पंचांग के अंदर करण का विशेष महत्व होता है। बिना करण के शुभ मुहूर्त नहीं निकाले और देखे जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अच्छा और शुभ काम करना चाहता है जैसे कि घर लेना चाहता है, बच्चे का नामकरण करना चाहता है, शादी करना चाहता है तो सभी कार्यों में करण को देखा जाता है और इसके बाद ही शुभ मुहूर्त का आकलन किया जाता है। कुछ करण ऐसे बताए गए हैं जिनमें की किसी भी तरीके के शुभ कार्य किए जा सकते हैं और कुछ करण ऐसे होते हैं जिनके अंदर किसी भी तरीके का अच्छा कार्य करना शुभ नहीं बताया गया है, इनको वर्जित बोला गया है जैसे कि भद्रा में किसी भी तरीके का शुभ कार्य करना वर्जित बोला गया है। इस समय में यदि कोई जातक शुभ काम करेगा तो उसके दुष्परिणाम सामने आते हुए दिखेंगे।
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तिथि के आधे भाग को करण बोलते हैं। चंद्रमा जब 6 अंश पूर्ण कर लेता है तब एक करण पूरा होता है, एक तिथि में दो कारण होते हैं, एक पूर्वार्ध में और एक उत्तरार्ध के अंदर। कुल 11 इस प्रकार से करण बनते हैं जो कि इस तरीके से हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
किस्तुघ्न, चतुष्पद, शकुनि तथा नाग यह करण ऐसे हैं कि जो हर महीने आते ही आते हैं इसलिए इनको स्थिर कर बोला गया है क्योंकि यह हर माह आते हैं। बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि जिसे भद्रा बोलते हैं यह ऐसे करण होते हैं जो एक दूसरे के पीछे आते हैं, हर महीने आएंगे यह भी निश्चित नहीं होता है लेकिन यह एक के बाद एक आते रहते हैं इसलिए इनको चलते चलते फिरते चर करण बोला जाता है। तो इस तरीके से कुल 11 करण होते हैं चार स्थिर होते हैं और 7 चरण होते हैं जो कि चलते रहते हैं
किस्तुघ्न- यह स्थिर करण बोला जाता है इसके प्रतिक की बात करें तो कृमि, कीड़ा, मकोड़ा इसके प्रतीक बोले गए हैं इसका फल सामान्य बोला जाता है। अवस्था की बात करें तो उसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी होती है।
बव- इस करण का प्रतीक सिंह होता है, यह चलता हुआ चरण बोला गया है, इसका गुण समगुण होता है, मिलाजुला असर इसका प्राप्त होता हुआ दिखाता है। इसकी अवस्था बालावस्था होती है।
बालव- इसका प्रतीक है चीता। यह कुमार माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।
कौलव- इसका प्रतीक जो बोला गया है वह शुक्र को माना गया है। यह श्रेष्ठ फल देने वाला ऊर्ध्व अवस्था का करण होता है।
तैतिल- इस करण को चर करण बोला गया है। इसका प्रतीक गधा है। इसे अशुभ फलदायी सुप्त अवस्था का करण शास्त्रों में बोला गया है।
गर- यह चर करण होता है तथा इसका प्रतीक हाथी बताया गया है। इसे प्रौढ़ बोला गया है। इस गर चरण की अवस्था बैठी हुई है।
वणिज- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गौ माता को बताया गया है। अवस्था की बात की जाये तो यह बैठी हुई मानी गई है।
विष्टि अर्थात भद्रा- यह चर करण की श्रेणी में आता है। इसका प्रतीक मुर्गी को बताया गया है। यह चरण मध्यम फल देता है।
