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शनि ग्रह

दूसरे सभी ग्रहों से काफी दूर होने पर शनि एक सुंदर एवं विचित्र ग्रह बोला गया है। इसके चारों और तीन चक्र होते हैं जो सदैव एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से घूमते हुए नजर आते हैं। अन्य ग्रहों से इस ग्रह की यही एक विशेषता नजर आती है। शनि इन चक्र के साथ अति मंद गति से भ्रमण करने वाला ग्रह होता है। मंद गति से चलने के कारण ही शनि को शनः शनः चरः बोला गया है। शनि सूर्य पुत्र होते हैं। सौरमंडल में जहां सबसे अधिक तेज गति से चलने वाला ग्रह चंद्रमा होता है तो वहीँ सबसे अधिक धीमी गति से चलने वाला ग्रह शनि बोला गया है। चंद्रमा जिस परिक्रमा को 27 दिन में पूरी करता है उसी परिक्रमा को 30 वर्ष में शनि पूर्ण करता है। शनि को सूर्यपुत्र की उपाधि दी गई है किंतु गुण और स्वभाव की दृष्टि से दोनों में काफी अंतर है। सूर्य प्रकाशमान है तो शनि अंधकार का प्रतीक बोला गया है।

सूर्य जीवन है तो शनि को मृत्यु का सूचक बोला गया है। मंद गति से चलने वाला शनि बुद्धिमान, तीक्ष्ण प्रकृति वाला, अहंकारी, कार्यकर्ताओं एवं श्रमिकों का आश्रयदाता तथा नौकरी करने वालों का संरक्षक बोला गया है। दुख, आपत्ति, विपत्ति, संपत्ति, श्रम-दायित्व, एकांतवास, सन्यास, दार्शनिक सोच, शीलता, नौकर चाकर, चोर भय, कारावास, इनसे संबंधित विषयों का संबंध शनि से ही होता है। यह गंभीर गुण वाला, अंधकार, संवेदनशील, निराशा, अस्वस्थ या दुर्घटना आदि का सूचक होता है। भारतीय ज्योतिष में इस ग्रह को दुख एवं संकटों का अधिष्ठाता बोला गया है। शनि ग्रह, मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी होता है। शनि से संबंधित रोगों की बात करें तो यह ग्रह वात कफ विकार, टांगों में दर्द, लड़खड़ाना, जोड़ों के दर्द, कैंसर, श्वास नली का विकार, टीबी रोग, आदि का सूचक है। मकर राशि के साथ यदि शनि अच्छी स्थिति में है तो वह जातक परिश्रमी, कुशाग्र बुद्धि, विद्वान, मिथ्याभाषी, ऐश्वर्य, प्रमुख व्यक्तित्व, गृहस्थ जीवन अशांत वाला होता हुआ नजर आता है। कुंभ राशि का शनि होने पर जातक नीति दक्ष, विचारक, प्रमुख आकर्षक व्यक्तित्व, विद्वान कुशाग्र बुद्धि, सुखी एवं उन्नतिशील जीवन जीने वाला होता है।

शनि ग्रह के कारक तत्वों की बात करें तो शनि ग्रह दुख, आपत्ती, विपत्ति, संपत्ति, एकांतवास, सन्यास, दार्शनिकता, नौकर चाकर, गरीबी, चोर, यातायात, पुलिस, कारावास से संबंधित ग्रह बताया गया है। ऐसा नहीं है कि हर किसी जातक की कुंडली में शनि ग्रह दुख परेशानी देता हुआ ही नजर आता है। यदि कुंडली में शनि की स्थिति सही है तो यह जातक को काफी आर्थिक लाभ भी प्रदान करता हुआ नजर आता है। लग्न के अंदर यदि शनि ग्रह बैठा हुआ है तो यह उस जातक को पूरा पूरा लाभ प्रदान करता हुआ नजर आता है। लग्न में बैठे शनि के कारण व्यक्ति की आंखें बड़ी बड़ी हो सकती हैं, उसके दांत काफी विशाल हो सकते हैं। हाथ पैर भी अन्य व्यक्ति की तुलना में बड़े हो सकते हैं। ऐसा जातक बहुत जल्दी गुस्सा करने वाला होता है लेकिन दिल से यह अच्छा होता है।

