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पंचांग


पंचांग का अगर संधि विच्छेद करके देखें तो यह पंच + अंग = पांच अंग यानि पंचांग बनता है। सामान्य शब्दों में पंचांग का अर्थ हिंदू धर्म के लोगों द्वारा माना जाने वाला एक कैलेंडर है। वर्तमान में हमारे घरों में जो कैलेंडर होते हैं वह पाश्चात्य सभ्यता के हैं लेकिन पंचांग को हिंदू धर्म का कैलेंडर बोला गया है जिसमें कि 5 महत्वपूर्ण चीज़े होती हैं और उन्हीं पांच चीजों की गणना के आधार पर कैलेंडर का निर्माण किया जाता है। हिंदू कैलेंडर में गणना रीति से पंचांग का निर्माण किया जाता है इसमें मुख्य रूप से तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन पांच बातों को शामिल किया जाता है और इन्हीं बातों के आधार पर पंचांग का निर्माण होता है। हिंदू पंचांग तीन अलग-अलग धाराओं बंटा   हुआ है, पहली धारा चंद्र आधारित होती है यानी चंद्रमा की इस तिथियों के आधार पर पंचांग का निर्माण होता है। दूसरी, नक्षत्र की स्थितियों को देखकर पंचांग का निर्माण होता है और तीसरी धारा सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति है।

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आज का पंचांग

हिंदू कैलेंडर के इतिहास की बात करें तो पंचांग में विक्रम संवत का बेहद महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है। विक्रम संवत को गणना के लिए सबसे सटीक कैलेंडर बोला गया। 75 ईसा पूर्व महान राजा विक्रमादित्य के काल में इस कैलेंडर का निर्माण किया गया था इसीलिए इसको विक्रम संवत कैलेंडर बोला जाता है। इसी कैलेंडर के अनुसार 12 महीने का 1 वर्ष और 7 दिन का 1 सप्ताह मानने का प्रचलन शुरू हुआ था लेकिन आज के भारत में ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता मिली हुई है।

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आज का राशिफल

हर व्यक्ति को यह जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती हैं कि उसके जीवन में आगे क्या होगा। कैसा उसका दिन बीतेगा,क्या अपने कार्यों को पूर्ण करने में सफल रहेगा की नहीं। शादी-विवाह,नौकरी,व्यवसाय,संतान और धन प्राप्ति से जुड़े बहुत से सवाल मन में उठते हैं। इनसे जुडी जिज्ञासाओं को कम करने के लिए चंद्र पर आधारित बारह राशियों का दैनिक,साप्ताहिक,मासिक और वार्षिक राशिफल आपके लिए यहाँ उपलब्ध हैं।

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 पंचांग में 12 महीने होते हैं और  प्रत्येक महीने में 15-15  दिन के दो पक्ष होते हैं जिनको शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के नाम से जाना जाता है। हर साल में दो अयनहोते हैं। इन 2 अयन में  27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं और 12 मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा जाता है जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन संक्रांति मनाई जाती है जबकि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण किया गया है। चंद्रमा के अनुसार वर्ष सूर्य वर्ष की तुलना में 11 दिन तीन घड़ी और 48 पल इसीलिए हर साल में इसमें एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास मलमास या पुरुषोत्तम मास का नाम दिया गया है।प्रत्येक महीने में 30 दिन होते हैं। चंद्रमा की कला के आधार पर ही शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को विभाजित किया जाता है। एक दिन को तिथि बोला जाता है जो पंचांग के आधार पर 19 घंटे से लेकर 24 घंटे तक की हो सकती है और दिन को 24 घंटे और  8 पहरों में बांटा गया है, एक पैर करीब 3 घंटे का होते है। 

पंचांग के पांच अंग 

हिंदू कैलेंडर जिसको कि पंचांग बोला गया है उसके अंदर पांच बातें मुख्य रुप से ध्यान करने योग्य हैं या फिर बोल सकते हैं कि 5 चीजों को मिलाकर पंचांग का निर्माण होता है और यह पांच चीजें हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण तो आइए पंचांग के अंगों के बारे में जानते हैं किस तरीके से यह काम करते हैं और इनको किस तरीके से पंचांग में इस्तेमाल किया जाता है।

