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यमुनोत्री मंदिर


Friday, 19 March 2021
यमुनोत्री मंदिर

यमुनोत्री धाम यात्रा

 

हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा का बड़ा महत्व है। चार धाम की यात्रा में सबसे पहला पड़ाव यमुनोत्री का है। यमुनोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये देवी यमुना का पवित्र स्थान है। हिमालय के कंदराओँ में बसी यमुनोत्री की महिमा अपरंपार है।

 

यमुनोत्री मंदिर

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराज 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए कराया था। लेकिन एक बार यमुनोत्री मंदिर भूकंप से पूरी तरह से नष्ट हो चुका था। जिसके बाद मंदिर का पुनः निर्माण किया गया और यह निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने कराया। 19वीं सदी में महारानी गुलेरिया ने यमुनोत्री मंदिर को फिर से एक बहुत ही सुंदर तरीके से बनवाया था। यह मंदिर का कालिंद पर्वत पर स्थित है। मंदिर के गर्भग्रह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजमान है। जिसकी बड़े ही विधि विधान से की जाती है। यमुनोत्री धाम में पिंडदान का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि श्रद्धालु इस मंदिर के परिसर में अपने पितरों का पिंडदान करने आते हैं।

 

 

यमराज की बहन है यमुना

यमुना देवी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यमराज की बहन है। जो लोग भैया दूज के दिन यमुना में स्नान करते हैं। वो कभी भी यम के द्वार को नहीं देखते। इस मंदिर में यमुना जी के साथ-साथ उनके भाई यमराज की पूजा का भी महत्व है।

 

 

कहा जाता है कि पांडव भी यात्रा के दारौन यहां आए थे। उन्होंने पहले यमुनोत्री के दर्शन करें और फिर गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जी की और बढ़े। तभी से ही चार धाम की यात्रा का प्रचलन चलता आ रहा है। हर साल मई से अक्टूबर के महीनों के बीच दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु श्रद्धा भक्ति के साथ आते हैं और यमुना के जल से अपने जीवन को सफल बनाते हैं।

 

सूर्य कुंड

 

इस मंदिर के पास कई कुंड है जिनमें सबसे प्रसिद्ध सूर्य कुंड है। इस कुंड का उच्चतम तापमान रहता है। आपको आश्चर्य होगा कि यमुना देवी के भक्त प्रसाद के रूप में चावल चढ़ाने के लिए कपड़े की पोटली में चावल बांधकर इस कुंड के गर्म जल में पकाते हैं। कुंड में पके चावलों का देवी को भोग लगाया जाता है और बचे हुए प्रसाद को लोग अपने घर ले जाते हैं।

 

 

 

गौरीकुंड

इस मंदिर के पास ही गौरीकुंड है। इस कुंड का जल ना ज्यादा ठंडा है और ना गर्म। इस कुंड में स्नान करने की परंपरा है। कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है।

 

 

 

यमुनोत्री जाने के साधन

वायु मार्ग

यमुनोत्री के सबसे करीब एयरपोर्ट देहरादून का जौलीग्रांट एयरपोर्ट है। जिसकी दूरी यमुनोत्री से 210 किलोमीटर है। दिल्ली से एयरपोर्ट के लिए हर रोज फ्लाइट उपलब्ध रहती हैं। श्रद्धालु यमुनोत्री दर्शन के लिए हवाई मार्ग से जा सकते हैं। साथ ही श्रद्धालुओं के लिए देहरादून से हेलीकॉप्टर सर्विस भी ले सकते हैं।

 

रेल मार्ग

यमुनोत्री के दर्शन के लिए रेल मार्ग भी उत्तम साधन है। यमुनोत्री के सबसे करीब रेलवे स्टेशन देहरादून का है जो करीब 175 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन 200 किलोमीटर दूर है।

 

 

 

सड़क मार्ग

दर्शन के लिए सबसे अच्छा मार्ग बड़कोट देहरादून से होकर जाता है। इसके बाद बस के माध्यम से धरासू से यमुनोत्री की ओर बड़कोट और फिर जानकीचट्टी तक की तरफ जाते हैं। जिसके बाद जानकीचट्टी से 6 किलोमीटर करीब की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।

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