महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
भगवान शिव के अनेक रूप है और अलग-अलग रूप के अलग-अलग नाम है। भगवान शिव को भोलेनाथ, शम्भू, ओमकेश्वर, विश्वनाथ, केदारनाथ और त्रिंबकेश्वर, वैद्दनाथ आदि नामों से जाना जाता है। इन सबके साथ भगवान शिव को कालों के काल महाकाल भी कहा जाता है। महाकाल यानि महाकालेश्वर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इनकी महिमा निराली है। भगवान शिव का यह रूप सबसे ज्यादा प्रचलित है।
महाकालेश्वर मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर परिसर बड़ा विशाल है। जहां पर महाकालेश्वर से अलग कई देवी-देवताओं के छोटे बड़े मंदिर बने हुए हैं। महाकाल की ज्योतिर्लिंग तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर और ऊपरी प्रखंड में नागचंद्रेश्वर स्थित है। नागचंद्रेश्वर रूप के दर्शन नागपंचमी के दिन ही किया जाता है। मंदिर में महाकालेश्वर की विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। जिसका वेद पुराणों में विशाल महत्व कहा गया है। गर्भ ग्रह में ही माता पार्वती भगवान गणेश सहित कार्तिकेय जी प्रतिमा भी स्थापित हैं। गर्भ ग्रह में हमेशा नंदीदीप स्थापित रहता है जो सदैव प्रचलित होता रहता है। गर्भगृह के ठीक सामने विशाल कक्ष में नंदी जी की प्रतिमा स्थापित की गई है। इसी कक्ष में बैठकर भक्तजन शिव की आराधना करते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास
छठी शताब्दी से धर्म ग्रंथों में उज्जैन के महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है। छठी सदी में उज्जैन के राजा चंद्रबोस ने महाकाल परिसर की व्यवस्था के लिए अपने बेटे असंभव को नियुक्त किया। 11 वीं सदी के आठवें दशक में गजनवी ने महाकालेश्वर मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की। जिसके बाद 12 वीं सदी के मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। इसके बाद भी 1234-35 में सुल्तान इल्तुत्मिश ने आक्रमण कर दिया। लेकिन एक बार फिर से मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।
महाकालेश्वर जी की भस्म आरती
महाकालेश्वर मंदिर में सबसे महत्वपूर्ण महाकालेश्वर की भस्म आरती है। महाकालेश्वर मंदिर में आरती के लिए कई महीने पहले से ही लोग मंदिर में जाने की व्यवस्था करने लगते हैं। पहले भस्म आरती के लिए ताजा मुर्दों से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है लेकिन वर्तमान में गोबर के कंडे की भस्म आरती का उपयोग किया जाता है। महाकाल के दर्शन के लिए जाने का सबसे ज्यादा लाभ तभी प्राप्त होता है जब आप महाकालेश्वर की भस्म आरती देखे।
भस्म आरती का रहस्य़
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि पहले उज्जैन में महाराज चंद्रसेन का शासन था और वो महाकाल के परम भक्त थे। एक बार राजा के महल पर राक्षक दूषण ने हमला कर दिया और वो राक्षक पूरी प्रजा को प्रताड़ित करने लगाया। चंद्रसेन और प्रजा की पुकार पर भगवान शिव ने राक्षक दूषण का वध किया। वध करने के बाद भगवान महाकाल ने दूषण की राख से अपना श्रृंगार किया और वे प्रार्थना करने पर वहीं पर बस गए। इस तरह से भगवान शिव का नाम महाकालेश्वर पड़ा और तब से महाकालेश्वर की भस्म आरती करने की परंपरा बन गई।
ऐसी मान्यता है कि भस्म आरती भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है। ये आरती हर रोज सुबह 4 बजे की जाती है। राजा चंद्रसेन ने मंदिर में शिवलिंग की स्थापना कराई थी।
कैसे पहुंचे महाकालेश्वर मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर वायु, सड़क और रेल तीन मार्गों से पहुंचा जा सकता है। यहां पर निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा, इंदौर है। साथ ही यहां से दिल्ली, मुंबई, भोपाल, पुणे, जयपुर और हैदराबाद की नियमित उड़ानें हैं। सड़क मार्ग से जाने के लिए इंदौर, भोपाल, रतलाम, कोटा और ओंकारेश्वर से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध है। रेल मार्ग की बात करें तो यहां से कई शहरों के लिए ट्रेन उपलब्ध रहती है।
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