तिथि

चंद्रमा की एक कला को तिथि कहते हैं। चंद्रमा और सूर्य के अंतरको राशि के मान 12 अंशों का होने से एक तिथि का निर्माण होता है। जब अंतर 180 अंशु का होता है तो उस समय पूर्णिमा बोली जाती है और जब यह अंतर जीरो या 360 अंशों का होता है तो उस समय को अनावश्यक बोला जाता है। एक मास में लगभग 30 तिथि होती हैं जिसमें कि  15 कृष्ण पक्ष की और 15 तिथि शुक्ल पक्ष की, इनके नाम हैं 1 प्रतिपदा, 2 द्वितीया, 3 तृतीया, 4 चतुर्थी, 5 पंचमी, 6 षष्ठी, 7 सप्तमी, 8 अष्टमी, 9 नवमी, 10 दशमी, 11 एकादशी, 12 द्वादशी, 13 त्रयोदशी, 14 चतुर्दशी और 15 पूर्णिमा, यह शुक्ल पक्ष कहलाता है। इसी तरीके से 14 तिथि कृष्ण पक्ष में होती हैं अंतिम तिथि पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या बोली जाती है। 

वार

एक सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक की जो अवधि होती है उसे उभार कहते हैं यानी कि दिन कहते हैं जबकि वार सात होते हैं, रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार।

नक्षत्र

तारों का जो एक समूह होता है उसे नक्षत्र बोला जाता है जिनको संख्या 27  हैं। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 9 चरणों के मिलने से एक राशि बनती है। 27 नक्षत्रों के नाम अलग-अलग है जो कि इस प्रकार से हैं 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्र्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. अश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तराफाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ 21. उतराषाढ 22. श्रवण 23. घनिष्‍ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वाभद्रपद 26. उत्तराभाद्रपद 27. रेवती। 

योग

पंचांग में योग का निर्माण सूर्य और चंद्रमा के सहयोग से होता है और यह  27 प्रकार के होते हैं ,इनके नाम इस प्रकार से हैं 1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सुकर्मा, 8.घृति, 9.शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्रव, 13. व्याघात, 14. हर्षल, 15. वङ्का, 16. सिद्धि, 17. व्यतीपात, 18.वरीयान, 19.परिधि, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्म, 26. ऐन्द्र, 27. वैघृति। 

करण 

तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं यानी कि एक तिथि में इस प्रकार से दो करण होते हैं करण के नाम इस प्रकार हैं 1. बव, 2.बालव, 3.कौलव, 4.तैतिल, 5.गर, 6.वणिज्य, 7.विष्टी (भद्रा), 8.शकुनि, 9.चतुष्पाद, 10.नाग, 11.किंस्तुघन। 

पंचांग के अंदर शुभ मुहूर्त देखने का एक पुराने समय से रीति-रिवाज चलता हुआ आ रहा है और उसके अनुसार हर रोज हम पंचांग के अंदर शुभ मुहूर्त देखते हैं और इसी शुभ मुहूर्त की मदद से अपने काम करते हुए नजर आते हैं। पंचांग ही हमें बताता है कि आज कौन सा शुभ मुहूर्त लग रहा है। पंचांग के अंदर शुभ मुहूर्त का निर्माण करने के लिए पांच चीजों के ऊपर नजर रखी जाती है, यह पांच चीजें या पांच तत्व ही शुभ मुहूर्त का निर्माण करते हुए नजर आते हैं। किसी अच्छे समय का चयन करके कोई काम किया जाए तो उसको शुभ मुहूर्त में किया गया काम कहते हैं और मुहूर्त के बिना कोई भी काम अधूरा सा रह जाता है। पंचांग का अर्थ हमने जैसे कि आपको ऊपर बताया जिसमें 5 अंग होते हैं जैसे तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण इन्हीं से मिलकर पंचांग का निर्माण होता है। पंचांग में शुभ योग को दर्शाया जाता है जिसे मुहूर्त कहते हैं और मुहूर्त का निर्माण करने वाले पांच तत्व पंचांग में मौजूद होते हैं जिनके बारे में हम आपको बताने वाले हैं 

चंद्रमा और मुहूर्त

शुभ मुहूर्त के लिए चंद्रमा का विशेष महत्व रखा गया है कोई भी काम करने से पहले चंद्रमा के ऊपर विचार किया जाता है। चंद्रमा की स्थिति को जानने के लिए सामान्य से शब्दों में आप केवल यह देख लीजिए कि गोचर का चंद्रमा जातक की जन्म राशि से चौथा, आठवां और बारवा नहीं होना चाहिए यदि ऐसा होता है तो वह अशुभ माना जाता है और ऐसे समय में शुभ कार्य नहीं किए जाते। 

