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कुंडली की विंशोत्तरी दशा


Kundaliज्योतिष शास्त्र में किसी भी कुंडली हेतु परिणाम प्राप्त करने के लिए कई प्रकार की नियमों का प्रयोग किया जाता है। उन नियमों में एक नियम या विधि विंशोत्तरी दशा भी है। जिस दशा का प्रयोग करने से मनुष्य के भविष्य के बारे में मालूम पड़ता है। विंशोत्तरी दशा के बारे में हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे हैं..
दशा का अर्थ होता है समय की अवधि। समय की अवधि को निश्चित ग्रहों के द्वारा शासित किया जाता है। विंशोत्तरी दशा चंद्र नक्षत्र पर आधारित है। जिसकी वजह से इसकी भविष्यवाणी को सबसे सटीक माना जाता है। विंशोत्तरी दशा को महादशा के नाम से भी जाना गया है।

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विंशोत्तरी दशा का चक्र

प्राचीन काल में मनुष्य की आयु 120 वर्ष तक मानी जाती थी लेकिन धीरे-धीरे करके मनुष्य की आयु कम होती चली गई और आज के समय में मनुष्य की आयु 50 से 80 साल तक हो गई है। इस विधि में सभी नौ ग्रहों को एक विशिष्ट समय अवधि दी जाती है। सभी नौ ग्रहों की महादशा के लिए 120 साल का पूरा चक्र होता है। यह चक्र 9 भागों में विभाजित किया गया है। ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक हर भाग किसी ना किसी ग्रह द्वारा शासित है।
महादशा लंबे समय तक चलती है। अन्य दशाएं जैसे अंतर्दशा कुछ महीने के लिए से दो-तीन साल तक चलती है जबकि प्रत्यंतर दशा कुछ दिनों से कुछ महीने तक ही चलती है। व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की समय-समय पर महादशा, अंतर्दशाएं और अंतर्दशाएं आती ही होती हैं।


महादशा की गणना कैसे की जाती है

महादशा की गणना करने के लिए एक विशेष प्रकार का चार्ट दिया गया है और एक नियम का उपयोग किया जाता है। इस नियम के मुताबिक हर ग्रह को तीन नक्षत्र आवंटित किए जाते हैं यानी कि नौ ग्रहों के साथ 27 नक्षत्र हो जाते हैं। अलग-अलग ग्रहों पर अलग-अलग नक्षत्र निर्धारित होते हैं। जन्म के समय में नक्षत्र कुछ ग्रहों की महादशा का निर्धारण करते हैं। किसी नक्षत्र में दशा की अवधि चंद्रमा के स्थान पर भी निर्भर की जाती है। यदि जन्म के समय चंद्रमा किसी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो नक्षत्र के शासक ग्रह की महादशा की प्राप्ति होगी।



महादशा के साल, ग्रह और उन पर आधारित नक्षत्र

सूर्य ग्रह में महादशा वर्ष 6 साल की होती है और इसके नक्षत्र कृतिका उत्तराफाल्गुनी और उत्तरा आषाढ़ हैं।
चंद्रमा ग्रह का महादशा वर्ष 10 वर्ष है। इसके नक्षत्र रोहिणी, हस्त और श्रवण हैं।
मंगल ग्रह का महादशा 7 साल की होती है। इसके नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा और घनिष्ठा हैं।
राहू ग्रह के लिए महादशा साल 18 सालों का होता है और उसके अंतर्गत तीन नक्षत्र आद्रा, स्वाति और शतभिषा आते हैं।
ऐसे ही गुरु का महादशा वर्ष 16 वर्ष होता है और इसमें नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा और पूर्व भाद्रपद हैं।>
शुक्र ग्रह का महादशा का वक्त 20 वर्ष का होता है और इसके अंतर्गत आने वाले नक्षत्र पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वा अषाढ़ा और भरणी हैं।
शनि का महादशा साल 19 सालों का होता है। इसके अंतर्गत आने वाले नक्षत्र पुष्पा, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद हैं।
बधु का महादशा का वक्त 17 वर्ष का होता है। इसके नक्षत्र आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती हैं।
केतू ग्रह के लिए महादशा वक्त 7 वर्ष का होता है। इसके अंतर्गत मघा, मूला और अश्वनी नक्षत्र आते हैं।

विंशोत्तरी दशा में फल निर्धारण

विंशोत्तरी दशा का फल निर्धारण करने के लिए एक नियम बताया गया है। उस नियम के अनुसार, लग्न के अनुरूप कुछ ग्रह नैसर्गिक रूप में शुभ होते हैं। जैसे मेष लग्न के लिए शनि मंगल, वृष लग्न के लिए शनि, कन्या लग्न के लिए बुध और कर्क लग्न के लिए मंगल शुभ होता है। लग्न के लिए नैसर्गिक रूप से ग्रह शुभ होने के बाद भी ये ध्यान रखना जरूरी होता है कि कुंडली में भी ग्रह कितना मजबूत है और कितना कमजोर। यदि वह ग्रह नीच है तो वह शुभ होने के बाद भी अशुभ फल ही देता है।
शनि, मंगल, सूर्य कष्टकारी को पाप ग्रहों में गिना जाता है लेकिन अगर यह केंद्र भावों के स्वामी हो तो उनकी दशा-अंतर्दशा से भी लाभ प्राप्त हो सकता है इसीलिए ही केंद्र भावों को ज्योतिष ने काफी महत्वपूर्ण माना है।

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