प्रीमियम ज्योतिषियों से बात करें
अभी कॉल करे

गीता सार हिंदी में | Geeta Saar in Hindi - Astroonly


Tuesday, 29 March 2022
Geeta saar

गीता सार हिंदी में | Geeta Saar in Hindi

 

दुनिया का सबसे बड़ा धर्म युद्ध महाभारत में कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर उस समय के दौरान भगवान अपने शिष्य अर्जुन को कुछ बातें समझाई थी जिसे हम गीता सार भी कहते हैं।  लगभग 5000 साल से भी ज्यादा का वक्त महाभारत के युद्ध को बीत चुका है लेकिन आज भी लोग भगवतगीता के सार को उतना ही महत्व देते हैं तो चलिए आगे बढ़ते हैं-

 

गीता का सार | Geeta Saar 

 

व्यर्थ की चिंता क्यों करते हो ,और व्यर्थ में ही डरते हो ,तुम्हें कौन मार सकता है, आत्मा ना पैदा होती है ना ही मरती है। 

जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छा ही है, जो होगा ,वह भी अच्छा ही होगा ,जो बीत गया उसका तुम पछतावा  ना करो और भविष्य की चिंता भी ना करो ,अभी तो वर्तमान चल रहा है।

इस युद्ध में तुम्हारा क्या गया , जो तुम रो रहे हो, तुम क्या लेकर आए थे ,जो खो दिया तुमने ,क्या तुमने पैदा किया था, जो खो दिया तुमने , तुम ना कुछ लेकर आए थे, ना कुछ लेकर जाओगे, जो कुछ लिया था वह यही से लिया था, जो दिया यहीं पर दिया, जो कुछ भी तुम्हें मिला वह भगवान से मिला ,जो तुमने दिया वह भी भगवान को ही दिया।  

तुम खाली हाथी यहां पर आए थे,  खाली हाथी जाओगे ,जो आज तुम्हारे पास है,  वह कल किसी और के पास होगा , परसों किसी और के पास ही होगा , तुम इसे सत्य समझ कर खुश रहो , बस यही बात तुम्हें अंदर से खुश कर सकती है। 

परिवर्तन ही तो संसार का नियम है,  जिसे तुम मृत्यु समझते हो वही तो एक नया जीवन है, इस संसार में तुम एक ही क्षण में करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, तो वही दूसरे सर दरिद्र एबी बन जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, इन सब चीजों को अपने मन से निकाल दो तो फिर सब कुछ तुम्हारा है, तुम इन सब के हो-

यह शरीर भी तुम्हारा नहीं है, नहीं तुम इस शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश इन सब चीजों से मिलकर सरीर बना है आखिरकार इन सब में ही मिल जाएगा लेकिन यह आत्मा स्थिर  है।

 

और तुम क्या हो ?

तुम्हें अपने आपको भगवान के सहारे छोड़ देना चाहिए,  तुम्हारे लिए यही सबसे उत्तम उपाय है जो उनके सहारे को जाता  है वह भय ,चिंता ,शोक से दूर और मुक्त हो जाता है.


 

महाभारत के गीता उपदेश

 

हिंदी साहित्य और पुराणों में दो प्रमुख महाकाव्य बहुत प्रचलित है  जिनमें से पहला है रामायण और दूसरा है भगवत गीता।  यह हिंदी मान्यताओं के अनुसार पवित्र ग्रंथों में से एक है-

आज हम हमारे इस लेख में बात करने जा रहे हैं श्री भगवत गीता के उपदेशों के बारे में  महाभारत के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध के दरमियान अपने शिष्य अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे. जिसके वजह से अर्जुन के लिए युद्ध जितना आसान हो गया था।  गीता के उपदेश को जीवन का सार या जीवन के उपदेश भी कहा जाता है-

वही अगर आप हिंदू धर्म के अनुसार महा ग्रंथ के उपदेशों को अपने जीवन मैं भी लागू करेंगे तो आपका जीवन बहुत ही आसान हो जाएगा।

इसके साथ साथ ग्रंथ में जीवन की सच्चाई और मनुष्य धर्म से जुड़े हुए कुछ बातें भी बताई गई है. कई बार ऐसा भी होता है कि हमें  अपनी समस्या का समाधान नहीं मिल पाता और हम विपत्ति के समय बहुत ही परेशान हो जाते हैं. कई लोग तो अपने गुस्से पर अपना आपा खो बैठते हैं या फिर अपनी समस्या के से विचलित होकर भाग पड़ते है। ऐसे में गीता  में दी के उपदेश हमारे जीवन की सारी समस्याओं चुटकी में हल कर सकती है।  और हमें अपने जीवन जीने के लिए एक बेहतर कला सिखाती है। साथ ही अपने जीवन में सफल होने की प्रेरणा भी देती है.

