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माँ कूष्माण्डा - नवरात्र का चौथा दिन माँ दुर्गा के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजा विधि - Astroonly.com


Sunday, 11 April 2021
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नवरात्रों के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में ऐसा बोला गया है कि जब भी सृष्टि की रचना हुई थी तो उस समय चारों तरफ अंधकार का साम्राज्य था तब देवी कुष्मांडा द्वारा ब्रह्मांड का जन्म हुआ था। अतः इसलिए इनको कूष्माण्डा के रूप में सदियों से जाना जाता रहा है। इस देवी का निवास सूर्यमंडल के मध्य में होता है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित करती हुई नजर आती हैं।

इनके बारे में बहुत सारी बातें शास्त्रों में लिखी गई हैं जिनमें से एक यह भी है कि यही वह देवी है जो कि अपने उपासक और व्यक्ति के जीवन में उजाला डालती हुई नजर आती हैं। यदि यह देवी रूठ जाए और किसी जातक से नाराज हो जाए तो जातक के जीवन में अंधेरा छा जाता है। इसलिए नवरात्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की विशेष रूप से पूजा उपासना की जाती है। देवी कूष्माण्डा को अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। इनको अष्टभुजा के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इनके आठ हाथ बताए गए हैं। इन हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र एवं  माला लिए हुए यह नजर आती हैं।

कूष्माण्डा माता की विशेष रूप से नवरात्रों में यदि पूजा की जाए तो माता अपने उपासक के जीवन में रिद्धि सिद्धि प्रदान करने वाली होती हैं। देवी, सिंह के ऊपर सवार होती हैं। यह अपने भक्तों की हर तरीके की मुसीबत में रक्षा करती हुई नजर आती हैं। चौथे दिन इनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है। माता के पूजन से भक्तों के समस्त प्रकार के कष्ट, शोक, संताप आदि का अंत होता हुआ नजर आता है और उपासक लंबी आयु प्राप्त करता हुआ दिखता है। 

 

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मां दुर्गा की कुष्मांडा स्वरूप की पूजा विधि 

 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

चौथे दिन मां की विशेष रूप से पूजा की जाती है। सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी की पूजा करनी चाहिए। स्नानादि से जब आप फ्री हो जाएं तो आपको माता के सामने बैठना चाहिए। माता की चौकी को साफ करना चाहिए। तत्पश्चात कलश और उसमें उपस्थित देवी की पूजा शुरू करनी चाहिए। सर्वप्रथम कूष्माण्डा देवी की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आप दूसरी देवियों की पूजा कर सकते हैं। माता को सबसे पहले फूल चढ़ाएं। माता का घी का दिया जलाए और उनको प्रणाम करें और उनको आसन ग्रहण करने के लिए मंत्रों से मनाना चाहिए। व्रत पूजन का संकल्प लें। माता की पूजा में चंदन, रोली हल्दी, दुर्बा, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प, हार, सुगंधित द्रव्य, धूप, फल का प्रयोग करें। 

आरती और कथा करने के बाद माता को भोग लगायें और उसके बाद विशेष मन्त्रों से माता की आराधना करनी चाहिए। अंत में माता का ध्यान लगाना चाहिए।

 

ध्यान

 

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

 

स्तोत्र पाठ

 

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

 

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