शकुनि- स्थिर करण होता है, इसका प्रतीक पक्षी है। इस चरण की अवस्था ऊर्ध्वमुखी है इस चरण को सामान्य फल देने वाला करण बोला गया है।
चतुष्पद- चतुष्पद को स्थिर करण बोला गया है। इसका प्रतीक देखें तो चार पैर वाला पशु इसका प्रतीक माना गया है। इसका भी फल सामान्य बताया गया है, इसकी अवस्था सुप्त बोली गयी है।
नाग- नाग चरण अंतिम है यह स्थिर करण होता है। इसका प्रतीक देखें तो यह नाग या सर्प को बोला गया है। इसका फल सामान्य तथा इसकी अवस्था सुप्त बताई है।
क्या आप अपने जीवन में आ रही परेशानियों को लेकर एक सही और अच्छा समाधान खोज रहे हैं। क्या आप अपने व्यवसाय को लेकर परेशान हैं, काफी मेहनत करने के बाद भी, आपका व्यवसाय उस तरीके से मुनाफा नहीं कर रहा है जिस तरीके से आप चाहते हैं। क्या आपको लगातार नौकरी के क्षेत्र में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। क्या आपका पारिवारिक जीवन सही नहीं चल रहा है।
और पढ़ेज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा के बीच की दूरी मापने को ही तिथि बोला जाता है। सूर्य और चंद्रमा के बीच जो दूरी होती है या जो दूरी बन रही होती है उसी को तिथि कहते हैं। दूसरे शब्दों में तिथियां हमें यह भी बताती है कि चंद्रमा और सूर्य की किस समय कितनी दूरी रहने वाली है जिसके आधार पर राशिफल, पंचांग आदि का निर्माण किया जाता है। इस बात को थोड़ा और सामान्य शब्दों में बता दें तो पृथ्वी, सूर्य के चारों ओर घूमती है और चंद्रमा, पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा होता है इस बीच पृथ्वी से सूर्य और चंद्र कभी तो एक ही डिग्री पर उपस्थित होते हैं तो कभी 180 डिग्री पर मौजूद होते हैं जब दोनों एक ही डिग्री पर दिखाई देते हैं तब अमावस्या होती है और जब 180 डिग्री का अंतर होता है तब पूर्णिमा घोषित की जाती है यह दोनों ही घटनाएं महीने में एक बार होती हुई नजर आती हैं। 30 दिनों में एक बार अमावस आती है और 30 दिनों में एक बार पूर्णिमा होती है। अमावस्या पूर्णिमा के बीच जो समय लगता है और ऐसा ही पूर्णिमा से अमावस के बीच जो समय होता है उस उस समय के अंतर को बताने वाली थी तिथि कहलाती है। पूर्णिमा और अमावस्या पूर्णिमा की ओर जाने को शुक्ल पक्ष बोला जाता है। साधारण भाषा में जब चंद्रमा बढ़ता है उन दिनों को शुक्ल पक्ष बोलते हैं और चंद्रमा जब घट रहा होता है तो उसको कृष्ण पक्ष बोलते हैं।
और पढ़ेहिंदू धर्म में कोई भी काम करने से पहले उस काम का मुहूर्त देखा जाता है कि किस समय में हमें कुछ काम करना है या फिर ऐसा बोले कि जिस समय या जिस दिन हम कुछ नया काम करना चाहते हैं तो उस दिन किस समय नक्षत्रों की स्थिति और चंद्रमा की स्थिति हमारे काम के अनुकूल होगी तो उसको देखकर शुभ मुहूर्त निकाला जाता है, इसके साथ ही मुहूर्त के बिना किए जाने वाले काम को सही नहीं बताया गया है और ज्योतिष विद्या के अनुसार शुभ मुहूर्त में किए गए काम का फल भविष्य में व्यक्ति को शुभ प्राप्त होता है। और यदि खराब समय में कोई काम किया जाए तो भविष्य में उसके हानिकारक परिणाम देखने को मिलते हैं इसीलिए मुहूर्त का महत्व बहुत अधिक बताया गया है। हिंदू कैलेंडर में मुहूर्त का अलग से स्थान