महाभारत के युद्ध के दरमियान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश बताएं जिसे सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

गीता के उपदेश नहीं  केवल अर्जुन के लिए थे बल्कि यह संपूर्ण मानव प्रजाति के लिए है।  मनुष्य के जीवन में सफलता पाने के लिए भगवत गीता में दिए गए उपदेश एक मंत्र की तरह काम कर सकते हैं।

आइए तो अब जानते हैं गीता सार के बारे में जो इंसान के अंदर चल रही उठापटक को शांत करके उन्हें सफल जीवन जीने के लिए मदद करती है-

 

मानव शरीर अस्थायी और आत्मा स्थायी है-

 

भगवत गीता के एक श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने मानव शरीर की तुलना एक कपड़े के टुकड़े से की है. मतलब मनुष्य शरीर एक ऐसा कपड़ा है जिसे आत्मा अपने हर जन्म में बदलती रहती है। इसका मतलब मनुष्य का शरीर आत्मा के लिए एक अस्थाई वस्त्र की तरह  है जिसे उसे अपने हर जन्म में बदलना पड़ता है।

गीता का यह उपदेश हमें यह सिखाता है कि हमें मनुष्य के आत्मा से प्यार करना चाहिए। उनकी पहचान उनके आत्मा से करनी चाहिए। हमें  मनुष्य के शरीर से आकर्षित नहीं होना चाहिए। मनुष्य के भीतरी मन को समझना ही उचित होता है। जो लोग मनुष्य के शरीर से ही केवल प्यार करते हैं ऐसे लोगों के लिए गीता का उपदेश बहुत कुछ सिखाने वाला साबित हो सकता है।

 

जीवन का एक मात्र सत्य है वो है मृत्यु:

 

गीता के इस उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने यह बताया है कि इंसान को जन्म मरण के चक्र के बारे में जान लेना चाहिए। क्योंकि मनुष्य के जीवन का एकमात्र सच जो है वह मृत्यु  है क्योंकि, जिस भी इंसान ने इस दुनिया में जन्म लिया है  उसे एक न एक दिन इस संसार को छोड़कर जाना ही पड़ता है।  और यही इस दुनिया का अटल सत्य है।  लेकिन इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता कि हर इंसान अपनी मौत से भयभीत रहता है। इसलिए मनुष्य को जीवन की अटल सच्चाई को जान लेना चाहिए और अपनी वर्तमान की खुशियां को भी खराब नहीं करना चाहिए।

 

गुस्से पर काबू करना चाहिए क्योंकि क्रोध से व्यक्ति का नाश हो जाता है:

 

भगवान श्री कृष्ण ने इस उपदेश में यह बताया है कि क्रोध से मनुष्य को भ्रम पैदा होता है और भ्रम में वह अपनी बुद्धि का विनाश कर बैठता है।  क्रोध में जब मनुष्य की बुद्धि काम नहीं करती है तब मनुष्य का 

तर्क -वितर्क करने की क्षमता नष्ट हो जाती है और व्यक्ति का वही नाश हो जाता है। 

इसी तरह हर एक व्यक्ति को अपने गुस्से पर काबू करना सीखना चाहिए।  मनुष्य गुस्से में कई बार ऐसा काम कर देता है जिससे उसको बाद में जाकर हानि का सामना करना पड़ता है।

वहीँ अगर मनुष्य अपने क्रोध पर काबू नहीं कर पाए तब वह कोई गलत कदम उठा बैठता है जब भी मनुष्य के मन में क्रोध की भावना उत्पन्न होती है तब मनुष्य का मस्तिक काम करना बंद कर देता है और वह सही गलत का वह  उचित फैसला नहीं ले पाता। इसलिए हमेशा मनुष्य को अपने क्रोध को काबू में रखना चाहिए और अपने मन को शांत रखना चाहिए क्योंकि गुस्से में लिया गया फैसला आपको गहरी क्षति पहुंचा सकता है।

