मंगलवार के व्रत की विधि, महत्व और कथा
हनुमान जी को प्रभु श्रीराम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। हनुमान जी इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने अपने सीने में श्रीराम और सीता माता को स्थान दिया हुआ है। लंका के विजयी होने में भक्त हनुमान का सबसे बड़ा योगदान रहा है। मंगलवार का दिन प्रभु श्रीराम के भक्त हनुमान जी का है। इस दिन हनुमान जी का व्रत रखने से वह प्रसन्न होते है और अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करते है। मंगलवार का व्रत करने से मनुष्य पराक्रमी और बलवान होता है तथा उसके अंदर सेवा और भक्ति का भाव उत्पन्न होता है।
मंगलवार व्रत की विधि
मंगलवार का व्रत हनुमान जी के लिए होता है और हनुमान जी नियमों का पूर्ण रुप से पालन करते थे। इसलिए इस दिन व्रत के पूर्ण नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत के नियम है-
चरण- 1 व्रत की शुरुआत करने से पहले लगातार 21 दिन के व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। लगातार 21 दिन का व्रत रखना बहुत ही लाभकारी माना जाता है।
चरण- 2 स्नान और संकल्प के बाद हनुमान जी की मूर्ति ईशान कोण की दिशा में स्थापित करना चाहिए।
चरण- 3 गंगाजल का छिड़काव महत्वपूर्ण होता है तथा लाल कपड़ा और धागा भी लगाना चाहिए।
चरण- 4 दीपक जलाने के लिए चमेली का तेल उपयोग करना चाहिए।
चरण- 5 उस दिन हनुमान चालिसा का जाप करना चाहिए। सुंदरकांड सुनना और सुनाना चाहिए।
चरण- 6 एकांत में अपनी मनोकामनाएं हनुमान जी को हाथ जोड़कर बताएं।
चरण- 7 पूजा के पश्चात भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए।
चरण- 8 मंदिर में हनुमान जी की आरती में शामिल होना चाहिए।
चरण- 9 22वें मंगलवार को बजरंगबली की अराधना करना चाहिए तथा 21 ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए।
मंगलवार के व्रत का महत्व
प्रत्येक सोमवार का व्रत करने से मनुश्य के सभी ग्रह शांत हो जाते है और व्रती पर हनुमान जी की कृपा आती है। हनुमान जी को संकट मोचन कहा जाता है और इस दिन व्रत करने पर हनुमान जी अपने भक्त के संकट मोचक बनकर उसके सभी कष्टों को समाप्त कर देते है। जादू-टोना तथा बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए इस दिन का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। निसंतान अगर इस व्रत को करता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत को अधिकतर पुरुष अपने पुरुषार्थ को बढ़ाने के लिए भी रखते है।
मंगलवार के व्रत कथा
प्राचीन समय में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहा करते थे जिसने के पास कोई संतान नहीं थी। ब्राह्मण दंपत्ति बजरंगबली के भक्त थे और प्रत्येक मंगलवार को व्रत करने के साथ उनकी अराधना किया करते थे। ब्राह्मण की पत्नी मंगलवार को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करती थी। एक दिन किसी कारण वह हनुमान जी को भोग नहीं लगा सकी। उसे इस बात का इतना दुख हुआ कि उसने अगले मंगलवार को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करने का निर्णय लिया। वह लगातार 6 दिनों तक भूखी रही और सातवे दिन वह बेहोश हो गई। उनकी इस श्रद्भाभाव से बजरंगबली इतने प्रसन्न हो गए कि उन्होंने उसे संतान आशीर्वाद स्वरुप दे दिया। ब्राह्मणी संतान को लेकर घर गई। बालक का नाम मंगल रखा गया। ब्राह्मण अपनी पत्नि के कहने पर बालक को स्वीकार तो किया लेकिन मन से स्वीकार नहीं कर पा रहा था। ब्राह्मणी के बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन मौका देखकर उसने बालक को कुएं में गिरा दिया। ईश्वर की कृपा से प्राप्त बालक को कुछ नहीं हुआ। जब ब्राह्मणी ने घर आकर जैसे ही बालक को पुकारा वह तुरंत मां के सामने उपस्थित हो गया। यह देखकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। उसी रात स्वप्न में बजरंगबली ने दर्शन दिया और उसे मंगलवार के व्रत के महत्व के बारे में बताया और उस व्रत के कारण बालक प्राप्त करने के कारण को भी समझाया। उसके बाद ब्राह्मण ने बालक को स्वीकार किया और तब से प्रत्येक मंगलवार को वह इस व्रत को करने लगा।
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