रखा गया है पंचांग में हर दिन मुहूर्त के बारे में बताया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में मुहूर्त इसलिए नहीं बताया जाता है क्योंकि उनके यहां मुहूर्त जैसी कोई भी चीज या ऐसा कोई विज्ञान मौजूद नहीं है जो कि दिन में नक्षत्र या फिर चंद्रमा की गति के अनुसार मुहूर्त का निर्माण कर सकें इसलिए पंचांग में और खासकर हिंदू कैलेंडर में शुभ मुहूर्त का अलग से स्थान होता है और हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हमेशा से ही शुभ मुहूर्त में काम करते हुए नजर आते हैं।
और पढ़ेजैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है राहु काल में कोई भी काम करना अच्छा नहीं बताया गया है। राहु काल का यदि आप चित्र देखेंगे तो उसके अंदर आपको सिर पर सर्प दिखेगा। उस सांप से ही समझा जा सकता है कि यह काल मनुष्य के लिए अच्छा नहीं है यदि इस समय में कोई भी शुभ काम किया जाएगा तो उसके परिणाम अच्छे प्राप्त नहीं होंगे। यह परिणाम सकारात्मक कार्यों के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं बोला गया है। राहु काल के लिए हमारे वेदों में अलग से व्याख्यान लिखा गया है और पंचांग में भी राहुकाल का विशेष उल्लेख है और राहु काल को लेकर पंचांग में बोला गया है कि इस समय में कोई भी शुभ काम शुरू नहीं करना चाहिए और यदि कोई जातक राहु काल में कोई काम शुरू करता है तो उसके विपरीत परिणाम मनुष्य को प्राप्त होते हैं।
और पढ़ेपंचांग के अंदर करण का विशेष महत्व होता है। बिना करण के शुभ मुहूर्त नहीं निकाले और देखे जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अच्छा और शुभ काम करना चाहता है जैसे कि घर लेना चाहता है, बच्चे का नामकरण करना चाहता है, शादी करना चाहता है तो सभी कार्यों में करण को देखा जाता है और इसके बाद ही शुभ मुहूर्त का आकलन किया जाता है। कुछ करण ऐसे बताए गए हैं जिनमें की किसी भी तरीके के शुभ कार्य किए जा सकते हैं और कुछ करण ऐसे होते हैं जिनके अंदर किसी भी तरीके का अच्छा कार्य करना शुभ नहीं बताया गया है, इनको वर्जित बोला गया है जैसे कि भद्रा में किसी भी तरीके का शुभ कार्य करना वर्जित बोला गया है। इस समय में यदि कोई जातक शुभ काम करेगा तो उसके दुष्परिणाम सामने आते हुए दिखेंगे।
और पढ़ेआकाश में सूर्य के चारों तरफ जो ब्राह्मण का मार्ग बनता है, उसको क्रांति व्रत कहते हैं इसी के चारों तरफ ग्रह व चक्र घूमते हुए नजर आते हैं। क्रांति व्रत में प्रकाश पुंज तारों के 12 समूह होते हैं इनको राशि चक्र कहते हैं। यह ग्रहों की एक पट्टी होती है जो 12 राशियों में विभक्त होती है। प्रत्येक राशि की अपनी विशेषता अपना महत्व होता है उसी तरीके से 12 राशियों में कुल 27 नक्षत्र होते हैं। नक्षत्र तारों का ही एक समूह होता है लेकिन यह साधारण तारों की भांति टिमटिमाते नहीं है लेकिन लगातार चमकते रहते हैं। इनको नक्षत्र बोला गया है। एक नक्षत्र में कई कई तारे या उनके समूह होते हैं जो मिलकर आकृति बनाते हैं। उसी के अनुसार राशियों के नाम रखे गए हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि राशियां 12 होती हैं और नक्षत्र 27 होते हैं, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। इस प्रकार कुल नक्षत्र चरण 108 बताए गए हैं। एक राशि के अंदर 2-1/4 नक्षत्र यह 9 नक्षत्र चरण बताए गए हैं।