 

व्यक्ति अपने कर्मों को नहीं छोड़ सकता है:

 

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के सार में यह बताया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों को नहीं छोड़ सकता। जिसका मतलब व्यक्ति साधारण समझ के साथ अपने कर्मों में लगे रहते हैं उन्हें अपने  कर्म से हटना याह छोड़ना नहीं चाहिए , क्योंकि वह ज्ञान वादी नहीं बन सकते हैं।

 

वही अगर मनुष्य अपने कर्मों से पीछा छुड़ा ले या अपने कर्म करना बंद कर दे तब वह अपने रास्ते से भटक जाता है। संसार का नियम है जिसके मुताबिक मनुष्य को अपने कर्मों को करते रहना होगा जो व्यक्ति अपने कर्मों से बचना चाहता है याह वह अपने कर्म को करना बंद कर देता है ऐसी परिस्थिति में वह मनुष्य मन ही मन में डूबता जाता है अर्थात जिस व्यक्ति का जो स्वभाव होता है वह उसी के मुताबिक अपने कर्मों को करता है।

 

मनुष्य को देखने का नजरिया:

 

गीता के सार में मनुष्य के देखने के नजरिए के बारे में भी कुछ बातें बताई गई है इसमें लिखा गया है जो व्यक्ति ज्ञान को और कर्मों को एक रूप से देखता है। उस व्यक्ति का नजरिया सही है अज्ञानी पुरुष के पास ज्ञान नहीं होता इसी वजह से वह हर किसी भी चीज को गलत नजर से ही देखते हैं।

 

इंसान को अपने मन को काबू में रखना चाहिए:

 

गीता के सार में ऐसे मनुष्य के बारे में भी बताया गया है जो मनुष्य अपने को मन को काबू में नहीं रख पाते ऐसे लोग का मन इधर से उधर भटकता रहता है।  ऐसे मनुष्य का मन उनके लिए शत्रु के समान काम करता है। क्योंकि मन व्यक्ति के मस्तिक पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है जब मनुष्य का मन स्थिर रहता है तो वह व्यक्ति भी सही तरीके से अपना काम करता है।

 

खुद का आकलन करें:

 

गीता के सार मैं यह भी बताया गया है कि मनुष्य को सबसे पहले अपनी खुद का आंकलन मतलब खुदके बारे में जान लेना चाहिए।  खुद की काबिलियत और क्षमता को जानना ही मनुष्य को आत्मज्ञान की प्राप्ति करा सकता है जब तक मनुष्य खुद के बारे में जान नहीं लेगा तब तक उस मनुष्य का उद्धार नहीं हो सकता।

 

मनुष्य को खुद पर विश्वास करना चाहिए:

 

श्री भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने यह भी बताया है कि हर एक मनुष्य को अपने आप पर पूरा पूरा भरोसा करना चाहिए। क्योंकि जो लोग खुद पर विश्वास करते हैं वह अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसा भी बताया जाता है कि जो व्यक्ति जैसा विश्वास करता है आखिरकार वैसा ही बन जाता है।

 

अच्छे कर्म करें और फल की इच्छा ना करें:

 

जो मनुष्य अपना कर्म नहीं करते हैं और पहले से ही अपने कर्म का परिणाम के बारे में सोचने लगते हैं।  ऐसे लोगों के लिए गीता का यह सार बड़ी सीख देने वाला साबित हो सकता है।

भगवान श्री कृष्ण ने इस उपदेश में यह बताया है कि मनुष्य को कर्मों को करते रहना चाहिए और यह नहीं सोचना चाहिए कि इस कर्म का क्या परिणाम उनको प्राप्त होगा क्योंकि कर्म का फल तो हर एक इंसान को मिलता ही है इसलिए मनुष्य को चिंता ना करके अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।  ऐसा करने पर वह अपने किसी भी काम को सच्चे मन से करते हुए नजर आएंगे।

 

मनुष्य की इंद्रियों का संयम ही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है:

 

मनुष्य के जीवन में सुख दुख दोनों ही स्थिति का अनुभव होता रहता है. सुख की स्थिति में मनुष्य ज्यादा ही प्रसन्न हो जाता है तो वही दुख की स्थिति में मनुष्य निराशा महसूस करता है।  इसलिए सुख और दुख दोनों ही स्थिति में मनुष्य को अपने मन पर काबू रख कर उसे स्थिर रखना ही योग कहलाता है। 

