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पापाकुंशा एकादशी 2021


Wednesday, 17 March 2021
पापाकुंशा एकादशी 2021

पापाकुंशा एकादशी 2021

तिथि- 16 अक्टूबर 2021

 

यह एकादशी अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। यह एकादशी समस्त पापों को नष्ट करने वाली एकादशी है इसीलिए इस एकादशी का नाम पापाकुंशा एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी में मौन रहना सबसे उचित माना जाता है और इसी अवस्था में भगवान का स्मरण करना सबसे उत्तम माना जाता है। प्रभु का स्मरण करने से मन शुद्ध व पवित्र होता है और मनुष्य को सद्बुद्धि प्राप्त होती है। सनातन धर्म के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कठिन तपस्या से जो फल प्राप्त होता है उसके बराबर ही फल की प्राप्ति होती है।

 

पापाकुंशा एकादशी शुभ मुहूर्त

तिथि- 16 अक्टूबर

समय- 17 अक्टूबर को प्रातः 06:22:45 से 08:40:12 तक

समयावधि- 2 घंटे 17 मिनट

 

पापाकुंशा एकादशी पूजा विधि

पापाकुंशा एकादशी में व्रत से 1 दिन पूर्व इस के नियम व विधि प्रारंभ करने चाहिए। इसकी विधि को उल्लेखित कर रहे हैं जिसका पालन करना उचित है-

चरण- 1 सूर्य उदय होने से पहले उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प ले।   

चरण- 2  गेहूं, मूंग, चना, जो, चावल और मसूर की दाल की पूजा एकादशी के दिन करनी चाहिए।

चरण- 3  इस व्रत में घट की स्थापना करना अनिवार्य है तथा घट पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखकर पूजा करनी चाहिए। 

चरण- 4  विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।

चरण- 5  ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा अन्ना दान करना चाहिए।

 

व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-

गेहूं, मूंग सहित कुल 7 तरह के अनाजों का सेवन दशमी के दिन नहीं करना चाहिए।

व्रत के दिन नमक, तेल और चावल का परित्याग करना चाहिए। इसका उपयोग वर्जित माना जाता है।

स्त्री प्रसंग की मनाही है। स्त्री प्रसंग प्रभु की अराधना में लगे ध्यान को हटाने का कार्य करता है।

कांसे के बर्तन के उपयोग से बचना चाहिए।

असंयमित वाणी का उपयोग नहीं करना चाहिए।

सूर्यास्त के समय सोने से बचें।

 

पापाकुंशा एकदशी का महत्व

महाभारत काल के समय कृष्ण भगवान ने कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताया था। श्री कृष्ण के अनुसार यह एकादशी पाप नाश करने वाली एकादशी है अर्थात यह पापों से मनुष्य की रक्षा करती है। इस एकादशी के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन सभी को पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन दान दक्षिणा देना ने तथा निराहार रहने से इसकी महत्त और अधिक बढ़ जाती है।

 

पौराणिक कथा

भगवान की माया के आगे कुछ भी संभव है। वह सच्चे दिल से अपने पापों के प्राश्चित करने पर दुष्ट से दुष्ट पापी के पापों को भी समाप्त कर देता है। ऐसा ही पौराणिक समय में हुआ। अपने पापों को खत्म करने तथा मोक्षी की प्राप्ति के लिए एक ऐसे ही दुष्ट पापी ने सच्चे दिल से यह व्रत रखा और उसके पापों का अंत भी हुआ और वह मोक्षी को प्राप्त हुआ। दंत कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में विंध्य पर्वत पर एक बहेलियां रहता था जिसका नाम क्रोधन था। उसने अपने पूरे जीवन में हिंसा, लूटपाट, चोरी करना और मदिरा पीने जैसे गलत कार्यों को ही अपनी जीवन का हिस्सा बनाया। जीवन के अंतिम समय में जब यमदूर उसे लेने पहुंचे तो यमदूतों ने उसे एक दिन पहले ही अगले दिन होने वाले उसके मृत्यु की जानकारी दे दी। बहेलिया इतना भयभीत हुआ कि वह अपने पापों का प्राश्चित करना चाहता था। वह इसी कारण महर्षि अंगिरा के चरणों में जा पहुंचा। महर्षि ने उसके सच्चे मन और भय को देखते हुए दया दिखाई और उसे इससे बचना के उपाय के तौर पर पापाकुंशा व्रत रखने की सलाही दी जिसे बहेलुया ने रखा और वह मोक्ष को प्राप्त हुआ।

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