अमृत योग

रविवार- हस्त, सोमवार- मृगशिरा, मंगलवार- अश्विनी, बुधवार- अनुराधा, गुरुवार- पुष्य, शुक्रवार- रेवती, शनिवार- रोहिणी 

ऊपर आप वार देख रहे हैं और उसके साथ नक्षत्र लिखे हुए हैं यदि इसी तरीके से समान रूप से लिखे हुए नजर आए तो इसको अमृत योग बोला जाता है और  इस योग में कोई भी काम करना अति शुभ बोला गया है। 

रवि पुष्य योग 

रविवार को योग पुष्य नक्षत्र का संयोग रवि पुष्य योग का निर्माण करता है तो यह सबसे अच्छा योग बोला गया है इस समय में किसी भी तरीके के काम कर ली जाए वह शुभ फल देते हैं।

गुरु पुष्य 

यह योग गुरुवार के दिन होता हैं यदि पुष्य नक्षत्र गुरु पुष्य योग का निर्माण करता है तो यह योग व्यवसाय के लिए काफी अच्छा बताया गया है। 

चौघड़िया मुहूर्त

चौघड़िया मुहूर्त उस समय काम में लिया जाता है जब किसी भी तरीके का कोई अच्छा योग या विशेष योग नहीं बन रहा है और किसी काम को करना बेहद आवश्यक है तो उस स्थिति में चौघड़िया मुहूर्त  की मदद ली जाती है जो कि हमेशा डेढ़ घंटे का होता है इस दौरान राहुकाल का त्याग किया जाता है और लाभ अमृत शुभ चंचल यह चौघड़िया शुभ मुहूर्त माने जाते हैं। 

अभिजीत मुहूर्त

स्थानीय समय के अनुसार दोपहर के 11:00 बजकर  45 मिनट से 12:00 15 मिनट के मध्य यह मुहूर्त बनता हुआ नजर आता है और अभिजीत मुहूर्त भी उसी स्थिति में निकाला जाता है जब कोई विशेष संयोग नहीं बन रहा होता तो  इस मुहूर्त में सभी काम करने शुरू कर दिए जाते हैं।

 एस्ट्रो ओनली  की इस पंचांग सेवा के अन्दर आप आज का पंचांग,  आज का शुभ मुहूर्त,  आज का वार,  आज का चौघड़िया,  आज का शुभ योग,  आज का राहुकाल, आज का शुभ होरा,  धर्म और त्योहार,  मासिक पंचांग  और सालाना पंचांग के बारे में आसानी से जानकारी ले सकते हैं। -

1. आज का पंचांग

2. आज का शुभ मुहूर्त

3. आज का वार

4. आज का चौघड़िया

5. आज का शुभ योग

6. आज का राहु काल

7. आज का शुभ होरा

8. पर्व और त्यौहार

9. मासिक पंचांग 

10. सालाना पंचांग

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आज की तिथि

ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा के बीच की दूरी मापने को ही तिथि बोला जाता है। सूर्य और चंद्रमा के बीच जो दूरी होती है या जो दूरी बन रही होती है उसी को तिथि कहते हैं। दूसरे शब्दों में तिथियां हमें यह भी बताती है कि चंद्रमा और सूर्य की किस समय कितनी दूरी रहने वाली है जिसके आधार पर राशिफल, पंचांग आदि का निर्माण किया जाता है। इस बात को थोड़ा और सामान्य शब्दों में बता दें तो पृथ्वी, सूर्य के चारों ओर घूमती है और चंद्रमा, पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा होता है इस बीच पृथ्वी से सूर्य और चंद्र कभी तो एक ही डिग्री पर उपस्थित होते हैं तो कभी 180 डिग्री पर मौजूद होते हैं जब दोनों एक ही डिग्री पर दिखाई देते हैं तब अमावस्या होती है और जब 180 डिग्री का अंतर होता है तब पूर्णिमा घोषित की जाती है यह दोनों ही घटनाएं महीने में एक बार होती हुई नजर आती हैं। 30 दिनों में एक बार अमावस आती है और 30 दिनों में एक बार पूर्णिमा होती है। अमावस्या पूर्णिमा के बीच जो समय लगता है और ऐसा ही पूर्णिमा से अमावस के बीच जो समय होता है उस उस समय के अंतर को बताने वाली थी तिथि कहलाती है। पूर्णिमा और अमावस्या पूर्णिमा की ओर जाने को शुक्ल पक्ष बोला जाता है। साधारण भाषा में जब चंद्रमा बढ़ता है उन दिनों को शुक्ल पक्ष बोलते हैं और चंद्रमा जब घट रहा होता है तो उसको कृष्ण पक्ष बोलते हैं।