जब कोई भी मनुष्य सांसारिक इच्छाओं को त्याग करके फल की चिंता ना करें अपने कर्मों को करता है तो उसी स्थिति को मनुष्य योग में स्थित कहलाता है।  जो मनुष्य अपने मन को काबू में कर लेता है वह मनुष्य का मन ही उसका सच्चा मित्र बन जाता है। लेकिन जो मनुष्य अपने मन को काबू में नहीं कर पाता उसके लिए उसका मन ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन साबित होता है।

वहीँ जो मनुष्य अपने मन पर विजय प्राप्त कर ले तो उसको परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।  इसका मतलब जिस भी मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है उसके लिए सुख दुख , सर्दी गर्मी और मान -अपमान सब एक समान हो जाता है।

 

खुद पर पूरा भरोसा रखे और अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातर प्रयास करें:

 

गीता में बताए गए इस उपदेश को अगर कोई भी व्यक्ति सच्चे मन से जीवन में पालन करें तो अवश्य ही वह व्यक्ति एक सफल इंसान बन सकता है जो लोग पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश करते रहते हैं वह निश्चित अपने लक्ष्य को पा ही लेते हैं।  इसके लिए किसी भी मनुष्य को अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातार निरंतर कोशिश करते रहना चाहिए।

 

तनाव से दूर रहने का संदेश:

 

इस उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने यह समझाया है कि किसी भी व्यक्ति को तनाव और चिंता से दूरी बनाकर रखनी चाहिए तभी जाकर वह एक सफल इंसान बन सकते हैं क्योंकि मनुष्य को सफल होने में तनाव एक बाधा की तरह बीच में आता है

 

अपना काम को प्राथमिकता दें और इसे पहले करें:

 

श्री भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने इस उपदेश में ऐसा बताया है की मनुष्य को अपने कामों को प्रथम प्राथमिकता देनी चाहिए।  सबसे पहले अपने जरूरी काम को पूरा करें उसके बाद ही किसी और को का काम को करें अन्यथा दूसरों का काम पूरा करने के चक्कर में वह मनुष्य अवश्य ही अपना काम पूरा नहीं कर पाता है.

 

लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान की विभूतियां हैं:

 

श्रीभगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने यह भी उपदेश दिया है कि संसार में  एक ही भगवान के अनेक स्वरूप है और संसार में लोग भगवान के अलग-अलग स्वरूप की पूजा भी करते हैं क्योंकि वह उनकी अलग-अलग शक्तियों पर भरोसा करते हैं लेकिन मनुष्य को यह बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि सभी भगवान एक ही भगवान का स्वरूप है मनुष्य के अच्छे और बुरे  दोनों ही भगवान का शक्तियों का रूप है अर्थात ब्रह्मांड में जितने देवता है वह सारे ही देवता एक ही भगवान का अनेक स्वरूप है जिनकी मनुष्य कभी पीपल के रूप में पूजा करते हैं तो कोई पहाड़ के रूप में।

भगवान अनगिनत है जिनका कोई अंत नहीं है लेकिन मनुष्य अपनी अपनी आस्था के अनुसार अपने देवी देवताओं की पूजा करते हैं।  लेकिन सत्य यह है की सारे देवी देवता है एक ही भगवान का स्वरूप है.

 

जो लोग भगवान का सच्चे मन से ध्यान लगाते हैं वह पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं-

 

भगवत गीता सार में भगवान श्री कृष्ण ने ऐसा भी कुछ बताया है कि मनुष्य अगर सच्चे मन से भगवान की पूजा आराधना करते हैं अपना पूरा ध्यान सच्चे मन से भगवान की ओर लगाते हैं तो उन लोगों को अवश्य ही सिद्धि की प्राप्ति होती है.

