अश्वनी पूर्णिमा 2021: व्रत विधि और पूजन
अश्वनी मास की पूर्णिमा कई मायनों में खास और महत्वपूर्ण है। इस पूर्णिमा पर चांद अपनी सोलह कलाओं में होता है। जिससे इस दिन को बहुत शुभ माना गया है। अश्वनी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कुन्नर और कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन को फसल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। ये मानसून के अंत का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार, माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा से निकालने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की शक्ति होती है। जिसके भी शरीर पर पूर्णिमा के चांद की रोशनी पड़ती है। उसका शरीर रोग रहित हो जाता है। माना जाता है कि पूर्णिमा की रात को आकाश में अमृत वर्षा होती है इसलिए ही इस पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर खुले आकाश के नीचे रख दी जाती है। जिससे चंद्रमा की किरणें खीर पर पड़ने से खीर अमृत के समान हो जाती है। इसमें रोगों को हरने की क्षमता होती है। खीर को सभी में बांटकर खाया जाता है। आइए जानते हैं कि अश्वनी पूर्णिमा कब है और इस पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि किस प्रकार है
अश्वनी पूर्णिमा: 20 अक्टूबर, बुधवार
शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा आरंभ: 19:05 (19 अक्टूबर)
पूर्णिमा समाप्त: 20:28 (20 अक्टूबर)
अश्वनी पूर्णिमा का महत्व
लोग इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। हिंदू शास्त्र के अनुसार, कहा जाता है कि धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी का जन्म अश्विनी पूर्णिमा के दिन हुआ था। जो भी इस दिन का व्रत करते हैं उस पर माता लक्ष्मी असीम कृपा करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं में पैदा हुए थे। जिससे ब्रज और मथुरा में लोग इस दिन को रास पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं और इस दिन श्रद्धा और लगन के साथ भगवान श्री कृष्ण का पूजन करते हैं।
कई जगह पर इस व्रत को कुंवारी कन्याएँ अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए रखती है। व्रत के प्रभाव से अच्छा और सुंदर वर मिलता है।
इस दिन जो भी व्रत रखता है उसके घर पर माता लक्ष्मी पर भी धन-धान्य की कमी नहीं होने देती हैं।
शरद पूर्णिमा के व्रत पर भगवान शिव और मां पार्वती का पूजन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
कैसे करें शरद पूर्णिमा का व्रत
इस दिन सुबह-सुबह जल्दी उठकर नदी या सरोवर में स्नान करें और पूर्णिमा का व्रत करने का मन ही मन संकल्प लें।
व्रत की पूजा घर या मंदिर कहीं भी कर सकते हैं।
घर के पूजा स्थल पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर उनका विधिवत पूजन करें।
पूजन के लिए चुन्नरी, दीप, धूप, सुपारी, पान, फूल, चावल, वस्त्र, इत्र, सफेद मिठाई या पंचमेवा का प्रसाद रखें।
सबसे पहले माता लक्ष्मी की मूर्ति पर गंगाजल के छीटे दें और माता लक्ष्मी का रोली से तिलक करें
बाद में माता को फूल, पान, सुपारी अर्पित करें।
उसके बाद माता लक्ष्मी की आरती करके उन्हें पंचमेवा या सफेद मिठाई का भोग लगाएं और अपने व्यवसाय की तरक्की के लिए प्रार्थना करें।
शरद पूर्णिमा पर रात को जागकर जगराता किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि माता लक्ष्मी शरद पूर्णिमा पर सभी के घर आती हैं और जो उस दिन रात में जगा होता है माता लक्ष्मी उसके घर को धन-धान्य और शुभ-लाभ से भर देती हैं।
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