देवशयनी एकादशी 2021
तिथि- 20 जुलाई 2021
देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी या विष्णुशयन एकादशी कहते है। यह एकादशी आषाढ़ी मास के शुक्ल पक्ष में होता है। भगवान के शयन की प्रारम्भिक अवस्था को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। चतुर्मासा की शुरुआत भी इस एकादशी से हो जाती है। यह एकादशी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस एकादशी के व्रत के साथ ही सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर पूर्णविराम लग जाता है। इसके बाद अगले चार माह तक किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों को नहीं किया जाता क्योंकि इस दौरान भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में होते है।
आषाढ़ी एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 20 जुलाई
समय- 21 जुलाई को प्रातः 05:35:57 से 08:20:29 तक
समयावधि- 2 घंटे 44 मिनट
आषाढ़ी एकादशी पूजा विधि
आषाढ़ी एकादशी में इस विधि का पालन करना अनिवार्य हो जाता है-
चरण- 1 आषाढ़ी एकादशी से पूर्व दशमी पर उठकर विष्णु भगवान के आगे माथा टेकना चाहिए।
चरण- 2 सुबह स्नान करने के लिए जिस पानी का उपयोग करें उसमें थोड़ा सा गंगाजल मिला लें।
चरण- 3 स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लें।
चरण- 4 जल का अर्घ्य भगवान सूर्य को चढ़ाएं।
चरण- 5 जल अर्घ्य करने के पश्चता विष्णु भगवान की पूजा फल, दूध, दही, अमृत से करना चाहिए। यह पूजा सुबह और शाम दोनों बार करना चाहिए।
चरण- 6 भगवान को पीली वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए।
चरण- 7 अगले दिन भी प्रातः स्नान के पश्चात भगवान की पूजा कर अपना व्रत समाप्त करें।
व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-
व्रत के दौरान मीठी चीजों का नहीं खाना चाहिए।
दूध तथा उससे बनाई गई वस्तुओं को बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।
आरोग्य शरीर प्राप्त करने के लिए किसी भी तरह के तली-भूनी चीजों को न ग्रहण करें।
धातु के बर्तनों को त्यागना चाहिए तथा उसके स्थान में पातल का प्रयोग भोजन ग्रहण करने के लिए करना चाहिए।
व्रत के दिन द्वेष, छलकपट, काम और वासना से दूर रहें।
सूर्यास्त के समय सोने से बचें।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने नारद जी को इसकी महत्वा बताते हुए एक कथा सुनाई। यह कथा सतयुग के समय पर आधारित थी। सतयुग में एक राजा मान्धाता राज करता था। मान्धाता का राज्य बहुत ही सुखी था। किसी भी तरह की कोई कमी नहीं था। प्रजा भी राजा के काफी खुश थी लेकिन एक ऐसा समय आया जब इस राज्य की खुशियों को ग्रहण लग गया। राज्य को भयंकर अकाल का सामना करना पड़ा। राजा ने इस अकाल के कारणों को जानने का प्रयास किया पर उसे समझ नहीं आया कि इसके पीछे की वजह क्या है। अकाल के कारण उसने धार्मिक कार्यों जैसे दान, हवन, पूजा सब में कमी करनी शुरु कर दी। लेकिन इससे स्थिति और भी बेकार होती चली गई।
राजा को जब अंत तक कुछ समझ नहीं आता तो उसने इसका उपाय ढ़ूढ़ने का रास्ता खुद ही निकालने का सोचा और इसी विचार के साथ वह अपने जंगल की ओर प्रस्थान कर गया। राजा के मन में बार बार एक ही सवाल था कि उनके किस गलती की सजा भगवान पूरे राज्य को दे रहा है। इस समस्या का समाधान ढ़ूढ़ते हुए वह ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। राजा ने अपना परिचय देते हुए अपनी सारी व्यथा ऋषि को बता दी। तब ऋषि ने उन्हें देवशयनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा ने उचित विधियों का पालन करते हुए इस एकादशी के व्रत को रखा जिसके बाद उस राज्य की सुखियां वापस आ गई और वह राज्य फिर खुशहार और रहा-भरा हो गया।
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