ऐसा भी बताया जाता है कि जो मनुष्य अपने शरीर के सभी इंद्रियों पर काबू पा लेता है और सुख और दुख सभी परिस्थितियों में समान भाव से रहता है और संसार के सभी प्राणियों के हित में लगा रहता है ऐसे मनुष्य को ईश्वर की कृपा हमेशा बनी रहती है

 

अपने काम को मन लगाकर करें और अपने काम में खुशी खोजें:

 

जो मनुष्य अपने सभी काम में मन लगाकर अपना कार्य करते हैं और वह छोटे से छोटे कार्यों में भी खुशी ढूंढ ही लेते हैं वह लोग निश्चित ही अंत में सफलता प्राप्त करते हैं

 

वहीं दूसरी तरफ ऐसे मनुष्य भी होते हैं जो अपने काम को बस एक बोझ समझकर बस पूरा कर देना चाहते हैं और अपने किसी भी काम को पूरा सही ढंग से नहीं करते हैं तो ऐसे मनुष्य हमेशा ही अपने जीवन में पीछे रह जाते हैं.

 

किसी भी तरह की अधिकता इंसान के लिए बन सकती है बड़ा खतरा:

 

भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यह बताया है मनुष्य के लिए किसी भी चीज की अधिकता उनके लिए हानिकारक साबित हो सकती है यह किसी भी प्रकार की अधिकता हो सकती है कड़वाहट हो या फिर मधुरता , खुशी हो या गम , हमें कभी भी किसी भी चीज की अति करना हमारे लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. 

 

जीवन में संतुलन बनाए रखना है बहुत जरूरी है जब तक मनुष्य अपने जीवन में संतुलन नहीं बनाएगा तब तक मनुष्य अपने जीवन को खुशी से व्यतीत नहीं कर सकता इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी चीज को ज्यादा करने से बचना चाहिए और जीवन में संतुलन बना कर रख सही है।

 

स्वार्थी नहीं बनें:

 

भगवान श्री कृष्ण ने गीता सार के माध्यम से एक बहुत बड़ी ज्ञान की बात कही है जो मनुष्य  बहुत मतलबी होते हैं और उनको बस अपने मतलब से मतलब होता है और वह अपना मतलब पूरा करने  के लिए कुछ भी कर सकते हैं उन लोगों का कभी भी भला नहीं होता।

आपको यह बात भी बता दे मनुष्य का स्वार्थ उसे अन्य लोगों से दूर ले जाकर उसे नकारात्मक स्थिति और ले जाता है जिससे वह व्यक्ति संसार में अकेला रह जाता है. वहीँ गीता में यह भी कहा कहा गया है कि एक स्वार्थी व्यक्ति शीशे में फैले धूल की तरह होता है जिसकी वजह से वह व्यक्ति अपना सही  प्रतिबिंब कभी देख नहीं पाता। इसलिए किसी भी व्यक्ति को अगर जीवन में खुशी पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना हो तो अपने स्वार्थ को कभी भी अपने पास नहीं आने दे क्योंकि एक स्वार्थी मनुष्य दोस्ती में भी अपना स्वार्थ निकालने की कोशिश करता रहता है.

इसलिए जीवन में ऐसा मनुष्य बने जो अपने साथ-साथ लोगों की भलाई के बारे में भी सोचे तभी जाकर वह मनुष्य एक सफल और खुशी पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता हुआ नजर आता है. 

 

ईश्वर हमेशा मनुष्य का साथ देता है:

 

ईश्वर हमेशा ही अपने भक्तों का साथ देते  रहते हैं जो मनुष्य इस प्रभावशाली सत्य को मान लेता है तो उसका जीवन पूरी तरह से बदलता हुआ उसे महसूस होता है क्योंकि संसार का निर्माण भगवान ने ही किया है और वही इस पूरे संसार को चला रहे हैं।  

 

इंसान तो बस एक कठपुतली है जो भगवान के इशारों पर चल रही है। इसलिए मनुष्य को कभी भी अपने भविष्य और वर्तमान की चिंता नहीं करने चाहिए क्योंकि भगवान उनकी हर एक विकट परिस्थिति में उनका साथ देते है और हमे मुश्किल से बाहर निकालते ही है इसलिए हम सब को ईश्वर पर सदैव भरोसा रखना चाहिए।

 

संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है:

 

भगवत गीता के इस सार मैं ऐसे मनुष्य के बारे में बताया गया है जो लोग सदैव ही  हर एक परिस्थिति में सत्य पर संदेश की आदत रखते हैं और  जरूरत से ज्यादा शक करते हैं ऐसे लोगों के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा कहा है कि पूर्ण सत्य की खोज यह हमेशा संदेह करना मनुष्य को दुख का कारण बनती है.

