श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर तमिलनाडू
भगवान विष्णु के भारत में बहुत-से मंदिर बने हैं लेकिन उनमें से कुछ ही मंदिर ऐसे हैं जिनमें भगवान विष्णु अपने पूर्ण रूप में शेषनाग पर विराजमान हो। आज हम आपको भगवान विष्णु के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे धरती का बैकुण्ठ कहा जाता है। जहां शेषनाग पर विराजमान विष्णु जी श्रीरंगनाथस्वामी के नाम से जाने जाते हैं। ये मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडू के तिरुचिरापल्ली के श्री रंगम नामक पवन और पवित्र स्थान पर स्थित है। इस मंदिर को रंगनाथस्वामी मंदिर कहा जाता है। साथ ही रंगममंदिर, तिरूवरंगम तिरुपति, पेरियाकोइल के नाम से भी मंदिर को पुकारा जाता है। मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
रंगनाथस्वामी मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है। माना जाता है कि ये मंदिर 10वीं शताब्दी से भी पहले का बना हुआ है। मंदिर में स्थित शिलालेख को चोल, पांड्य, होयसाल और विजयनगर राजवंशों से सम्बंधित माना जाता है। मंदिर की वास्तुकला को इन्हीं के शासन में निखारा गया है। साल 1310 के आसपास मलिक काफूर ने मंदिर पर आक्रमण किया और वो रंगनाथस्वामीजी की प्रतिमा को चुराकर ले गए। जिसके बाद विष्णु भक्तों ने उससे प्रतिमा वापस ले ही ली। कहा जाता है कि बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया और अपना योगदान दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि रंगनाथ जी के मंदिर में राम भगवान ने देवताओं की लंबे समय तक पूजा-अर्चना की थी। जब राम जी का रावण ने युद्ध हुआ था तो राम भगवान ने रावण का वध करके विभीषण को लंका सौंप दी थी। जब विभीषण अयोध्या से लंका लौट रहे थे तो रास्ते उन्हें भगवान विष्णु ने दर्शन देकर कहा कि वो इस मंदिर में रंगनाथ जी के रूप में विराजमान होना चाहते हैं तब से भगवान विष्णु यहां पर रंगनाथस्वामी के रूप में निवास करते हैं।
रंगनाथस्वामी मंदिर की सुंदरता
मंदिर बेहद भव्य बना है। इसकी खूबसूरती विश्व भऱ में प्रसिद्ध है। मंदिर के परिसर का क्षेत्रफल 156 एकड़ में फैला हुआ है। कावेरी नदी पर मंदिर स्थित होने के कारण और भी ज्यादा सुंदर लगता है। मंदिर में 7 मुखबिर और 21 टावर हैं। यहां पर मुख्य गोपुरम की लंबाई 72 मीटर है जिसे शाही मंदिर टावर भी कहा जाता है। मंदिर में दो बड़े टैंक भी बनाए गए हैं जिनका चंद्र पुष्करिणी और सूर्य पुष्किरिणी नाम है। मंदिर में लकड़ी का वाहन है जिसे याना वहाना कहते है। इस वाहन के ऊपर भगवान विष्णु विराजित हैं जो 15 मिलियन साल पहले विलुप्त हो चुके हाथी मस्तोदोनटओटाइदा के जैसे दिखते हैं। मंदिर की गर्भग्रह को सोने की परत से सजाया गया है। मंदिर में आनंदम योजना के तहत हर रोज भक्तों को मुफ्त भोजन कराया जाता है। यहां पर परमपद वासल यानि बैकुण्ठ लोक भी बना है जिसका दरवाजा साल में केवल एक बार बैकुण्ठ एकादशी को खोला जाता है।
ये दक्षिण भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसकी प्रशंसा तमिल भक्ति आंदोलन के सभी संतों ने की थी।
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