ज्योतिष में शनि ग्रह

ज्योतिष विद्या के अंदर ऐसा बोलना चाहता है कि कुंडली के बुरे घर में यदि शनि ग्रह बैठा हुआ हो तो यह अच्छा रहता है। कुंडली के बुरे घर छठा, आठवा और बारहवा घर होता है। इन घरों में यदि शनि बैठा है तो उससे प्राप्त होने वाले बुरे प्रभाव कम होते हैं। इसलिए बोला गया है कि इन तीन घरों में बैठा हुआ शनि जातक के लिए अच्छा ही साबित होता है। शनि के प्रभाव से कुंडली में साढ़ेसाती नजर आती है जो कि जातकों को परेशान करने का काम करती है। शनि का प्रभाव कहीं ना कहीं व्यक्ति के मन के ऊपर भी पड़ता हुआ नजर आता है। कमजोर शनि व्यक्ति के मन को कमजोर करता हुआ नजर आता है और ऐसा जातक जिसकी कुंडली में शनि सही जगह नहीं बैठा हुआ होता है, वह एकांत में जीवन बिताता हुआ नजर आता है।

शनि का मनुष्य पर प्रभाव

कुंडली के अंदर शनि की दृष्टि चंद्रमा के ऊपर नहीं पड़नी चाहिए। चंद्रमा यदि लग्न में बैठा है या फिर 10वे, 11वे घर में बैठा है और तब उसके ऊपर शनि की दृष्टि पड़ रही है तो ऐसे जातक को मनोबल और आत्मविश्वास संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में बोला जाता है कि शनि ग्रह यदि अपने घर में बैठे हो और अकेले बैठे हो तब यह अधिक लाभ प्रदान करते हुए नजर आते हैं। वही दूसरे ग्रहों पर शनि की दृष्टि अच्छी नहीं होती है। लग्न के ऊपर भी शनि की दृष्टि को सही नहीं माना जाता है। साथ ही साथ लग्न में यदि शनि बैठा हो तो ऐसा जातक गुस्सैल होता है। इस व्यक्ति को जल्दी जल्दी गुस्सा आता है उसी के कारण इसके काम बिगड़ते हुए नजर आते हैं लेकिन लग्न में होने के कारण शनि जातक को अचानक लाभ प्राप्त करवाता हुआ भी नजर आता है। जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ेगी उसी तरीके से शनि उस व्यक्ति को लाभ प्रदान करता हुआ दिखता है और 40 की उम्र के बाद अचानक ही उस व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती हुई नजर आती है। इसके बावजूद भी शनि को लेकर लगातार लोगों के मन में भय बना रहता है। लोगों को अक्सर शनि ग्रह से डरते हुए ही देखा है। सभी को ऐसा लगता है कि शनि ग्रह केवल और केवल जातक को परेशान करने का काम करता है। सच यह है कि शनि ग्रह से डरना नहीं चाहिए। बल्कि शनि कई बार कुंडली में जातक को बहुत अधिक धनवान बनाता हुआ नजर आता है। शनि ग्रह की मदद से अचानक ही कार्य में सफलता प्राप्त होने लगती है इसलिए ध्यान देना चाहिए कि कुंडली में शनि यदि बलवान नहीं है तो उसको बल प्रदान किया जाए।

शनि का वैदिक मंत्र ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।

शनि का तांत्रिक मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नमः।।

शनि का बीज मंत्र ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।

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ग्रह

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बुध ग्रह

बुध ग्रह सूर्य के समीप होने के कारण अधिक प्रकाशमान बताया गया है। यह सूर्योदय से कुछ पल पूर्व उदय होता है और सूर्यास्त के पश्चात अस्त होता हुआ नजर आता है। सूर्य के आसपास सदैव बुध रहता है अर्थात सूर्य से 28 अंक से अधिक दूर बुध कभी नहीं जा सकता और यह सौर परिवार का सबसे छोटा ग्रह बोला गया है।

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बृहस्पति ग्रह

बृहस्पति ग्रह को सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बोला गया है इसीलिए इस ग्रह को सभी ग्रहों का गुरू बोला गया है और यही कारण है कि बृहस्पति को इसी नाम से भी बुलाया जाता रहा है। गुरू के नाम से हम इसको पुकारते हैं। कुंडली में गुरु अगर सही जगह, शुभ स्थान पर हो तो जातक, विधि-धर्म एवं नीति का महान पंडित बन सकता है।