शक करना एक ऐसी आदत है जो मजबूत से मजबूत रिश्ते को भी खतरे में डाल देती है. वही जिज्ञासा होना एक अलग बात है लेकिन पूरी तरह से सत्य की खोज या फिर संदेह करना उसको  दुख प्रदान करती है और शक करने वाला इंसान कइ पास  अंत में पछतावा के अलावा कुछ भी नहीं रहता।

महाभारत के युद्ध के दरमियान भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए गीता उपदेश को लोग अगर अपने जीवन में उतारें तो आप निश्चित ही जीवन में सफल हो सकते है. गीता सार के यह उपदेश एक सफल जीवन के निर्माण के लिए बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

Geeta | Geeta Saar 

 

Vyarth kee chinta kyon karate ho, aur vyarth mein hee darate ho, tumhen kon maar sakata hai aatma na paida hote hai na hee maratee hai.

jo hua vah achchha hua, jo ho raha hai vah bhee acha hai, jo hoga vah bhee achchha hee hoga ,jo beet gaya usaka tum pashchaataap na karo aur bhavishy keechinta bhee na karo ,abhee to vartamaan chal raha hai

 

yuddh mein tumhaara kya gaya , jo tum ro rahe ho, tum kya lekar aae the ,jo kho diya tumane ,kya tumane paida kiya tha, jo kho diya tumane , tum na kuchh lekar aae the, jo kuchh liya tha vah yahee se liya tha, jo diya yaheen par diya, jo kuchh bhee tumhen mila vah bhagavaan se mila , jo tumane diya vah bhee bhagavaan ko hee diya.

 

tum khaalee haathee yahaan par aae the aur khaalee haathee tum jaoge, jo aaj tumhaare paas hai ,vah kal kisee aur ke paas hoga ,parason kisee aur ke paas hee hoga, tum ise satya samajh kar khush raho , bas yahee baat tumhen andar se khush kar sakatee hai.

 

parivartan hee sansaar ka niyam hai, jise tum mrtyu samajhate ho vahee to ek naya jeevan hai, is sansaar mein tum ek hee shan mein karodon ke malik ban jaate ho, to vahee doosare shar daridra bhee ban jaate ho. mera-tera, chhota-bada, apana-paraaya, in sab cheejon ko apane man se nikaal feko phir sab kuchh tumhaara hai, aur tum in sab ke ,

 

shareer bhee tumhaara nahin hai, nahin tum is shareer ke ho . yah agni, jal, vaayu, prthvee, aakaash in sab cheejon se milakar bana hai aakhirakaar in sab mein hee mil jaega lekin yah aatma sthir hai ,

 

aur tum kya ho ?

 

tumhen apane aap ko bhagavaan ke sahaare chhod dena chaahie. tumhaare lie yahee sabase uttam upaay hai jo unake sahaare ko jaanata hai vah bhay ,chinta ,shok se door aur mukt ho jaata hai.

 

Srimad Bhagavad Geeta Saar

 

Srimad Bhagavad Geeta Saar hume jiwan ko sahi tarah se jeena sikhati hai. Geeta ko padhkar aap samjh jaoge ki jiwan main karm hi sabkuch hota hai. Matra sochne se kuch nhin hoga, apko kaam krna hoga. 

लेख श्रेणियाँ

Banner1
Banner1

ज्योतिष सेवाएँ आपकी चिंताएँ यहीं समाप्त होती हैं
अब विशेषज्ञों से बात करे @ +91 9899 900 296

Astro Only Logo

ज्योतिष के क्षेत्र में शानदार सेवाओं के कारण एस्ट्रो ओनली एक तेजी से प्रगतिशील नाम है। एस्ट्रो केवल ज्योतिष के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है। प्रामाणिक और सटीक भविष्यवाणियों और अन्य सेवाओं के कारण इस क्षेत्र में हमारा ब्रांड प्रमुख होता जा रहा है। आपकी संतुष्टि हमारा उद्देश्य है। अपने जीवन में सकारात्मकता और उत्साह को बढ़ाकर आपकी सेवा करना हमारा प्रमुख लक्ष्य है। ज्योतिष के मूल्यवान ज्ञान की मदद से हमें आपकी सेवा करने का मौका मिलने पर खुशी होगी।

PayTM PayU Paypal
whatsapp