और पढ़ेपंचांग के अंदर वार यानी कि दिन होता है। पंचांग में सात वार का जिक्र किया गया है जिनमें कि रविवार, सोमवार मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार शामिल है। सप्ताह के अंदर जो भी दिन होते हैं इनको वार के रूप में जाना जाता है। सूर्योदय से लेकर सूरज ढलने तक का जो समय होता है उसको वार या दिन बोला जाता है। हर दिन या वार का एक देवता निर्धारित है जो कि उस दिन को जातक या व्यक्ति के लिए खास बनाता है। सदियों से ही दिन और देवता दोनों एक साथ पूजे जाते रहे हैं। कौन सा दिन शुभ है या कौन सा वार शुभ है इसका निर्धारण पंचांग के द्वारा ही होता है। पंचांग में ग्रहों की चाल स्थिति और सूर्य-चंद्रमा की चाल को देखकर इस बात का पता लगाया जाता है कि दिन में कौन सा समय अच्छा होने वाला है। सप्ताह में कितने दिन और कौनसे दिन पर कौनसे भगवन को पूजा जाता हैं इसके लिएएक-एक कर जानते हैं।
और पढ़ेपंचांग के अंदर 5 बातें बेहद महत्वपूर्ण होती हैं जिनमें से एक हैं योग। योग चंद्रमा और सूर्य की मदद से निर्धारित किए जाते हैं। जातक का जन्म जिस योग में होता हैं उसके अंदर उसी तरीके के गुण उपस्थित होते हैं। आप इसको सामान्य से शब्दों में इस तरीके से समझें कि योग 27 प्रकार के होते हैं और सूर्य और चंद्रमा के देशांतर के द्वारा योग की गणना की जाती है। जातक के ऊपर योग का बहुत गहरा प्रभाव बताया गया है जैसे कि जातक किस तरीके का काम करेगा, उसका व्यवहार किस तरीके से होगा, उसके अंदर किस तरीके के गुण उपस्थित होंगे इन्हीं सब बातों को देखने के लिए योग का विश्लेषण किया जाता है या आंकलन किया जाता है।
और पढ़ेत्यौहार को अंग्रेजी में फेस्टिवल्स के नाम से जाना जाता है। त्यौहार हिंदू धर्म में और भारतवर्ष में सभी धर्मों के लिए महत्वपूर्ण स्थान निभाते हैं। त्यौहार खुशियों का सूचक हैं और जीवन में खुशियां लेकर आते हैं। त्यौहार जब भी आते हैं तो इसका एक ही अर्थ लगाया जाता है कि अब हमारे जीवन में खुशियां और सुख व समृद्धि आने वाली हैं। हम त्यौहार पर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं और उनको इस बात के लिए धन्यवाद अर्पित करते हैं कि उन्होंने हमें अभी तक जिस तरीके का भी जीवन दिया है जो भी खुशियां या दुख हमारे जीवन में दिए हैं यह सब उन्हीं की कृपा है।
और पढ़ेज्योतिष के क्षेत्र में शानदार सेवाओं के कारण एस्ट्रो ओनली एक तेजी से प्रगतिशील नाम है। एस्ट्रो केवल ज्योतिष के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है। प्रामाणिक और सटीक भविष्यवाणियों और अन्य सेवाओं के कारण इस क्षेत्र में हमारा ब्रांड प्रमुख होता जा रहा है। आपकी संतुष्टि हमारा उद्देश्य है। अपने जीवन में सकारात्मकता और उत्साह को बढ़ाकर आपकी सेवा करना हमारा प्रमुख लक्ष्य है। ज्योतिष के मूल्यवान ज्ञान की मदद से हमें आपकी सेवा करने का मौका मिलने पर खुशी होगी।