अपरा एकादशी 2021
तिथि- 06 जून 2021
अपरा एकादशी में भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा का अर्थ है अपार से है। अपरा एकादशी को दो नामों से जाना जाता है, अजला और अपरा। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को यश, पुण्य, कीर्ति और धन की वृद्धि होती है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को ब्रहम हत्या के दोष से भी मुक्ति मिल जाता है। इस दिन श्री हरि विष्णु जी की तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल व मिष्ठान से पूजा करना अनिवार्य है। इस व्रत से दुसरों की स्त्री के साथ भोग करने वालों की, झूठी गवाही, असत्य भाषण, झूठी निंदा करना आदि सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
अपरा एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 06 जून
समय- 07 जून को प्रातः 05:22:43 से 08:09:35 तक
समयावधि- 2 घंटे 46 मिनट
अपरा एकादशी पूजा विधि
अपरा एकादशी सभी पापों से मुक्त करने वाले एकादशी है। मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्ति पाकर भवसागर से तैर जाता है। इस एकादशी को रखने के लिए इस विधि का पालन करना चाहिए ताकि व्रत के फल की पूर्ण प्राप्ति की जा सके।
चरण- 1 जो मनुष्य इस एकादशी का उपवास रखते हैं, उन्हें दसवीं की शाम से ही भोजन का त्याग कर देना चाहिए।
चरण- 2 दशमी की रात सोने से पहले ईश्वर को याद करना चाहिए।
चरण- 3 एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर भगवान विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।
चरण- 4 विष्णु जी की पूजा में तुलसी, चंदन, गंगाजल और फल अर्पित करना चाहिए।
चरण- 5 जो मनुष्य इस एकादशी का उपवास रखते हैं, उन्हें छल, कपट, झूठ, बुराई जैसी आदतों से इस दिन बचना अनिवार्य है।
चरण- 6 एकादशी के दिन विष्णु पुराण का पाठ अवश्य करना चाहिए।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
एकादशी के दिन चावल से बने किसी भी भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
व्रत वाले दिन तुलसी की पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए। अगर जरुरत हो तो एक दिन पहले ही तोड़कर रख लेना चाहिए।
एकादशी के दौरान दिन में सोना अशुभ माना जाता है।
किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए।
इस दिन घर में झाड़ू लगाना वर्जित है। माना जाता है कि झाड़ू लगाने से जीव हत्या हो सकती है।
अपरा एकदशी का महत्व
हिंदू ग्रंथों के अनुसार अपरा एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। गंगा नदी के किनारे पितरों को पिंडदान करने का जो फल प्राप्त होता है वहीं फल अपरा एकादशी का उपवास करने से मनुष्य को प्राप्त होता है। जो फल केदारनाथ, बद्रीनाथ और सूर्य ग्रहण में सोने का दान करने से मिलता है वही फल अपरा एकादशी के दिन उपवास रखने से मिल जाता है।
पौराणिक कथा
महीध्वज नाम का एक धर्म प्रिय राजा था। उसके छोटे भाई का नाम व्रजध्वज था। अपने भाई की प्रसिद्धि से इसको बड़ी ईर्ष्या थी यह अपने भाई के प्रति अपने मन में द्वेष भाव रखता था। अवसर पाकर एक दिन व्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके शव को वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। सही समय पर मृत्यु न होने के कारण उसकी आत्मा प्रेत बनकर उसी वृक्ष पर निवास करने लगती है। रास्ते से गुजरने वाले प्रत्येक मनुष्य को आत्मा परेशान करने लगी। कुछ समय पश्चात एक दिन एक महर्षि उस रास्ते से जा रहे थे। उन्होंने प्रेत को देखा और अपने योग साधना में तपोबल से प्रेत से उसके प्रेत बनने का कारण पूछा। मुनि ने उस प्रेत आत्मा को अपनी विद्या का उपयोय कर उसे प्रेत योनि से मुक्ति दिलाई। उसे मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी का उपवास किया और उस उपवास का पुण्य उस प्रेत को दे दिया। उस व्रत के प्रभाव से राजा प्रेत योनि से मुक्ति पाकर स्वर्ग में जाकर समय व्यतीत करने लगे।
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