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योगिनी एकादशी 2021


Wednesday, 17 March 2021
योगिनी एकादशी 2021

योगिनी एकादशी 2021

तिथि- 05 जुलाई 2021

 

योगिनी एकादशी आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। योगिनी एकादशी के दिन भगवान श्री नारायण, श्री हरि विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। इस एकादशी का उपवास रखने से मनुष्य के सभी छोटे बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं। अगर कोई ब्राह्मण पीपल के वृक्ष को काट दे तो उसको इस व्रत को करने से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के पुण्य से किसी ऋषि मुनि द्वारा दिए गए श्राप का निवारण भी हो जाता है। योगिनी एकादशी शरीर के समस्त दुखों को नष्ट कर सुंदर, गुणवान, रूपवान और यश प्रदान करते हुए एकादशी है।

 

योगिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

तिथि- 05 जुलाई

समय- 06 जुलाई को प्रातः 6 05:28:30 से 08:15:22 तक

समयावधि- 2 घंटे 46 मिनट

 

योगिनी एकादशी पूजा विधि

योगिनी एकादशी व्रत के नियम दशमी से ही प्रारंभ हो जाते हैं। इस व्रत की विधि यहां बता रहे हैं जिसका पालन करना चाहिए-

चरण- 1  दसवीं की रात्रि से ही नमक का त्याग देना चाहिए।   

चरण- 2  एकादशी के दिन प्रातः स्नान करना चाहिए।

चरण- 3  रात्रि में श्री हरि विष्णु जी  का नाम लेकर जागरण करना चाहिए। 

चरण- 4   प्रातः सुबह उठकर सूर्यनारायण को जल देकर व्रत खोलना चाहिए।

 

व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-

जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करना चाहते हैं, उनको गेहूं, मूंग की दाल से बने भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए

इस दिन आपको किसी भी वृक्ष से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। इससे भी आपके द्वारा रखा गया व्रत भंग हो जाता है।

इस दिन अपने घर के अतिरिक्त किसी और के घर का लाया हुआ भोजन स्वीकार न करें। न ही बाहर का भोजन ग्रहण करें।

जितना हो सके कम बोलने का प्रयास करें क्योंकि अधिक या जरुरत से ज्यादा बोलने पर आपके मुख से वो शब्द भी निकल जाते हैं जो आपको नहीं बोलने चाहिए। हो सके तो मौन व्रत रखें। 

 

योगिनी एकदशी का महत्व

इस व्रत को करने से प्रत्येक मनुष्य के जीवन में समृद्धि शांति सुख एवं आनंद मिलता है। यह व्रत पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक, वेद एवं ब्रह्मलोक में भी प्रसिद्ध है। योगिनी एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के जितना फल मिलता है। अपने पापों के अंत के लिए सच्ची श्रद्धा से अगर कोई मनुष्य व्रत करता है तो उसके पाप की समाप्ती हो जाती है।

 

पौराणिक कथा

अलकापुरी नामक नगरी में राजा कुबेर के बागान में हेम नाम का एक माली कार्य करता था। उसका कार्य था भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए मानसरोवर से कमल के पुष्प लाना। एक दिन अपनी पत्नी के साथ बिहार करने की कारण उसने पूजा के पुष्प लाने में विलंब कर दिया। राजा ने इस अपराध के लिए उसे दरबार निष्कासित कर दिया। इस अपराध का दंड कुबेर ने उसे कोडढ़ होने का श्राप देकर किया। श्राप के कारण हेम इधर-उधर भटकता। भगवान की इच्छा से वह इधर-उधर भटकता हुआ मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने अपनी तपस्या योग शक्ति से उसके होने के विषय में जान लिया। तब मार्कंडेय ऋषि ने हेम को योगिनी एकादशी का उपवास करने ईश्वर की विधिवत पूजा करने भेज दिया। एकादशी का उपवास करने से हेम का कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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