हैं. श्री कृष्ण जी तुरंत समझ जाते हैं कि राधा रानी और गोपियों की उदासी के कारण अब प्रकृति के ऊपर यह कष्ट आने लगा है वह तुरंत ही बरसाना पहुंच जाते हैं और वहां पहुंचकर राधा रानी जी और गोपियों से मिलते हैं.

राधा रानी जी और गोपियां भगवान श्री कृष्ण से मिलकर काफी प्रसन्न होती हैं. आपको बता दें कि यह कृष्ण और राधा रानी जी का अमर और सच्चा प्यार वापस से एक बार फिर प्रकृति में हरा रंग भर देता है. फूल खिलने लगते हैं और वृक्ष एक बार फिर से हरे होने लगते हैं. तभी राधा रानी जी कृष्ण के ऊपर एक फूल फेंकती हैं, इसको देखकर दूसरी गोपिया भी श्रीकृष्ण के ऊपर फूल फेंकती हैं और देखते ही देखते फूलों की होली शुरू हो जाती है. जिस दिन यह फूलों की होली होती है उस दिन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि ही थी, इसीलिए तभी से स्थिति पर फुलेरा दूज मनाई जाती हुई नजर आती है.

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