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आज का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में कोई भी काम करने से पहले उस काम का मुहूर्त देखा जाता है कि किस समय में हमें कुछ काम करना है या फिर ऐसा बोले कि जिस समय या जिस दिन हम कुछ नया काम करना चाहते हैं तो उस दिन किस समय नक्षत्रों की स्थिति और चंद्रमा की स्थिति हमारे काम के अनुकूल होगी तो उसको देखकर शुभ मुहूर्त निकाला जाता है, इसके साथ ही मुहूर्त के बिना किए जाने वाले काम को सही नहीं बताया गया है और ज्योतिष विद्या के अनुसार शुभ मुहूर्त में किए गए काम का फल भविष्य में व्यक्ति को शुभ प्राप्त होता है। और यदि खराब समय में कोई काम किया जाए तो भविष्य में उसके हानिकारक परिणाम देखने को मिलते हैं इसीलिए मुहूर्त का महत्व बहुत अधिक बताया गया है। हिंदू कैलेंडर में मुहूर्त का अलग से स्थान रखा गया है पंचांग में हर दिन मुहूर्त के बारे में बताया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में मुहूर्त  इसलिए नहीं बताया जाता है क्योंकि उनके यहां मुहूर्त जैसी कोई भी चीज या ऐसा कोई विज्ञान मौजूद नहीं है जो कि दिन में नक्षत्र या फिर चंद्रमा की गति के अनुसार मुहूर्त का निर्माण कर सकें  इसलिए पंचांग में और खासकर हिंदू कैलेंडर में शुभ मुहूर्त का अलग से स्थान होता है और हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हमेशा से ही शुभ मुहूर्त में काम करते हुए नजर आते हैं।

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आज का राहू काल

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है राहु काल में कोई भी काम करना अच्छा नहीं बताया गया है। राहु काल का यदि आप चित्र देखेंगे तो उसके अंदर आपको सिर पर सर्प दिखेगा। उस सांप से ही समझा जा सकता है कि यह काल  मनुष्य के लिए अच्छा नहीं है यदि इस समय में कोई भी शुभ काम किया जाएगा तो उसके परिणाम अच्छे प्राप्त नहीं होंगे। यह परिणाम सकारात्मक कार्यों के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं बोला गया है। राहु काल के लिए हमारे वेदों में अलग से व्याख्यान लिखा गया है और  पंचांग में भी राहुकाल का विशेष उल्लेख है और राहु काल को लेकर पंचांग में बोला गया है कि इस समय में कोई भी शुभ काम शुरू नहीं करना चाहिए और यदि कोई जातक राहु काल में कोई काम शुरू करता है तो उसके विपरीत परिणाम मनुष्य को प्राप्त होते हैं।

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आज का करण

 पंचांग के अंदर करण का विशेष महत्व होता है। बिना करण के शुभ मुहूर्त नहीं निकाले और देखे जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अच्छा और शुभ काम करना चाहता है जैसे कि घर लेना चाहता है, बच्चे का नामकरण करना चाहता है, शादी करना चाहता है तो सभी कार्यों में करण को देखा जाता है और इसके बाद ही शुभ मुहूर्त का आकलन किया जाता है। कुछ करण ऐसे बताए गए हैं जिनमें की किसी भी तरीके के शुभ कार्य किए जा सकते हैं और कुछ करण ऐसे होते हैं जिनके अंदर किसी भी तरीके का अच्छा कार्य करना शुभ नहीं बताया गया है, इनको वर्जित बोला गया है जैसे कि भद्रा में किसी भी तरीके का शुभ कार्य करना वर्जित बोला गया है। इस समय में यदि कोई जातक शुभ काम करेगा तो उसके दुष्परिणाम सामने आते हुए दिखेंगे।