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शुक्र ग्रह

सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर अगर सौर परिवार का सबसे चमकदार एवं तेजस्वी ग्रह का जिक्र करें तो वह ग्रह शुक्र ग्रह बोला गया है। शास्त्रों में शुक्र ग्रह को कला, प्रेम सौंदर्य एवं आकर्षण की देवी बोला गया है।

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शनि ग्रह

दूसरे सभी ग्रहों से काफी दूर होने पर शनि एक सुंदर एवं विचित्र ग्रह बोला गया है। इसके चारों और तीन चक्र होते हैं जो सदैव एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से घूमते हुए नजर आते हैं। अन्य ग्रहों से इस ग्रह की यही एक विशेषता नजर आती है।

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राहु ग्रह

राहु ग्रह एक छाया ग्रह होता है। ज्योतिष शास्त्र में राहु ग्रह का अस्तित्व नजर आता है लेकिन दूसरी तरफ खगोलीय दुनिया में राहु ग्रह का कोई भी अस्तित्व नहीं है। विज्ञान के शब्दों में बोला जाए तो विज्ञान में राहु ग्रह को नहीं माना जाता है।

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सूर्य ग्रह

ग्रहों की बात करें तो ग्रहों में सूर्य को नंबर एक के स्थान पर रखा गया है। सूर्य को भानु, रवि, दिनकर, भास्कर, प्रभाकर, ग्रहपति आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है। सूर्य मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस का एक पिंड है।

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चंद्रमा ग्रह

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सौरमंडल में सूर्य के पश्चात दूसरा सबसे बड़ा पद चंद्रमा को दिया गया है। सूर्य की तरह से ही नक्षत्रों में चंद्रमा को राजा बताया गया है। चंद्रमा को मृगांक, निशानाथ, रजनीश, निशापति, रजनीपति, हिमांशु, सुधाकर आदि नामों से पुकारा जाता रहा है।

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केतु ग्रह

केतु को कठोर स्वभाव वाला, गलत राह पर चलाने वाला, एक पाप ग्रह बोला गया है। केतु को भी राक्षसों से जोड़कर देखा जाता रहा है और बोला गया है कि केतु के कारण ही जातक पाप के रास्ते पर बढ़ता हुआ नजर आता है। केतु को रहस्यमई एवं गुप्त षड्यंत्र के लिए प्रसिद्ध बताया गया है।

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मंगल ग्रह

मंगल ग्रह पृथ्वी का निकटवर्ती ग्रह है। पृथ्वी से समानता होने के कारण इसे भूपुत्र यानी कि पृथ्वी पुत्र भी बोला जाता रहा है। पाश्चात्य लोग मंगल को युद्ध का देवता बोलते आए हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे बल एवं पराक्रम का प्रतीक बोला गया है।

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आज का योग

पंचांग के अंदर 5 बातें बेहद महत्वपूर्ण होती हैं जिनमें से एक हैं योग। योग चंद्रमा और सूर्य की मदद से निर्धारित किए जाते हैं। जातक का जन्म जिस योग में होता हैं उसके अंदर उसी तरीके के गुण उपस्थित होते हैं। आप इसको सामान्य से शब्दों में इस तरीके से समझें कि योग 27 प्रकार के होते हैं और सूर्य और चंद्रमा के देशांतर के द्वारा योग की गणना की जाती है। जातक के ऊपर योग का बहुत गहरा प्रभाव बताया गया है जैसे कि जातक किस तरीके का काम करेगा, उसका व्यवहार किस तरीके से होगा, उसके अंदर किस तरीके के गुण उपस्थित होंगे इन्हीं सब बातों को देखने के लिए योग का विश्लेषण किया जाता है या आंकलन किया जाता है।

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त्यौहार

त्यौहार को अंग्रेजी में फेस्टिवल्स के नाम से जाना जाता है। त्यौहार हिंदू धर्म में और भारतवर्ष में सभी धर्मों के लिए महत्वपूर्ण स्थान निभाते हैं। त्यौहार खुशियों का सूचक हैं और जीवन में खुशियां लेकर आते हैं। त्यौहार जब भी आते हैं तो इसका एक ही अर्थ लगाया जाता है कि अब हमारे जीवन में खुशियां और सुख व समृद्धि आने वाली हैं। हम त्यौहार पर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं और उनको इस बात के लिए धन्यवाद अर्पित करते हैं कि उन्होंने हमें अभी तक जिस तरीके का भी जीवन दिया है जो भी खुशियां या दुख हमारे जीवन में दिए हैं यह सब उन्हीं की कृपा है।

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