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मोक्षदा एकादशी 2021


Wednesday, 17 March 2021
मोक्षदा एकादशी 2021

मोक्षदा एकादशी 2021

तिथि- 14 दिसम्बर 2021

 

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। एकादशी को मोक्षदा एकादशी इसलिए कहते हैं क्योंकि यह समस्त मोह का नाश करने वाली एकादशी है। इसीलिए इस एकादशी का नाम मोक्षदा एकादशी है। इस एकादशी में दामोदर भगवान की पूजा धूप, दीप, रोली, चंदन, पुष्प, चावल आदि से करनी चाहिए। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

 

मोक्षदा एकादशी शुभ मुहूर्त

तिथि- 14 दिसम्बर

समय- 15 दिसम्बर को प्रातः 07:05:55 से 09:09:57 तक

समयावधि- 2 घंटे 04 मिनट

 

मोक्षदा एकादशी पूजा विधि

मोक्षदा एकादशी में अराधना के लिए विधि को उल्लेखित कर रहे हैं जिसका पालन करना अनिवार्य हो जाता है-

चरण- 1  एकादशी का व्रत रखने से पहले दसवीं दोपहर को भोजन करना चाहिए।

चरण- 2  दशमी की रात्रि को नहीं करना चाहिए। 

चरण- 3  एकादशी के दिन भोर में उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

चरण- 4  भगवान दामोदर की पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। 

चरण- 5  रात्रि जागरण करना उत्तम है।

चरण- 6  द्वादशी को जरूरतमंदों को भोजन खिलाएं व वस्त्र दान दें।

 

व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-

चावल का उपयोग बिल्कुल न करें। चावल के सेवन से ध्यान में भटकाट महसूस होता है।

असात्विक जीवन नहीं जीना चाहिए। सात्विक जीवन से ध्यान पूर्ण रूप से विधि विधान में रहता है। मनुष्य भोग विसालिता से दूर हो जाता है।

झूठ नहीं बोलना चाहिए तथा  क्रोध भी नहीं करना चाहिए।

व्रत के दिन द्वेष, छलकपट, काम और वासना से दूर रहें।

सूर्यास्त के समय सोने से बचें।

 

 

मोक्षदा एकदशी का महत्व

मोक्षदा एकादशी के व्रत करने वाले मनुष्य के पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। उनको संसार के आगमन चक्र से मुक्ति मिलती है। मनुष्य के कष्टों का नाश होता है। इसी दिन माधव ने पार्थ को गीता का संदेश दिया था। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी पर ही गीता जयंती भी मनाई जाती है। भागवत गीता एक महान ग्रंथ है। भगवत गीता का अध्ययन करने से जीवन को नई दिशा में प्रेरणा मिलती है। गीता से मनुष्य को जीवन की सच्चाई का पता चलता है और वह इसके पठन-पाठन से आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है। यही वजह है कि मनुष्य अपने क्रमों के बंधंन से मुक्ति के लिए इस व्रत को करता है।

 

पौराणिक कथा

पौराणिक कथानुसार प्राचीन समय में एक नगर होता था जिसका नाम गोकुल नगर था। इस नगर के राजा वेखान्स थे। यह व्रत उसी राजा के स्वप्न से जुड़ा हुआ है। एक दिन राजा को स्वप्न आया कि उसके पिताश्री नर्क में बहुत से कष्ट उठा रहा है और वह अपने पुत्र से याचना कर रहे हैं कि वह उन्हें यहां से मुक्त कराएं। इस सपने को देखकर राजा बहुत ही व्याकुल हो उठता है। सुबह-सुबह वह दरबार लगाता है और अपने सपने का अर्थ जानने की कोशिश करता है। वहां पर एकत्रित हुए सभी ऋषि-मुनियों ने राजा को पर्वत नामक मुनि के आश्रम पर जाकर अपने इस सपने का पूछने का सुझाव दिया। राजा ने उन ब्राह्मणों की बात को माना और पर्वत नामक मुनि के आश्रम की तरफ प्रस्थान किया। वहां जाकर उन्होंने अपना सपना ऋषिवर को सुनाया तब ऋषि ने बताया कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे पूर्वज जो नर्क में है उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। राजा ने विधिपूर्वक मोक्षदा एकादशी का उपवास किया और ब्राह्मणों को दक्षिणा, भोजन और वस्त्र दान किए जिसके प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई। यही इस व्रत का प्रभाव है। इसके बाद से ही इस व्रत को रखने की प्रथा है। मनुष्य अपने पुर्वजों के स्वर्ग की कामना के साथ ही इस व्रत को रखता है।

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