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लाल किताब

ज्योतिष में लाल किताब के बारे में आपने जरूर सुना होगा लेकिन आप शायद ही जानते होंगे कि आखिर लाल किताब क्या है और ये ज्योतिष से किस प्रकार से जुड़ी है। आज हम आपको ज्योतिष के बारे में स्पष्ट तरीके से बताएंगे।

आइए जानते हैं....

जातक के जन्म के दारौन जिस भाव में ग्रह और नक्षत्र मौजूद होते हैं वो उसी भाव में जातक की जन्मकुंडली पर प्रभाव डालते हैं। मनुष्य पर ग्रहों के अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव पड़ते हैं। कोई भी मनुष्य अच्छे प्रभाव नहीं बल्कि वो बुरे प्रभाव जानना चाहता है जो उसके भविष्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। उन्हीं बुरे प्रभाव से बचने का सूत्र बताने वाली किताब को लाल किताब कहा गया है। लाल किताब के इतिहास के बारे में अलग-अलग तरह से बताया गया है।

  • माना जाता है कि लाल किताब नाम से एक ग्रंथ को 1939 में जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने लिखा था। रूपचंद जोशी ने उस किताब को ‘लाल किताब के फरमान’ नाम दिया था। उस लाल किताब को ऊर्दू भाषा में लिखा गया था मगर किताब में अरबी और फारसी शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया था।
  • साल 1940 में लाल किताब का संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों में प्रकाशित किया गया था जिसमें कुछ तथ्यों को ही शामिल किया गया था। बाद में 1941 में 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित की गई जिसमें सभी सूत्रों को बारिकी से बताया गया। इस तरह से इस किताब का कई बार संस्करण हुआ और अंतिम संस्करण 1952 का माना जाता है।
  • कुछ ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि लाल किताब को पराशर संहिता के काल नियम पर मनाया है। जबकि कुछ का मानना है कि लाल किताब अरूण संहिता है। दरअसल, पराशर संहिता ही ज्योतिष का एकमात्र ग्रंथ है।

लाल किताब की विशेषता

ये तो स्पष्ट है कि ये एक ज्योतिष से जुड़ा ग्रंथ है जिसमें जातक को ग्रहों के प्रभाव से बचने के उपाय बताएं जाते हैं। ये उपाय इतने आसान होते हैं कि कोई भी जातक आसानी से समझ भी सकता है और लाभ भी प्राप्त कर सकता है।

प्राचीन समय में किसी भी ग्रह के संबंधित समस्या से छुटकारा पाने के लिए टोटके का सहारा लिया जाता था। जिन्हें करने का ना तरीका स्पष्ट था और ना ही लाभ मिलने की गारंटी थी। मगर लाल किताब के आने से टोटको आदि को खत्मा हुआ और सही सूत्र जातक को बताएं गए।

लाल किताब के बारे में बहुत से भ्रम भी फैलाएं गए हैं मगर ये जानना जरूरी है कि उक्त विद्या भारतीय लोक परंपरा या लोक संस्कृति का हिस्सा होने के साथ-साथ इसका मूल वेद ही है। आपको बता दें कि उक्त किताब को प्रारंभ में भारतीय भाषा में नहीं लिखे जाने के कारण ही भ्रम की स्थिति फैल गई थी।

लाल किताब के बिरखे सूत्रों को संग्रहीत करने का काम एक सराहनीय कदम है। लाल किताब के उपायों को करने से पहले ये जानना बहुत जरूरी है कि जातक की क्या समस्या है। यानि कि उसकी कुंडली पर कौन-से ग्रह चाल का दुष्प्रभाव है। लाल किताब के अनुसार, किसी भी ग्रह नक्षत्र का प्रभाव जातक के शरीर पर पड़ता है तो उसी अनुसार ही उसके अच्छे या बुरे लक्षण शरीर पर नजर आते हैं। उक्त ग्रह के खराब या अच्छे होने के कारण व्यक्ति ही नहीं बल्कि उसके आसापास के वातावरण और वास्तु भी प्रभावित हो जाता है। 

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