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आज का नक्षत्र

आकाश में सूर्य के चारों तरफ जो ब्राह्मण का मार्ग बनता है, उसको क्रांति व्रत कहते हैं इसी के चारों तरफ ग्रह व चक्र घूमते हुए नजर आते हैं। क्रांति व्रत में प्रकाश पुंज तारों के 12 समूह होते हैं इनको राशि चक्र कहते हैं। यह ग्रहों की एक पट्टी होती है जो 12 राशियों में विभक्त होती है। प्रत्येक राशि की अपनी विशेषता अपना महत्व होता है उसी तरीके से 12 राशियों में कुल 27 नक्षत्र होते हैं। नक्षत्र तारों का ही एक समूह होता है लेकिन यह साधारण तारों की भांति टिमटिमाते नहीं है लेकिन लगातार चमकते रहते हैं। इनको नक्षत्र बोला गया है। एक नक्षत्र में कई कई तारे या उनके समूह होते हैं जो मिलकर आकृति बनाते हैं। उसी के अनुसार राशियों के नाम रखे गए हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि राशियां 12 होती हैं और नक्षत्र 27 होते हैं, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। इस प्रकार कुल नक्षत्र चरण 108 बताए गए हैं। एक राशि के अंदर 2-1/4 नक्षत्र यह 9 नक्षत्र चरण बताए गए हैं।

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आज का वार

पंचांग के अंदर वार यानी कि दिन होता है। पंचांग में सात वार का जिक्र किया गया है जिनमें कि रविवार, सोमवार मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार शामिल है। सप्ताह के अंदर जो भी दिन होते हैं इनको वार के रूप में जाना जाता है। सूर्योदय से लेकर सूरज ढलने तक का जो समय होता है उसको वार या दिन बोला जाता है। हर दिन या वार का एक देवता निर्धारित है जो कि उस दिन को जातक या व्यक्ति के लिए खास बनाता है। सदियों से ही दिन और देवता दोनों एक साथ पूजे जाते रहे हैं। कौन सा दिन शुभ है या कौन सा वार शुभ है इसका निर्धारण पंचांग के द्वारा ही होता है। पंचांग में ग्रहों की चाल स्थिति और सूर्य-चंद्रमा की चाल को देखकर इस बात का पता लगाया जाता है कि दिन में कौन सा समय अच्छा होने वाला है। सप्ताह में कितने दिन और कौनसे दिन पर कौनसे भगवन को पूजा जाता हैं इसके लिएएक-एक कर जानते हैं।

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आज का योग

पंचांग के अंदर 5 बातें बेहद महत्वपूर्ण होती हैं जिनमें से एक हैं योग। योग चंद्रमा और सूर्य की मदद से निर्धारित किए जाते हैं। जातक का जन्म जिस योग में होता हैं उसके अंदर उसी तरीके के गुण उपस्थित होते हैं। आप इसको सामान्य से शब्दों में इस तरीके से समझें कि योग 27 प्रकार के होते हैं और सूर्य और चंद्रमा के देशांतर के द्वारा योग की गणना की जाती है। जातक के ऊपर योग का बहुत गहरा प्रभाव बताया गया है जैसे कि जातक किस तरीके का काम करेगा, उसका व्यवहार किस तरीके से होगा, उसके अंदर किस तरीके के गुण उपस्थित होंगे इन्हीं सब बातों को देखने के लिए योग का विश्लेषण किया जाता है या आंकलन किया जाता है। 

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त्यौहार

त्यौहार को अंग्रेजी में फेस्टिवल्स के नाम से जाना जाता है। त्यौहार हिंदू धर्म में और भारतवर्ष में सभी धर्मों के लिए महत्वपूर्ण स्थान निभाते हैं। त्यौहार खुशियों का सूचक हैं और जीवन में खुशियां लेकर आते हैं। त्यौहार जब भी आते हैं तो इसका एक ही अर्थ लगाया जाता है कि अब हमारे जीवन में खुशियां और सुख व समृद्धि आने वाली हैं। हम त्यौहार पर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं और उनको इस बात के लिए धन्यवाद अर्पित करते हैं कि उन्होंने हमें अभी तक जिस तरीके का भी जीवन दिया है जो भी खुशियां या दुख हमारे जीवन में दिए हैं यह सब उन्हीं की कृपा है।

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ज्योतिष के क्षेत्र में शानदार सेवाओं के कारण एस्ट्रो ओनली एक तेजी से प्रगतिशील नाम है। एस्ट्रो केवल ज्योतिष के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है। प्रामाणिक और सटीक भविष्यवाणियों और अन्य सेवाओं के कारण इस क्षेत्र में हमारा ब्रांड प्रमुख होता जा रहा है। आपकी संतुष्टि हमारा उद्देश्य है। अपने जीवन में सकारात्मकता और उत्साह को बढ़ाकर आपकी सेवा करना हमारा प्रमुख लक्ष्य है। ज्योतिष के मूल्यवान ज्ञान की मदद से हमें आपकी सेवा करने का मौका मिलने पर खुशी होगी।

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